महाराष्ट्र : विवादित बयान से बढ़ा राजनीतिक तापमान, कांग्रेस नेता ने कहा, पीएम मोदी का ‘पालतू कुत्ता’ है चुनाव आयोग

महाराष्ट्र : विधान परिषद में उपनेता भाई जगताप।
ईवीएम पर कांग्रेस का आरोप लगाना कोई नई रणनीति नहीं है, जब-जब पार्टी को हार का सामना करना पड़ता है, ईवीएम को कटघरे में खड़ा किया जाता है
सियासत : महाराष्ट्र की सियासत में एक बार फिर हलचल मच गई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विधान परिषद में उपनेता भाई जगताप ने एक विवादित बयान देकर राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया। उन्होंने चुनाव आयोग की तुलना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘पालतू कुत्ते’ से की। इस बयान ने न केवल विपक्ष को आक्रामक बना दिया है, बल्कि कांग्रेस को भी बचाव की मुद्रा में ला दिया है। जगताप ने अपने बयान के पीछे चुनावी नतीजों को जिम्मेदार ठहराया और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में गड़बड़ी का आरोप लगाया। हालांकि, यह बयान कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है। यह बयान न केवल उनके सियासी विरोधियों के लिए हथियार बन गया है, बल्कि कांग्रेस की स्थिति को भी कमजोर कर रहा है।
जगताप का तर्क : अप्रत्याशित नतीजों पर सवाल
भाई जगताप का कहना है कि महाराष्ट्र की जनता महायुति सरकार से नाखुश थी, लेकिन चुनावी नतीजे इसके ठीक उलट आए। उन्होंने कहा, “यह नतीजे जनता की भावना के खिलाफ हैं। ईवीएम की हैकिंग के चलते महायुति सरकार को बढ़त मिली। अगर चुनाव आयोग स्वतंत्र होता, तो तस्वीर अलग होती।”
ईवीएम पर बार-बार उठे सवाल : क्यों हार पर दोष मढ़ती है कांग्रेस?
ईवीएम पर कांग्रेस का आरोप लगाना कोई नई रणनीति नहीं है। जब-जब पार्टी को हार का सामना करना पड़ता है, ईवीएम को कटघरे में खड़ा किया जाता है। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से यह सिलसिला लगातार जारी है।
पिछले कई चुनावों में कांग्रेस ने अपने खराब प्रदर्शन का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ा है। परंतु, जब यही ईवीएम कांग्रेस को जीत दिलाती है, तो उसे पारदर्शी और भरोसेमंद बताया जाता है। इस दोहरे मापदंड ने कांग्रेस की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
भाजपा और महायुति का जवाब : हताशा का प्रतीक
भाजपा और महायुति सरकार ने जगताप के बयान को कांग्रेस की हताशा करार दिया। भाजपा प्रवक्ता ने कहा, “कांग्रेस जनता का विश्वास खो चुकी है। उन्हें हार स्वीकारने की आदत डालनी चाहिए। हर बार ईवीएम पर आरोप लगाना उनकी विफल रणनीति को छिपाने का प्रयास है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि कांग्रेस के पास कोई ठोस मुद्दा नहीं बचा है, इसलिए वे सियासी बयानबाजी में उलझ रहे हैं।
क्या ईवीएम पर सवाल चुनावी नैरेटिव बदलने की कोशिश है?
विशेषज्ञ मानते हैं कि ईवीएम पर सवाल उठाना सिर्फ हार का ठीकरा फोड़ने का जरिया नहीं है, बल्कि इसके जरिए जनता के बीच चुनावी प्रक्रिया पर अविश्वास पैदा करने का प्रयास होता है। इससे विपक्षी दल अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को यह संकेत देना चाहते हैं कि हार उनकी नीतियों या नेतृत्व की विफलता नहीं है।
राजनीतिक विश्लेषण: कांग्रेस के लिए यह कब तक टिकाऊ?
कांग्रेस के लिए यह वक्त आत्ममंथन का है। बार-बार हार का सामना करने के बावजूद पार्टी अपनी रणनीतियों में बदलाव करने से चूक रही है। जगताप जैसे वरिष्ठ नेता का विवादित बयान पार्टी की मुश्किलें बढ़ा सकता है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बार-बार चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाना कांग्रेस के लिए अल्पकालिक रणनीति हो सकती है, लेकिन इससे जनता के बीच पार्टी की साख कमजोर हो रही है।
क्या कहना है जनता का?
जनता के बीच भी ईवीएम पर सवाल उठाने को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं हैं। कुछ इसे चुनावी धांधली का मुद्दा मानते हैं, जबकि अन्य इसे हार का बहाना। एक स्थानीय निवासी का कहना है, “नेताओं को जनता के फैसले का सम्मान करना चाहिए। हर बार ईवीएम को दोष देना जनता की बुद्धिमत्ता का अपमान है।”
मुद्दों पर वापसी जरूरी
भाई जगताप के बयान ने कांग्रेस को एक बार फिर बैकफुट पर ला दिया है। इस तरह के बयान जनता का ध्यान असल मुद्दों से भटकाते हैं और विपक्ष की ताकत को कमजोर करते हैं। कांग्रेस को समझना होगा कि राजनीतिक भरोसे और नीतियों के जरिए जनता का विश्वास जीतना ही स्थायी समाधान है।
कुल मिलाकर, सियासत में आरोप-प्रत्यारोप नई बात नहीं है, लेकिन जब यह आरोप जनता के फैसले को निशाना बनाते हैं, तो इसका असर उल्टा भी हो सकता है। कांग्रेस को भविष्य के चुनावों में इन चुनौतियों का सामना ईमानदारी और पारदर्शिता से करना होगा।
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