निजीकरण के विरोध में लामबंद हो रहे बिजली कर्मचारी
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के समर्थन में उतरा पंजाब, जम्मू कश्मीर और उत्तरांचल पावर इंजीनियर्स एसोसिएशन, संघर्ष समिति ने कहा, प्रबंधन बर्खास्तगी और दमन का भय पैदाकर ऊर्जा क्षेत्र का निजीकरण करना चाहता है
यूपी : बिजली कंपनियों के निजीकरण के विरोध में कर्मचारी लामबंद होने लगे हैं। उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मियों के निजीकरण के विरुद्ध चल रहे संघर्ष को पंजाब, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर के विद्युत अभियंता संघों ने समर्थन दिया है। साथ ही यूपी के सीएम को पत्र भेजकर निजीकरण के निर्णय को वापस लेने की मांग की है।
आरक्षण बचाओ विभाग बचाओ अभियान के दूसरे दिन पॉवर ऑफिसर्स एसोसिएशन के कार्यवाहक अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा के नेतृत्व में प्रतिनिधमंडल डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य से मुलाकात कर ज्ञापन सौंपा। बताया कि दक्षिणांचल व पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम को ट्रिपल पी मॉडल के तहत निजी क्षेत्र में दिए जाने की तैयारी है। इससे प्रदेश में दलित व पिछड़े वर्गों सहित आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग का आरक्षण स्वत समाप्त हो जाएगा। इस पर उप मुख्यमंत्री ने कहा कि आरक्षण पर सरकार गंभीर है हम आगे बात करेंगे।
जारी अपने बयान में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने पॉवर कारपोरेशन प्रबंधन पर आरोप लगाया कि प्रबंधन कर्मचारियों के बीच में बर्खास्तगी और दमन का भय पैदाकर संपूर्ण ऊर्जा क्षेत्र का निजीकरण करना चाहता है। पहले कदम में पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के नाम का खुलासा कर दिया गया है, किंतु उद्देश्य संपूर्ण ऊर्जा क्षेत्र के निजीकरण का है। संघर्ष समिति ने कहा कि प्रबंधन का झूठ बेनकाब हो चुका है, इसीलिए प्रबंधन बर्खास्तगी की धमकी देकर डर का वातावरण बना रहा है। ऐसा भी पता चला है कि निजीकरण के पीछे भारी घोटाला है।
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संघर्ष समिति ने सोमवार को जारी अपने बयान में कहा कि प्रबंधन को यह बताना चाहिए कि आगरा में फ्रेंचाइजी के साढे 14 साल के प्रयोग का क्या परिणाम निकला है। यह भी बताना चाहिए कि 31 मार्च 2010 तक का लगभग 2200 करोड रुपए का बकाया टोरेंट पावर कंपनी ने आज 14 साल से भी अधिक समय गुजर जाने के बाद पावर कारपोरेशन को क्यों नहीं दिया। प्रबंधन यह भी बताएं की टोरेंट पावर कंपनी और ग्रेटर नोएडा पावर कंपनी ने राज्य विद्युत परिषद के कितने कर्मचारियों को अपने यहां नौकरी में रखा।
प्रबंधन द्वारा यह कहा जा रहा है की टांडा और ऊंचाहार बिजली घर एनटीपीसी को पूरी तरह बेच दिए गए थे, जबकि ज्वाइंट वेंचर में एनटीपीसी में 50 प्रतिशत कर्मचारी रखे जाएंगे तो प्रबंधन यह भी बताएं की ज्वाइंट वेंचर कंपनी मेजा में भी है, ज्वाइंट वेंचर कंपनी घाटमपुर में भी है, ज्वाइंट वेंचर कंपनी बिल्हौर में भी है। इन कंपनियों में उत्पादन निगम के एक भी कर्मचारी को क्यों नहीं रखा गया है।
प्रबंधन यह भी बताएं कि जब इन्ही कर्मचारियों ने उत्पादन निगम और ट्रांसमिशन निगम को मुनाफे में ला दिया है तो यही कर्मचारी रहते हुए विद्युत वितरण निगम मुनाफे में क्यों नहीं लाया जा सकते। विद्युत वितरण निगम में घाटा लगातार बढ़ रहा है। घाटे की जिम्मेदारी क्या प्रबंधन की नहीं है। संघर्ष समिति ने कहा कि घाटे के जिम्मेदार प्रबंधन हटा दिया जाए तो 1 साल में संघर्ष समिति वितरण निगमों को मुनाफे लाकर दिखा सकती है।
संघर्ष समिति के पदाधिकारी राजीव सिंह, जितेन्द्र सिंह गुर्जर, गिरीश पांडेय, महेन्द्र राय, पीके दीक्षित, सुहैल आबिद, राजेंद्र घिल्डियाल, चंद्र भूषण उपाध्याय, आर वाई शुक्ला, छोटेलाल दीक्षित, देवेन्द्र पाण्डेय, आर बी सिंह, राम कृपाल यादव, मो वसीम, मायाशंकर तिवारी, राम चरण सिंह, मो. इलियास, श्री चन्द, सरयू त्रिवेदी, योगेन्द्र कुमार, एके श्रीवास्तव, केएस रावत, रफीक अहमद, पीएस बाजपेई, जीपी सिंह, राम सहारे वर्मा, प्रेम नाथ राय एवं विशम्भर सिंह ने कहा कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम में बिजली राजस्व का बकाया लगभग 66000 करोड रुपए है। निजी कंपनियों की इसी पर नजर लगी हुई है। देश के अन्य प्रांतों में जहां पर भी फ्रेंचाइजी या निजीकरण हुआ है निजी कंपनियों ने कहीं पर भी बिजली राजस्व के पुराने बकाया को पावर कारपोरेशन को वापस नहीं किया है, यह सब रिकॉर्ड पर है।
पदाधिकारियों ने कहा कि उत्तर प्रदेश में भी टोरेंट पावर कंपनी ने 2200 करोड रुपए राजस्व बकाए का वापस नहीं किया। अब जो नई कंपनियां आएंगी इसी बिजली राजस्व के 66000 करोड रुपए के बकाए के बंदर बांट की लूट होने वाली है। कहा कि यह भी पता चला है कि जुलाई के महीने में बिजली क्षेत्र की एक बड़ी निजी कंपनी ने पावर कारपोरेशन के सामने पीपीपी मॉडल का प्रेजेंटेशन किया था। अब निजीकरण की योजनाओं की प्रतिदिन जो घोषणा की जा रही है वह निजी कंपनी द्वारा दिए गए उसी प्रेजेंटेशन का हिस्सा है। इससे साफ हो जाता है कि प्रबंधन की निजी कंपनियों से सांठगांठ है और निजीकरण के बाद आने वाले मालिक पहले ही तय कर लिए गए हैं। संघर्ष समिति ने इस संबंध में उपभोक्ता परिषद द्वारा किए गए खुलासे का समर्थन करते हुए मांग की है कि निजीकरण पर उतारू प्रबंधन को तत्काल हटाया जाए।
संघर्ष समिति ने चेतावनी दी है कि प्रबंधन अनावश्यक रूप से बिजली कर्मियों का दमन करने से बाज आए। अभी कोई आंदोलन का नोटिस नहीं दिया गया है। निजीकरण के बारे में कर्मचारी और उपभोक्ताओं को जनसंपर्क कर अवगत कराया जा रहा है। लेकिन वाराणसी में संविदा कर्मियों की सेवा केवल मीटिंग में हिस्सा लेने के कारण बर्खास्त की गई है, जो अत्यधिक निंदनीय है। पदाधिकारियों ने कहा कि पंजाब राज्य बिजली बोर्ड इंजीनियर्स एसोसिएशन, जम्मू कश्मीर इलेक्ट्रिकल इंजीनियर ग्रेजुएट एसोसिएशन और उत्तरांचल पावर इंजीनियर्स एसोसिएशन ने निजीकरण के विरुद्ध संघर्ष में उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारी और अभियंताओं का समर्थन किया है। साथ ही यूपी के सीएम को पत्र भेजकर निजीकरण के निर्णय को वापस लेने की मांग की है।
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