यूपी : बिजली कंपनियों की नीजीकरण की तैयारी

वित्तीय घाटे से उबरने के लिए पॉवर कॉरपोरेशन की पहल, जिम्मेदारों ने कहा- आखिर सरकार कब तक करेगी सहयोग, उधर, उप्र राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ के महासचिव जितेन्द्र सिंह गुर्जर ने कॉरपोरेशन के इस फैसले पर व्यक्त की नाराजगी
यूपी। राज्य के पॉवर कॉरपोरेशन से बड़ी खबर सामने आई है। खबर यह आ रही है कि पॉवर कॉरपोरेशन वित्तीय घाटे से उबरने के लिए प्रदेश के बिजली कंपनियों की नीजी करण की तैयारी कर ली है। तर्क दिया गया है कि अनेक कोशिशों के बावजूद कारपोरेशन का घाटा बेतहासा बढ़ रहा है। कॉरपोरेशन जितनी बिजली खरीद रहा है, उतनी भी वसूली नहीं हो रही है। इस साल पावर कारपोरेशन को 46130 करोड़ रुपए सरकार से सहयोग की जरूरत पड़ी है और अगले वर्ष लगभग 50-55 हजार करोड रुपए तथा उसके आगे 60-65 हजार करोड़ रुपए तक की जरूरत बढ जायेगी। पॉवर कॉरपोरेशन के जिम्मेदारों ने यह माना कि आखिर सरकार यह कब तक करेंगी।
उधर, उप्र राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ के महासचिव जितेन्द्र सिंह गुर्जर ने कॉरपोरेशन के इस फैसले पर नाराजगी व्यक्त की है। संघ के महासचिव ने कहा है कि पॉवर कारपोरेशन द्वारा जारी प्रेस नोट के अनुसार वितरण क्षेत्रों का उड़ीसा मॉडल की तरह पीपीपी मोड पर निजीकरण किया जाना है, जो न ही उपभोक्ताओं के हित में है और न ही कर्मचारियों के। अतः निजीकरण स्वीकार्य नहीं है।
खबर के मुताबिकि बताया गया कि राजधानी लखनऊ स्थित शक्ति भवन में सोमवार को आरडीएसएस योजना के कार्यों की समीक्षा की गई। इसमें प्रदेश के विभिन्न वितरण निगमों की खराब वित्तीय हालत की समीक्षा की गयी। अधिकारियों से इस पर सुझाव मांगे गए जिस पर प्रदेश के अनेक निदेशक एवं मुख्य अभियन्ताओं ने कहा कि राजस्व वसूली, लाइन हानियां कम करने तथा थू्र-रेट आदि बढ़ाने के हर सम्भव प्रयास के तहत बड़ी संख्या में अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर कार्यवाही की गयी, उन्हें निलम्बित किया गया। विजिलेंस का उपयोग कर छापे डाले गये, डिस्कनेक्शन किया गया तथा एफआईआर की गयी, लेकिन फिर भी वित्तीय स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है। अब इस क्षेत्र में यदि कोई ड्रास्टिक निर्णय नहीं लिया गया, तो परिस्थितियों में सुधार की सम्भावना नहीं है। बहुत से लोगों ने यह भी राय दिया कि उड़ीसा में टाटा पावर के मॉडल को स्टडी किया जाए। इस बैठक में प्रदेश के सभी वितरण निगमों के प्रबन्ध निदेशक, निदेशक व मुख्य अभियन्ता सहित उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष डा. आशीष कुमार गोयल एवं प्रबन्ध निदेशक पंकज कुमार सहित वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
समीक्षा में बताया गया कि अनेक कोशिशों के बावजूद कॉरपोरेशन का घाटा बेतहासा बढ़ रहा है। जितनी बिजली खरीद रहें हैं उतनी भी वसूली नहीं हो रही है। इस साल पावर कारपोरेशन को 46130 करोड़ रू0 सरकार से सहयोग की जरूरत पड़ी है और अगले वर्ष लगभग 50-55 हजार करोड रुपए तथा उसके आगे 60-65 हजार करोड़ रुपए तक की जरूरत बढ जायेगी, सरकार यह कब तक करेंगी।
बैठक में मुख्यतः अधिकारियों द्वारा निम्न सुझाव प्राप्त हुए…
- ऐसे क्षेत्र जहां घाटा ज्यादा है, उन्हें सहभागिता के आधार पर पार्टनरशिप करके निजी क्षेत्र को जोड़कर सुधार किया जाए। यदि कर्मचारी सहयोग करें तो पार्टनरशिप में उनकी भी सहभागिता दी जाए। इस प्रबंधन में निजी क्षेत्र का एमडी बनाया जाए और अध्यक्ष सरकार का प्रतिनिधि बने। जिससे उपभोक्ता, किसानों तथा कर्मचारियों के हित सुरक्षित रहें। यह सहभागिता के आधार पर विद्युत व्यवस्था की शुरूआत होगी।
- अधिकारियों और कर्मचारियों के सभी हित सुरक्षित रहे। उनको पेंशन सहित सभी देय हित लाभ समय से मिले यह सुनिश्चित किया जाए।
- संविदाकर्मियों के हितों का भी ध्यान रखा जाए। अधिकारियों का मत था कि विद्युत क्षेत्र में मांग को देखते हुए दक्ष मैनपावर की और जरूरत पड़ेगी। जिससे और भी अच्छी सेवा शर्ते होने की सम्भावना रहेगी। सविंदा कर्मियों का हित सुरक्षित रहे और वर्क इन्वायरमेन्ट में सुधार किया जाए।
- बैठक में यह सुझाव आया कि जहां घाटा ज्यादा है और सभी कोशिशों के बावजूद स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है उन क्षेत्रों में इस व्यवस्था को लागू करने पर विचार किया जाए।
प्रस्तावित विद्युत सुधार के कुछ बिंदु…
अधिकारियों, कर्मचारियों का हित सुरक्षित रहेगा। सेवा शर्तें, सेवा-निवृत्ति लाभ आदि में कोई घटोत्तरी नहीं होगी। अधिकारी कर्मचारियों को तीन विकल्प दिए जाएंगे…।
- उसी स्थान पर बने रहें।
- UPPCL या अन्य डिस्काम में आ जाएं।
- आकर्षक VRS ले लें।
निजी क्षेत्र के साथ पार्टनरशिप की जाएगी न कि निजीकरण। व्यवस्था में चेयरमैन शासन का ही कोई वरिष्ठ अधिकारी होगा जिससे कर्मचारियों, किसानों तथा उपभोक्ताओं का हित सुरक्षित रहे।
- यदि अधिकारी कर्मचारी रिफार्म प्रक्रिया में सहयोग करते हैं तो प्रदेश सरकार नयी कंपनी में उनको हिस्सेदारी (Shareholding) देने पर भी विचार करेगी।
- यह रिफार्म का कार्य ऐसे क्षेत्र में ही किया जाएगा जहां पर Parameter अच्छे नहीं हैं। जिन क्षेत्रों में अधिकारियों कर्मचारियों ने Parameters में सुधार किया है, उन क्षेत्रों को इस प्रक्रिया से बाहर रखा जाएगा।
उधर, उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ के महासचिव जितेन्द्र सिंह गुर्जर ने कहा है कि पॉवर कारपोरेशन द्वारा जारी प्रेस नोट के अनुसार वितरण क्षेत्रों का उड़ीसा मॉडल की तरह पीपीपी मोड पर निजीकरण किया जाना है, जो न ही उपभोक्ताओं के हित में है और न ही कर्मचारियों के। अतः निजीकरण स्वीकार्य नहीं है।
घाटे और कर्ज के नाम पर पॉवर कारपोरेशन को ऋण पाश (Debt Trap) में बताने के पहले जरूरी है कि पॉवर कारपोरेशन प्रबन्धन बिन्दुवार यह बताए कि किन-किन कारणों से घाटा हो रहा है और प्रबन्धन ने घाटा कम करने हेतु क्या कदम उठाए हैं। उन्होंने कहा कि अभियन्ता संघ घाटे के कारणों पर विस्तृत चर्चा करने हेतु हमेशा तैयार है किन्तु अत्यन्त खेद का विषय है कि प्रबन्धन ने आज तक सुधार कार्यक्रमों पर कभी भी संगठनों से वार्ता नहीं की है। उन्होंने कहा कि यदि अभियन्ता और कर्मचारी संघों को विश्वास में लेकर सुधार की कार्य योजना बनाई जाय तो एक वर्ष में ही सकारात्मक परिणाम आने लगेंगे यह हमारी गारंटी है।
उन्होंने कहा कि उड़ीसा का मॉडल पूरी तरीके से विफल हो चुका है। 1998 में उड़ीसा में सभी वितरण कंपनियों का पीपीपी मॉडल के आधार पर निजीकरण किया गया था। 17 साल बाद 2015 के फरवरी में उड़ीसा के विद्युत नियामक आयोग ने पूरी तरह विफल रहने के कारण रिलायंस पावर के विद्युत वितरण के तीनों लाइसेंस रद्द कर दिए थे। स्पष्ट है कि यह प्रयोग पूरी तरीके से विफल हो गया है। कोरोना काल के दौरान एक बार पुनः उड़ीसा की विद्युत वितरण कंपनियों का काम टाटा पावर को दिया गया है। अभी भी कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुए हैं और इसका उदाहरण देना या इसके उदाहरण के आधार पर उत्तर प्रदेश की विद्युत वितरण कंपनियों का पीपीपी मॉडल पर निजीकरण किया जाना एक विफल प्रयोग को उत्तर प्रदेश में थोपना है, जो न ही कर्मचारियों के हित में है और न ही उपभोक्ताओं के हित में।
उन्होंने कहा कि अप्रैल 2018 में तत्कालीन ऊर्जा मंत्री श्रीकान्त शर्मा से वार्ता के बाद हुए लिखित समझौते और अक्टूबर 2020 में वित्त मंत्री सुरेश खन्ना की अध्यक्षता में मंत्रिमंडलीय उप समिति के साथ हुए लिखित समझौते में स्पष्ट कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में ऊर्जा क्षेत्र में कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा। अतः यदि उक्त समझौतों का उल्लंघन कर निजीकरण की कवायद की जा रही है तो यह सरकार के साथ हुए समझौते का उल्लंघन होगा। उन्होंने कहा कि घाटे के कारणों पर बिन्दु वार अभियंता संघ विस्तृत प्रपत्र एक दो दिन में जारी करेगा।
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