विज्ञान के युग में भी अंधविश्वास का शिकंजा
ओझा-गुणी के चक्कर में खो गई एक और जान
मुजफ्फरपुर के नरकटिया गांव में एक दर्दनाक घटना ने फिर से अंधविश्वास के खतरों की ओर इशारा किया है। गगनदेव सहनी की पत्नी, 35 वर्षीय आशा देवी, जो चार बच्चों की मां थीं, अपनी जान से हाथ धो बैठीं। उनके दर्द का इलाज झाड़-फूंक से कराने की कोशिश जानलेवा साबित हुई।
झाड़-फूंक का खतरनाक खेल
परिजनों के अनुसार, आशा देवी को अचानक पेट में तेज दर्द हुआ। समस्या को हल करने के बजाय, वे उसे मायके के पकड़ी गांव में एक ओझा के पास ले गए। वहां पहले भी झाड़-फूंक से इलाज कराया गया था, लेकिन इस बार हालात बद से बदतर हो गए। झाड़-फूंक के दौरान आशा देवी की हालत लगातार बिगड़ती गई।
अस्पताल पहुंचने से पहले ही मौत
जब झाड़-फूंक बेअसर साबित हुई, तो परिजन आशा देवी को लेकर देर रात एसकेएमसीएच पहुंचे। लेकिन वहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। डॉक्टरों का कहना है कि मौत का सही कारण पोस्टमार्टम के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा।
अंधविश्वास या लापरवाही?
इस घटना ने एक बार फिर सवाल खड़े किए हैं: क्यों आज भी लोग विज्ञान और चिकित्सा की बजाय झाड़-फूंक जैसे अंधविश्वासी तरीकों का सहारा लेते हैं? क्या यह सिर्फ अज्ञानता है या फिर किसी गहरे डर और परंपरा की जकड़न?
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पुलिस जांच में जुटी
मेडिकल पुलिस पदाधिकारी ने बताया कि मामले की सूचना मिलने के बाद परिजनों का बयान दर्ज कर लिया गया है। शव को पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार के लिए सौंप दिया गया है। अब पुलिस इस मामले की तहकीकात कर रही है और देखना होगा कि क्या कोई और पहलू सामने आता है।
चार बच्चों की अनकही कहानी
चार मासूम बच्चों की दुनिया अब उनकी मां के बिना हो गई है। आशा देवी की मौत ने सिर्फ उनके परिवार को ही नहीं, बल्कि पूरे गांव को हिला कर रख दिया है। यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर कब तक अंधविश्वास हमारे समाज पर हावी रहेगा?
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