भाई दूज और चित्रगुप्त पूजा : स्नेह, श्रद्धा और शिक्षा का अद्वितीय संगम
भाई दूज और चित्रगुप्त पूजा हमें न केवल रिश्तों का मान रखना सिखाते हैं, बल्कि ज्ञान, न्याय और कर्तव्य की भावना को भी जागृत करते हैं
भाई दूज और चित्रगुप्त पूजा : भाई दूज और चित्रगुप्त पूजा का पर्व भारतीय परंपरा में भाई-बहन के अटूट स्नेह और ज्ञान-शिक्षा के प्रति समर्पण का प्रतीक है। हर साल दिवाली के बाद आने वाला यह पर्व न केवल पारिवारिक रिश्तों की गहराई को सशक्त करता है, बल्कि शिक्षा, लेखन और आत्मिक उन्नति के महत्व को भी उजागर करता है। इस विशेष दिन पर भाई-बहन अपने प्रेम का इज़हार करते हैं और चित्रगुप्त जी की पूजा कर ज्ञान के प्रति अपनी आस्था को पुनः सुदृढ़ करते हैं। यह पर्व भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को जीवंत रखने और परिवार, धर्म तथा समाज के प्रति कर्तव्यों का स्मरण कराता है।
भाई दूज: भाई-बहन के पावन बंधन का पर्व
भाई दूज, जिसे भाऊ बीज, भाई दूज, भात्र द्वितीया और भतरु द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है, भाई-बहन के रिश्ते की गरिमा को प्रदर्शित करता है। इस वर्ष 3 नवंबर 2024 को भाई दूज का शुभ मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 10 मिनट से 03 बजकर 22 मिनट तक है। इस अवधि में बहनें अपने भाइयों का तिलक करती हैं, उनके लम्बे, सुखद और सुरक्षित जीवन की कामना करती हैं। इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक कर आरती उतारती हैं और मिठाई खिलाती हैं, जिससे उनकी समृद्धि और खुशियों की कामना की जाती है।
भाई दूज का पर्व भारतीय समाज में भाई-बहन के रिश्ते की गहराई को प्रकट करता है। इस दिन भाई अपनी बहनों को उपहार देकर उनके प्रति अपने स्नेह और सम्मान को व्यक्त करते हैं। बहनें, जो सदैव अपने भाइयों के कल्याण की प्रार्थना करती हैं, इस दिन अपनी प्रार्थनाओं को तिलक और आरती के रूप में समर्पित करती हैं। यह पर्व हमारे पारिवारिक संबंधों को और भी सशक्त बनाने का संदेश देता है और भाइयों के प्रति बहनों के असीम प्रेम को दर्शाता है।
चित्रगुप्त पूजा : शिक्षा और ज्ञान के प्रति श्रद्धा की अभिव्यक्ति
भाई दूज के साथ ही इस दिन भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विशेष महत्व है। सनातन धर्म में चित्रगुप्त जी को कर्मों के लेखपाल के रूप में मान्यता प्राप्त है। मान्यताओं के अनुसार, उनका जन्म ब्रह्मा जी के मन से हुआ था, और वे यमराज के सहायक माने जाते हैं। चित्रगुप्त जी को देवताओं के लेखा-जोखा का दायित्व सौंपा गया है, और वे हर जीव के अच्छे-बुरे कर्मों का हिसाब रखते हैं। इस दिन भक्तगण भगवान चित्रगुप्त को कलम और कागज अर्पित करते हैं, जिससे शिक्षा, लेखन और विद्या के प्रति श्रद्धा प्रकट होती है।
चित्रगुप्त पूजा की विधि
चित्रगुप्त पूजा की विधि में एक पवित्र चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर भगवान चित्रगुप्त की तस्वीर स्थापित की जाती है। उनके समक्ष घी का दीपक जलाया जाता है और मिठाई, फूल और कलम अर्पित की जाती है। पूजा के दौरान एक कागज पर हल्दी का तिलक लगाकर ‘श्री गणेशाय नमः’ लिखने का विधान है। मान्यता है कि इस विधि से व्यक्ति को शिक्षा, लेखन और ज्ञान का आशीर्वाद मिलता है, जिससे वह जीवन में उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होता है। ऐसा भी माना जाता है कि पूजा में अर्पित की गई कलम का उपयोग करने से साधक पर चित्रगुप्त जी की विशेष कृपा बनी रहती है।
स्नेह और शिक्षा का पावन पर्व
भाई दूज और चित्रगुप्त पूजा भारतीय संस्कृति के ऐसे त्योहार हैं जो केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि हमारे मूल्यों और रिश्तों की गहराई को भी अभिव्यक्त करते हैं। यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते को मज़बूत करने के साथ-साथ शिक्षा और विद्या के प्रति समर्पण का भी प्रतीक है। भाई दूज के अवसर पर जहां भाई-बहन के बीच असीम स्नेह का बंधन और भी मजबूत होता है, वहीं चित्रगुप्त पूजा से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में ज्ञान और शिक्षा का महत्व सर्वोपरि है।
इस प्रकार भाई दूज और चित्रगुप्त पूजा हमें न केवल रिश्तों का मान रखना सिखाते हैं, बल्कि ज्ञान, न्याय और कर्तव्य की भावना को भी जागृत करते हैं।
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