Recycle Man Of India ने पीपीई फेश मास्क के वेस्टेज से बनाई ईंट
Notice: Trying to get property 'post_excerpt' of non-object in /home/u305984835/domains/khabarichiraiya.com/public_html/wp-content/themes/newsphere/inc/hooks/hook-single-header.php on line 67
KC NEWS
‘क्या आप जानतें हैं कि जो पीपीई फेश मास्क इस्तेमाल कर हम वेस्टेज कर रहे हैं, उसका और भी कोई इस्तेमाल हो सकता है। जी हां,अब इसका इस्तेमाल ब्रिक (ईंट) बनाने के लिए होगा। यह मैं भी नहीं जनता था। वेस्टेज प्रयोग के सब्जेक्ट पर विचार आया इसलिए जानने के लिए गूगल का सहारा लिया। गूगल सर्च में जाने पर वेस्टेज रीसायकल कर ईंट बनाए जाने की एक आर्टकिल ‘द हिन्दु’ में दिखी और जब अध्ययन किया तो इस अविष्कार को जाना। जो आपको समर्पित है, ताकि आप भी इसे जान सकें।’
(लेखक आदर्श श्रीवास्तव, बी-टेक सिविल इंजीनियरिंग)
आइए जानते हैं…आप इससे तो वाकिफ हैं कि 2020 में जब पूरी दुनिया, पूरा देश कोविड-19 के खतरे से जूझ रहा था। तब कोविड से बचाव को लेकर पीपीई फेश मास्क का इस्तेमाल कर उसे कचरे में फेंक दिया जाता था। तब देश-दुनिया कोविड से बचाव, दवाई और टीके का इजाद करने के लिए सोच रहा था। लेकिन उस दौरान यह चिंता किसी को नहीं थी कि कोविड से बचाच को लेकर जिस पीपीई फेश मास्क का इस्तेमाल कर हम फेंक रहे हैं, इस पीपीई फेश मास्क के वेस्टेज से प्रर्यावरण को कितना का नुकसान होगा और जब प्रर्यावरण दूषित हो जाएगा तो, इसके खतरे से हमें कौन बचाएगा।
तब उस समय भारत के एक लाल को इस बात की चिंता सताने लगी कि जिस तरह कोविड से बचाव को लेकर पीपीई फेश मास्क का प्रयोग हो रहा है, इसके वेस्टेज से तो प्रर्यावरण दूषित होगा, जो लोगों के लिए और खतरा पैदा कर सकता है। तब उस लाल ने एक ऐसा नवीनतम अविष्कार किया, जिससे प्रर्यावरण दूषित नहीं हो। इस नवीनतम अविष्कार से पहले ब्रीक-1.0 और अब ब्रीक-2.0 (ईंट) तैयार की। भारत के उस लाल का नाम डॉ. बिनीश देशाई है, जिन्हें रीसायकल मैन ऑफ इंडिया भी कहा जाता है। यह गुजरात स्थित इको-इक्लेक्ट्रिक टेक्नोलॉजी के संस्थापक भी हैं।
‘द हिन्दु’ में छपी आर्टिकल में इस बात का उल्लेख किया गया है कि औद्योगिक कागज के कचरे और गोंद से पी-ब्लॉक ईंट की डिजाइन करने के लिए 2010 में प्रसिद्धि पाने वाले ‘रीसायकल मैन ऑफ इंडिया’ ने पिछले कुछ महीनों में COVID-19 महामारी के बीच जमा हो रहे पीपीई फेश मास्क के कचरे के खतरे से लड़ने में मदद करने के लिए पर्यावरण के अनुकूल ईंटें बना रहे हैं, जो अब कामर्शियल रूप देने के लिए कमर कस रहा है।
डॉ. देसाई कहते है कि 2020 में जब लॉकडाउन शुरू हुआ, तो हर कोई इस बारे में बात कर रहा था कि प्रकृति कैसे ठीक हो रही है, लेकिन मुझे पर्यावरण की चिंता हुई। क्योंकि मैंने सोचा कि बड़ी मात्रा में पीपीई फेश मास्क का उपयोग एक नए प्रकार का प्रदूषण पैदा करेगा, जिसके बारे में हमें अभी पता नहीं है। मुझे लगा कि पीपीई फेश मास्क में इस्तेमाल होने वाली सबसे आम सामग्री पर काम शुरू करने की जरूरत है। इसके बाद गैर-बुना फाइबर, जिससे मास्क बनते हैं को अपने परिवार के लोगों द्वारा इस्तेमाल किए गए मास्क को इकट्ठा किया और अपने घर की प्रयोगशाला में अध्ययन शुरू किया।
काम शुरू करने से पहले दो दिन के लिए इकट्ठा किए गए मास्क को कीटाणुनाशक एक बाल्टी में डाल दिया। फिर अपनी प्रयोगशाला में बनाए गए विशेष बाइंडर्स के साथ मिलाया। सामग्री की दृढ़ता से जांच करने के लिए मैंने छोटे प्रोटोटाइप प्रयोग किए और बाइंडरों के विभिन्न संयोजनों का पता लगाया। इन ईंटों के लिए, सफल अनुपात 52% पीपीई + 45% पेपर वेस्ट + 3% बाइंडर था।
डॉ. बिनीश देसाई को फोर्ब्स ’30 अंडर 30′ एशिया 2018 की सफल सामाजिक उद्यमियों की सूची में शामिल किया गया है। वह कहते है कि उचित स्वच्छता प्रोटोकॉल का पालन करने के बाद सामग्री को काट दिया जाएगा, पेपर मिलों से प्राप्त औद्योगिक पेपर को कचरे में जोड़ा जाएगा, और फिर बाइंडर के साथ मिलाया जाएगा। मिश्रण को सांचे में सेट होने से पहले 5-6 घंटे के लिए रखा जाता है। ईंटों को स्वाभाविक रूप से तीन दिनों के लिए सुखाया जाता है और तब उत्पाद उपयोग के लिए तैयार होता है।
डॉ. बिनीश कहते हैं कि नया संस्करण ब्रिक 2.0 मजबूत और अधिक टिकाऊ है। प्रत्येक ईंट का आकार 12x8x4 इंच है, और यह प्रति वर्ग फुट 7 किलो बायोमेडिकल कचरे के उपयोग से बनता है। इनका दावा है कि ब्रिक 2.0 पी-ब्लॉक 1.0 की तुलना में हल्का और मजबूत है। यह वाटरप्रूफ और आग प्रतिरोधी भी है और इसकी कीमत 2.8 रुपये प्रति पीस है। ईंटों को बनाने के लिए डॉ. देसाई कहते हैं कि इसके लिए प्रति वर्ग फुट 7 किलो बायोमेडिकल कचरे की आवश्यकता होगी। ईंटों का पूर्ण रूप से निर्माण शुरू करने के लिए, उनकी टीम अस्पतालों, पुलिस स्टेशनों और बस स्टॉप जैसे विभिन्न स्थानों पर ‘इको बिन्स’ लगाएगी।
बिहार : समस्तीपुर में यूथ ब्रिगेड ने उठाया बेजुबान जानवरों की भूख मिटाने का जिम्मा
वे कहते हैं कि ये ‘इको बिन्स’ पीपीई और फेस मास्क को इकट्ठा करेंगे। इनके किनारे पर एक इंडिकेटर है, जो हमें बताएगा कि बिन भरा हुआ है या नहीं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के दिशानिर्देशों के अनुसार, बिन भर जाने के बाद, सामग्री को अपने परिसर में ले जाने से पहले 72 घंटे के लिए अलग-थलग रखेंगे। जब इसे हमारे परिसर में लाया जाएगा, तो हम इसे कीटाणुनाशक कक्ष में खोलेंगे और इसे कीटाणुरहित करेंगे। फिर इसे छोटे टुकड़ों में फाड़ देंगे और फिर इसे बाइंडर और कागज के कचरे के साथ मिलाया जाता है। इसके बाद इसे वांछित सांचों में ढाला जाएगा और प्राकृतिक रूप से सुखाया जाएगा।
“Nothing is useless in this world;
What can be a waste to you is someone’s asset”
Dr. Binish Desai, Recycle Man Of India