बिहार : शराबबंदी नीति की सफलता पर गंभीर सवाल

राज्य में शराबबंदी लागू होने के बाद अब तक जहरीली शराब के कारण 156 लोगों की मौत हो चुकी है, नीति के क्रियान्वयन की कमजोरियां उजागर
अरुण शाही, बिहार
बिहार में 2016 में शराबबंदी लागू होने के बाद इसे एक साहसिक सामाजिक सुधार के रूप में प्रस्तुत किया गया। इसका उद्देश्य था राज्य को नशामुक्त बनाना और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाना। हालांकि, इन उद्देश्यों के बीच जहरीली शराब से हो रही मौतों की घटनाएं लगातार इस नीति की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े कर रही हैं।
राज्य में शराबबंदी लागू होने के बाद अब तक जहरीली शराब के कारण 156 लोगों की मौत हो चुकी है। इन मृतकों के परिवारों को मुख्यमंत्री राहत कोष से छह करोड़ 24 लाख रुपये की सहायता राशि प्रदान की गई। इसके अलावा, शराबबंदी से पहले 1998 से 2015 के बीच 108 लोगों की मौत का आंकड़ा दर्ज हुआ था।
इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि शराबबंदी के बाद भी अवैध शराब की उपलब्धता और खपत पर रोक नहीं लग पाई है। यह न केवल नीति के क्रियान्वयन में कमजोरियों को दर्शाता है, बल्कि अवैध शराब माफिया के बढ़ते प्रभाव की ओर भी संकेत करता है।
शराबबंदी केवल बिहार तक सीमित समस्या नहीं है। देश के अन्य राज्यों में भी जहरीली शराब से मौतों के आंकड़े चिंताजनक हैं। उदाहरण के लिए, कर्नाटक में 2008 में 345 लोगों की मौत हुई थी। पंजाब, असम और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी बड़ी संख्या में लोग जहरीली शराब का शिकार हुए।
लेकिन बिहार की स्थिति इसलिए अलग है क्योंकि यहां शराबबंदी के बावजूद जहरीली शराब से मौतों की घटनाएं जारी हैं। यह नीति की प्रभावशीलता और उसके क्रियान्वयन के तरीकों पर गहन मंथन की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
शराबबंदी लागू करने के पीछे नशामुक्ति और समाज सुधार का उद्देश्य था। इसने कई सकारात्मक प्रभाव डाले, जैसे घरेलू हिंसा में कमी और महिलाओं की स्थिति में सुधार। हालांकि, इसका दूसरा पक्ष यह है कि अवैध शराब का कारोबार फल-फूल रहा है।
शराबबंदी की नीति को सफल बनाने के लिए प्रशासन को न केवल कानून का सख्ती से पालन कराना होगा, बल्कि अवैध शराब के कारोबार पर कड़ी निगरानी भी रखनी होगी। लोगों को जागरूक करना और उन्हें वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध कराना भी अत्यंत आवश्यक है।
इसके अलावा, नीति के क्रियान्वयन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना जरूरी है। सरकारी योजनाओं का लाभ सही लाभार्थियों तक पहुंचे, यह सुनिश्चित करना भी प्राथमिकता होनी चाहिए।
शराबबंदी बिहार सरकार का एक साहसिक कदम है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में कमियां स्पष्ट नजर आती हैं। अवैध शराब और उससे जुड़ी मौतों की घटनाएं इस नीति के उद्देश्यों को विफल कर रही हैं।
मृतकों के परिवारों को राहत प्रदान करना जरूरी है, लेकिन इससे समस्या का समाधान नहीं होता। सरकार और प्रशासन को इस नीति को प्रभावी बनाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। शराबबंदी का असली उद्देश्य तभी पूरा होगा जब राज्य अवैध शराब से मुक्त हो और समाज में नशामुक्ति के प्रति वास्तविक जागरूकता आए।
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