दलों ने खेला ब्राम्हण ट्रंपकार्ड, लेकिन जीत का आधार बनेंगी गैर ब्राम्हण जातियां
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अजब-गजब रूप ले रहा देवरिया विधानसभा उप चुनाव
- 3 नवंबर तय करेगा देवरिया विधानसभा का पंडित कौन होगा..मणि…त्रिपाठी या फिर अन्य कोई
- भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों में सिर्फ नाम अलग-अलग पर मणि और त्रिपाठी कॉमन
- जातिगत आंकड़ों में पहले नंबर पर ब्राम्हण, दूसरे पर वैश्य और तीसरे पर यादव व मुस्लिम समाज
- चौक-चौराहे पर एक तरफ मणि-त्रिपाठी टायटल सांग चल रहा है, तो दूसरी तरफ चुनावी चर्चा में बागी प्रत्याशी के रूप में अपनी तकदीर आजमा रहे स्व. विधायक जनमेजय सिंह के पुत्र अजय सिंह उर्फ पिंटू भी जगह बनाए हुए हैं
राजेश श्रीवास्तव
KC NEWS। यूपी में विधानसभा की सात सीटों पर उप चुनाव हो रहे हैं। इसमें देवरिया विधानसभा की सीट कुछ खास ही दिलचस्प है। वह इसलिए कि सभी दलों के राजनीतिक पंडितों ने इस सीट से अपने-अपने दल से ब्राम्हण ट्रंप कार्ड खेला है, क्योंकि इन सबका भरोसा अन्य जातियों काे छोड़कर सिर्फ ब्राम्हण कैंडिडेट पर ही आकर टिका। इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों की सामाजिक समरसता की बात बेमानी हो गई। नतीजा सामने है, इस चुनावी समर में उतरे भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों में सिर्फ नाम अलग-अलग हैं, लेकिन मणि और त्रिपाठी कॉमन हैं। देवरिया विधानसभा सीट से भाजापा से सत्य प्रकाश मणि त्रिपाठी, सपा से ब्रम्हा शंकर त्रिपाठी, बसपा से अभय नाथ त्रिपाठी और कांग्रेस से मुकुंद भास्कर मणि त्रिपाठी चुनाव लड़ रहे हैं। यहां चुनाव कुछ अजब-गजब रूप ले रहा है। इस चुनाव में चाय-पान, गांव, गलि-नुक्कड़ और चौक-चौराहों पर एक तरफ मणि-त्रिपाठी टायटल सांग चल रहा है, तो दूसरी तरफ इस चुनावी चर्चा में बागी प्रत्याशी के रूप में अपनी तकदीर आजमा रहे स्व. विधायक जनमेजय सिंह के पुत्र अजय सिंह उर्फ पिंटू भी जगह बनाए हुए हैं। इस उप चुनाव से विकास के मुद्दे गायब हैं, लेकिन जाति हाबी है। इस चुनावी जंग में राजनीतिक दल और कार्यकर्ताओं में चुनावी रंग घुल चुका है। सब अपने-अपने दल को जीता रहे हैं। वैसे, 3 नवंबर को इस विधानसभा क्षेत्र के 3 लाख 36 हजार 5 सौ 65 मतदाता अपने मताधिकार का प्रेयाग कर यह तय करेंगे देवरिया विधानसभा का पंडित…मणि होंगे या सिर्फ त्रिपाठी…या फिर और कोई…।
सामाजिक समरसता के ढांचे में अन्य जातियों को छोड़ सिर्फ ब्राम्हणों पर ही दलों ने जताया भरोसा
राजनीतिक दलों के पास जो जातिगत आंकड़े हैं, उसके मुताबिक देवरिया सदर विधानसभा क्षेत्र में पहले नंबर पर सबसे अधिक करीब 50 हजार ब्राह्मण मतदाता हैं और दूसरे नंबर पर 45 हजार के करीब वैश्य मतदाता हैं। 20 हजार के करीब क्षत्रिय, 30 हजार यादव, 25 हजार मुस्लिम और करीब 22 हजार निषाद मतदाता हैं। 16 हजार के करीब कुशवाहा, 13 हजार सैंठवार, 10 हजार राजभर इतने के करीब 10 हजार चौरसिया समाज के मतदाता हैं। यह कहा जा रहा है कि राजनीतिक दलों के पंडितों ने इन्हीं आंकड़ों को आधार बनाकर इस बार सभी ने सामाजिक समरसता के ढांचे में अन्य जातियों को छोड़कर सिर्फ ब्राम्हणों पर ही अपना भरोसा जताया। चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक देवरिया विधानसभा सीट से ब्राह्मण समाज से अंतिम चुनाव राम छबीला मिश्रा ने जनता दल के टिकट पर 1989 में लड़ा था और जीता था। इसके बाद यह सीट ब्राम्हणों के खाते से निकल गई थी। अब इस उप चुनाव में सभी दलों के पाले में ब्राम्हण उम्मीदवार हैं। जीत किसी भी दल की हो, एक लंबे अंतरातल के बाद यह सीट ब्राम्हण समाज के खाते में आते दिख रही है, लेकिन किसी भी दल के लिए जीत के आधार ब्राम्हण नहीं होंगे। क्योंकि यदि ब्राम्हण वोटरों के आंकडें को देखें तो आंकड़े में पहले नंबर पर जरूर हैं, लेकिन सभी दलों के उम्मीदवार ब्राम्हण होने के नाते 4 भाग यानी पार्टियों में बंटे हुए हैं। इसलिए जीत का आधार गैर ब्राम्हण जातियों पर निर्भर करेगा। इन जातियों का वोट जो दल जितना बटोर लेगा उसका आधार उतना ही मजूबत होगा।