सिनेमा : देविका रानी@भारतीय सिनेमा की पहली ‘किसिंग क्वीन’

वर्ष 1933 में फिल्म कर्मा में किसिंग सीन में देविका रानी।
बॉम्बे टॉकीज की संस्थापक देविका रानी के प्रयासों ने सिनेमा को एक नया आयाम दिया, जिसकी गूंज आज भी महसूस की जाती है
सिनेमा : आज की फिल्मों में किसिंग सीन भले ही आम हो चुके हों, लेकिन भारतीय सिनेमा के शुरुआती दौर में यह किसी क्रांति से कम नहीं था। वर्ष 1933 की फिल्म कर्मा में ऐसा ही ऐतिहासिक क्षण देखने को मिला, जिसने समाज में तहलका मचा दिया। इस फिल्म में नायक-नायिका की भूमिका में थीं देविका रानी और उनके पति हिमांशु रॉय। इस फिल्म का चार मिनट लंबा किसिंग सीन भारतीय दर्शकों के लिए हैरान कर देने वाला था। देविका रानी के इस कदम ने उन्हें सिनेमा जगत में एक नई पहचान दी और वे भारतीय सिनेमा की पहली ‘किसिंग क्वीन’ कहलाने लगीं।
देविका रानी को भारतीय सिनेमा की ‘फर्स्ट लेडी’ भी कहा जाता है। हिमांशु रॉय के साथ उन्होंने 1934 में बॉम्बे टॉकीज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य बेहतरीन और सुनियोजित फिल्में बनाना था। इस बैनर के तले कई यादगार फिल्में बनीं, जिनमें अछूत कन्या और महल जैसी फिल्में शामिल हैं। इन फिल्मों ने न केवल मनोरंजन के नए मानदंड स्थापित किए बल्कि समाज में महत्वपूर्ण मुद्दों को भी उठाया।
1930 और 1940 के दशक में अशोक कुमार और पृथ्वीराज कपूर जैसे सितारों की फिल्मों का दबदबा था, लेकिन देविका रानी ने भी अपनी जगह मजबूती से बनाई। अपनी बेहतरीन अभिनय क्षमता और करिश्माई व्यक्तित्व के कारण वे दर्शकों और फिल्म निर्माताओं के बीच आदर और लोकप्रियता हासिल करने में सफल रहीं।
देविका रानी का योगदान सिर्फ अभिनय तक सीमित नहीं था; उन्होंने बॉम्बे टॉकीज के माध्यम से भारतीय सिनेमा के विकास में अहम भूमिका निभाई। उनके प्रयासों ने सिनेमा को एक नया आयाम दिया, जिसकी गूंज आज भी महसूस की जाती है।
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