May 30, 2025

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दीपावली पर इको-फ्रेंडली दीयों का क्रेज, पर्यावरण संरक्षण का संदेश और शुद्धता का प्रतीक

दीपावली के इस पावन पर्व पर भारतीय बाजारों में इको-फ्रेंडली दीयों की जबरदस्त मांग

इको-फ्रेंडली। दीपावली के इस पावन पर्व पर भारतीय बाजारों में इको-फ्रेंडली दीयों की जबरदस्त मांग देखी जा रही है। पर्यावरण के प्रति बढ़ती जागरूकता और सरकार द्वारा पर्यावरण सुरक्षा को लेकर किए जा रहे प्रयासों ने लोगों को इस दिशा में सोचने के लिए प्रेरित किया है। परिणामस्वरूप, इस बार लोग मिट्टी के पारंपरिक दीयों के साथ-साथ गोबर से बने इको-फ्रेंडली दीयों को प्राथमिकता दे रहे हैं। यह दीये घर और आंगन को रोशन करने के साथ पर्यावरण के लिए भी लाभकारी हैं, क्योंकि इनके जलने के बाद इनका अवशेष प्राकृतिक खाद के रूप में काम आता है।

गोबर के दीयों का धार्मिक और पर्यावरणीय महत्व

गोबर से बने दीयों का धार्मिक महत्व भी है। शास्त्रों में गोबर का उपयोग शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माना गया है, और इसे धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोगी माना गया है। इको-फ्रेंडली दीयों का निर्माण गाय के गोबर से होने के कारण, यह न केवल पर्यावरण को शुद्ध करने में सहायक हैं, बल्कि घर के वातावरण को भी सकारात्मक ऊर्जा से भर देते हैं। दिवाली पर इन दीयों का जलना एक ओर घर को उजाला प्रदान करता है, तो दूसरी ओर पर्यावरण के अनुकूल विकल्प अपनाने की प्रेरणा भी देता है।

हिंगोनिया गौ पुनर्वास केंद्र की पहल: गोबर से बने दीयों का केंद्र

राजस्थान के जयपुर स्थित हिंगोनिया गौ पुनर्वास केंद्र में गोबर से इको-फ्रेंडली दीयों का निर्माण बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। यहां हरे कृष्ण मूवमेंट के भक्तों ने गोबर के दीयों को आमजन तक पहुंचाने की अनूठी पहल की है। गौशालाओं में प्रतिदिन लगभग दो हजार इको-फ्रेंडली दीये बनाए जा रहे हैं, जो न केवल राजस्थान बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी प्रसिद्धि प्राप्त कर रहे हैं। इस पहल का उद्देश्य है कि लोगों को पर्यावरणीय जिम्मेदारी निभाने का अवसर मिले और गोबर के उपयोग के फायदों से अवगत कराया जा सके।

इको-फ्रेंडली उत्पादों का प्रसार, दीयों से लेकर धूप तक

हिंगोनिया केंद्र में गोबर से केवल दीये ही नहीं, बल्कि वर्मी कम्पोस्ट (ऑर्गेनिक खाद) और यज्ञ में उपयोग होने वाली सुगंधित धूप भी बनाई जा रही है। यह पहल न केवल पर्यावरणीय जिम्मेदारी को प्रोत्साहित करती है, बल्कि गोबर के बहुउपयोगी लाभों को भी सामने लाती है। इस केंद्र का लक्ष्य है कि लोग प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर पर्यावरण में योगदान दे सकें, जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक साफ-सुथरा और सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित किया जा सके।

गोबर से इको-फ्रेंडली दीयों का निर्माण

गोबर के इको-फ्रेंडली दीये बनाने की प्रक्रिया सरल होते हुए भी प्रभावशाली है। गोबर को सुखाने के बाद उसमें लकड़ी का चूर्ण और ग्वार गम मिलाकर इसे अच्छी तरह गूंथा जाता है। फिर इसे सुंदर आकार देकर दीये तैयार किए जाते हैं, जिन्हें धूप में दो दिन तक सुखाया जाता है ताकि उनकी मजबूती बरकरार रहे। खास बात यह है कि इन दीयों के जलने के बाद इनके अवशेष को खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे ये पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल साबित होते हैं।

पर्यावरण के प्रति समर्पण का पर्व

इस दिवाली, इको-फ्रेंडली दीयों की लोकप्रियता यह दर्शाती है कि लोग अपने पारंपरिक पर्वों को मनाने के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा के प्रति भी जागरूक हो रहे हैं। जयपुर के हिंगोनिया गौ पुनर्वास केंद्र की यह पहल इस दिशा में एक सार्थक कदम है, जो न केवल पर्यावरणीय सुरक्षा को बढ़ावा दे रही है, बल्कि भारतीय संस्कृति के साथ हमारे सामाजिक और धार्मिक मूल्यों को भी संरक्षित कर रही है।

इस तरह, इस बार की दिवाली पर इको-फ्रेंडली दीये जलाकर, हम सभी न केवल अपने घरों में उजाला बिखेर सकते हैं बल्कि पर्यावरण संरक्षण में अपनी भूमिका भी निभा सकते हैं।

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