छठ पूजा 2024: चार दिनों का महापर्व, सूरज देवता और छठी मैया की आराधना का अनोखा संगम

छठ पूजा 2024
छठ पूजा का महापर्व भारत के कई राज्यों में, खासकर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में विशेष धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है; इसमें प्रकृति के साथ गहरा सामंजस्य और सामाजिक एकता का संदेश समाहित है। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को यह चार दिवसीय पर्व आरंभ होता है, जिसमें व्रती महिलाएं सूरज देवता और छठी मैया की आराधना करती हैं। संतान की लंबी उम्र, समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए महिलाएं 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत करती हैं, जो इसे सबसे कठिन और पवित्र व्रतों में से एक बनाता है। इस साल छठ पूजा का शुभारंभ 5 नवंबर 2024 से हो रहा है।
छठ पूजा का पहला दिन नहाय-खाय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं सुबह स्नान कर शुद्ध भोजन ग्रहण करती हैं। सूर्योदय का समय 6 बजकर 39 मिनट और सूर्यास्त का समय 5 बजकर 41 मिनट निर्धारित है। इस दिन का उद्देश्य आत्मशुद्धि और व्रत की शुरुआत के लिए शरीर और मन को तैयार करना है।
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छठ पूजा का दूसरा दिन खरना कहलाता है। इस दिन उपवास करने वाले दिनभर निर्जला रहते हैं और शाम को गुड़ और चावल से बनी खीर का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत प्रारंभ होता है, जो अगले दिनों की कठिन तपस्या के लिए आधारशिला का कार्य करता है।
तीसरे दिन संध्या अर्घ्य का आयोजन होता है। इस दिन व्रती महिलाएं परिवार के अन्य सदस्यों के साथ तालाब या नदी किनारे जाती हैं और डूबते हुए सूरज देवता को अर्घ्य देती हैं। संध्या अर्घ्य का यह अनुष्ठान जीवन में नई ऊर्जा और समृद्धि का प्रतीक है। इस दिन व्रती सूरज देवता और छठी मैया की आराधना कर आभार प्रकट करती हैं।
चौथे और अंतिम दिन, उषा अर्घ्य के समय उगते हुए सूरज देवता को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है। इस दिन सूर्योदय का समय 6 बजकर 37 मिनट निर्धारित है। उषा अर्घ्य के बाद व्रती अपने संकल्प का पारण करती हैं और परिवार के साथ प्रसाद का वितरण करती हैं। यह अंतिम अर्घ्य नवजीवन, स्वास्थ्य और खुशहाली की कामना के साथ संपन्न होता है।
छठ पूजा का यह पर्व संयम, श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है। इस पर्व में प्रकृति, सूरज देवता और छठी मैया की आराधना की जाती है, जो मान्यता और धार्मिक आस्था का अनूठा संगम है। यह पर्व सामूहिकता और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देता है, जिसमें समाज के हर वर्ग के लोग सम्मिलित होकर सामूहिक आस्था में भाग लेते हैं।
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