November 14, 2024

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‘उग हो सुरज देव’ से हर दिल में बसीं शारदा सिन्हा का निधन

शारदा सिन्हा

शारदा सिन्हा

  • उन्होंने न केवल भोजपुरी संगीत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, बल्कि भारतीय लोक संगीत को वैश्विक मंच पर भी सम्मान दिलाया।

बिहार : जब भी छठ महापर्व की बात होती है, शारदा सिन्हा की मधुर आवाज़ कानों में गूंज उठती है। उनकी आवाज़ ने न केवल छठ पूजा को एक नई पहचान दी, बल्कि लोक संगीत को भी जन-जन तक पहुँचाया। बिहार के सुपौल जिले के एक छोटे से गांव से निकलकर भारतीय लोक संगीत की पहचान बनने तक का उनका सफर प्रेरणादायक है। आज शारदा सिन्हा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनकी विरासत और आवाज़ हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेगी। उनका जीवन संघर्ष, सफलता और समर्पण की एक ऐसी कहानी है, जो हर संगीत प्रेमी के दिल को छू जाती है।

1 अक्टूबर 1952 को बिहार के सुपौल जिले के हुलास गांव में जन्मी शारदा सिन्हा का जीवन संगीत और संस्कृति के प्रति समर्पण का अनुपम उदाहरण है। उनके पिता सुखदेव ठाकुर शिक्षा विभाग में वरिष्ठ अधिकारी थे। शारदा सिन्हा ने शिक्षा के साथ-साथ संगीत में भी गहन रुचि ली। बीएड और संगीत में एमए की शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने अपनी अद्भुत संगीत यात्रा की नींव रखी।

1974 में शारदा सिन्हा ने भोजपुरी गीतों से अपने करियर की शुरुआत की। 1978 में छठ पूजा के गीत ‘उग हो सुरज देव’ ने उन्हें रातों-रात प्रसिद्ध कर दिया। इस गीत ने छठ पूजा की आत्मा को स्वर दिया और शारदा सिन्हा को ‘बिहार कोकिला’ के रूप में स्थापित किया। 1989 में बॉलीवुड में उनकी धमाकेदार एंट्री ‘कहे तोहरे सजना…’ गीत से हुई, जिसने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।

अकादमिक और सामाजिक योगदान

संगीत की दुनिया में अपनी जगह बनाने के बावजूद, शारदा सिन्हा ने शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने समस्तीपुर विमेन कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में सेवाएं दीं। उनके गीतों ने सामाजिक और पारिवारिक अनुष्ठानों को न केवल सांस्कृतिक रूप से समृद्ध किया बल्कि उन्हें जन-जन तक पहुँचाया।

सम्मान और उपलब्धियां

शारदा सिन्हा को 2018 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त, उन्हें भिखारी ठाकुर सम्मान, बिहार रत्न, और मिथिला विभूति जैसे सम्मानों से भी नवाज़ा गया। उनकी आवाज़ और उनके गीतों ने उन्हें ‘भोजपुरी कोकिला’ के रूप में एक विशेष स्थान दिलाया।

स्वास्थ्य संघर्ष और निजी जीवन

2017 में शारदा सिन्हा को मल्टीपल मायलोमा, एक गंभीर प्रकार का कैंसर, होने का पता चला। इसके बावजूद, उन्होंने संगीत के प्रति अपनी प्रतिबद्धता नहीं छोड़ी। हाल ही में उनके पति ब्रज किशोर सिन्हा का निधन ब्रेन हैमरेज के कारण हुआ, जो उनके जीवन का एक और गहरा आघात था।

अंतिम दिन और श्रद्धांजलि

दिल्ली के एम्स में 26 अक्टूबर को भर्ती होने के बाद उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता गया और 4 नवंबर 2024 को उन्होंने अंतिम सांस ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके बेटे अंशुमान सिन्हा से फोन पर बात कर अपनी संवेदनाएं व्यक्त कीं। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी एम्स पहुंचकर परिवार को सांत्वना दी।

छठ पूजा और संगीत में योगदान

शारदा सिन्हा का छठ पूजा से जुड़ा गीत ‘हो दीनानाथ’ हर घर की आत्मा बन गया था। उनकी आवाज़ छठ महापर्व की अनिवार्य धरोहर बन गई। उनके निधन से लोक संगीत और छठ पूजा के रस्मों ने एक बेमिसाल शख्सियत को खो दिया है।

परिवार और विरासत

शारदा सिन्हा के बेटे अंशुमान सिन्हा ने उनके निधन पर कहा कि उनकी मां शारीरिक रूप से अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी स्मृतियां और संगीत सदैव जीवित रहेंगे। शारदा सिन्हा का योगदान भारतीय लोक संगीत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज रहेगा। उनकी आवाज़ और उनके गीतों की गूंज सदा हमारे दिलों में जीवित रहेगी।

शारदा सिन्हा ने न केवल भोजपुरी संगीत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, बल्कि उन्होंने भारतीय लोक संगीत को वैश्विक मंच पर भी सम्मान दिलाया। उनकी विरासत अनंतकाल तक संगीत प्रेमियों को प्रेरित करती रहेगी।

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