एनडीए बनाम विपक्ष : अगला प्रधानमंत्री कौन…?

एनडीए बनाम विपक्ष : साल-2024 के महासंग्राम को लेकर दिल्ली और बेंगलुरू में सियासी मंथन आज
एनडीए बनाम विपक्ष : साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के महासंग्राम को लेकर होने वाली महाबैठक में एनडीए 38 दलों के दावे के साथ दिल्ली में तो विपक्ष 26 दलों के दावे के साथ बेंगलुरू में आज सियासी मंथन करेगा वाला है। अगला प्रधानमंत्री कौन होगा ?…। इस सियासी मंथन पर पूरे देश की नजर टिकी है।
वैसे, महाबैठक से पहले भाजपा प्रमुख जेपी नड्डा ने कहा है कि एनडीए का गठबंधन भारत को मूजबूत करने के लिए है, जबकि यूपीए नेतृत्वहीन और नीतिहीन है। यह फोटो खिंचवाने के लिए अच्छा अवसर है। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि समान विचारधारा वाले विपक्षी दल सामाजिक न्याय, समावेशी विकास और राष्ट्रीय कल्याण के ऐजेंडे को बढावा देने के लिए मिलकर काम करेंगे।
एक तरफ दिल्ली में जहां एनडीए अपनी ताकत दिखाने के लिए एनडीए के सभी घटक दलों के साथ साल 2024 में वापस फिर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने का सपना देख रहा है, तो दूसरी तरफ बेंगलुरू में विपक्ष भी एनडीए को शिकस्त देने की रणनीति बनाने के लिए डटा है।
विपक्ष “हम एक हैं” (यूनाइटेट वी स्टैंड) का संदेश देने वाले नारों के माध्यम से विपक्षी एका को मजबूती देने के लिए कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्मंत्री ममता बनर्जी, जदयू नेता एवं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, द्रमुक नेता एवं तमिलनाड्डु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता एवं झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्ध ठाकरे, आम आदमी पार्टी के नेता एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव सहित तमाम विपक्षी नेता बेंगलुरू पहुंच चुके हैं।
अब देखना है कि दिल्ली और बेंगलुरू में होने वाली इस सियासी मंथन में से कौन सा मंत्र निकलता है। साल 2024 किसके नाम होगा?…कौन मजबूत होगा?…एनडीए या फिर विपक्षी एकता…यह समय पर छोड़ दिया जाए तो बेहतर होगा।
वैसे, जब चर्चा सियासत की हो रही हो तो यह जरूरी है कि राजनीतिक गलियारे में मची ताजा हलचल की भी चर्चा कर ही लेनी चाहिए और पीछे भी तांकझांक कर लेना चाहिए। यह माना जाता है कि भाजपा के शाह को मात देना इतना आसान नहीं है। देश के अन्य राज्यों में चल रहे सियासी दांव-पेच को छोड़ दिया जाए तो यूपी में भाजपा ने बैठक के ठीक दो दिन पहले ही सियासी दांव-पेच का एक टेलर दिखा दिया है। यूपी में सपा के विधायक दारा सिंह चौहान से शाह की मुलाकात फिर उनकी भाजपा में ज्वाइनिंग और सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर की मुलाकात और फिर 2024 का लोस चुनाव साथ में लड़ने का राजभर का ऐलान।
यूपी में पहले से एनडीए की मजबूत कड़ी कही जाने वाली पार्टी अपना दल (सोनेलाल) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल अब तक एनडीए गठबंधन के साथ 4 चुनाव लड़ चुकीं हैं और इनकी पार्टी का परफारमेंश रेट हाई रहा है। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में एनडीए के साथ आई निषाद पार्टी भी मजबूती के साथ खड़ी है। इन नेताओं के बारे में कहा जाता है कि इनकी अपनी-अपनी जातियों के वोट बैंक पर मजबूत पकड़ है और इसका लाभ भाजपा को मिलेगा।
बैठक से ठीक एक दिन पहले बिहार के चिराग पासवान की शाह से मुलाकात हुई। चिराग भी भाजपा के खास माने जा रहे हैं, क्योंकि ये स्व. रामविलास पासवान के पुत्र हैं। यहां बताना जरूरी है कि बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान मोदी के हनुमान बनकर पूरे चुनाव में जनता दल (यू) के नेता नीतीश कुमार हराने और उनकी पार्टी सत्ता में न आए इसके लिए मजबूती से अपने मिशन पर डटे रहे। ये बात अलग है कि बिहार की जनता जदयू और राजद गठबंधन में अपना भरोसा जताया और नीतीश कुमार बिहार के फिर मुख्यमंत्री बनें।
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