July 23, 2025

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गढ़ीमाई मेले में 15 हजार पशु बलि

गढ़ीमाई मेला

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  • नेपाल के उपराष्ट्रपति ने किया शुभारंभ, भारत की मेनका गांधी ने जताई कड़ी आपत्ति। वर्ष 2020 में इंडियन गवर्नमेंट ने इस प्रथा पर रोक लगाने की कोशिश की थी

नीरज कुमार, पूर्वी चंपारण : नेपाल के बारा जिले में स्थित गढ़ीमाई मंदिर हर पांच साल में आयोजित होने वाले मेले का केंद्र बनता है। यह मेला न केवल नेपाल बल्कि भारत और दुनियाभर के भक्तों के लिए विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। 15 नवंबर से शुरू हुए इस मेले का समापन 15 दिसंबर को होगा, लेकिन 7 से 10 दिसंबर के बीच होने वाले बलिदान के कार्यक्रमों ने इसे एक बार फिर चर्चा का विषय बना दिया है। लगभग 15 हजार पशुओं की बलि की तैयारी इस आयोजन को आस्था और विरोध दोनों का केंद्र बना रही है।

भारत और नेपाल के बीच पशु बलि का मुद्दा गरमाया

2 दिसंबर को नेपाल के उपराष्ट्रपति राम सहाय प्रसाद यादव ने इस मेले का औपचारिक उद्घाटन किया। वहीं, भारत की पूर्व मंत्री और पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी ने नेपाल के राष्ट्रपति से इस बलि प्रथा पर रोक लगाने और समारोह में सम्मिलित न होने की अपील की है। बलि प्रथा को लेकर भारत और नेपाल के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है। वर्ष 2020 में भारत सरकार ने इस प्रथा पर रोक लगाने की कोशिश की थी, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली।

नेपाल के इस मेले में बड़ी संख्या में सीमावर्ती भारतीय श्रद्धालु भी भाग लेते हैं। इसी दौरान पशु तस्करी भी तेज हो जाती है। पुलिस अधीक्षक स्वर्ण प्रभात ने बताया कि बलि के लिए ले जाए जा रहे 35 पशुओं को बचाया गया है और 5 तस्करों को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस लगातार कार्रवाई कर रही है, लेकिन भक्त आस्था के नाम पर नए-नए तरीके अपनाकर पशुओं को नेपाल पहुंचा रहे हैं।

गढ़ीमाई मेला: आस्था और धार्मिक अनुष्ठानों का केंद्र

गढ़ीमाई मेला अपने धार्मिक महत्व के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। भक्त यहां अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। मेले के दौरान विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है, जिनमें विशेष पूजा और हवन शामिल हैं। इस आयोजन में नेपाल, भारत और अन्य देशों से लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं।

पशु बलि की परंपरा: विवाद और विरोध

मेले की सबसे विवादित परंपरा पशु बलि है। हर पांच साल पर यहां बकरा, कबूतर और अन्य जीवों की बलि चढ़ाई जाती है। 7 से 10 दिसंबर के बीच विशेष पूजा के दौरान क्रमवार बलिदान किए जाएंगे। पहले दिन पड़ा की बलि, दूसरे दिन बकरा, तीसरे दिन बकरा और कबूतर, और चौथे दिन पंच बलि के रूप में पांच प्रकार के जीवों की बलि दी जाती है।

सुविधाएं और सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम

मंदिर प्रशासन और स्थानीय प्रशासन ने मेले में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए हैं। नेपाल के मेयर उपेंद्र यादव ने कहा है कि किसी भी भक्त को कोई असुविधा नहीं होने दी जाएगी। मेले में ठहरने, भोजन और सुरक्षा के इंतजाम सुनिश्चित किए गए हैं।

कैसे पहुंचें गढ़ीमाई मंदिर?

भारत-नेपाल सीमा से सटे इस मंदिर तक पहुंचने के लिए रक्सौल से 51 किलोमीटर और आदापुर से 39 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है। यह स्थान सीमावर्ती इलाकों के लिए धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन गया है।

गढ़ीमाई मेला न केवल आस्था और भक्ति का पर्व है, बल्कि इस परंपरा से जुड़े विवाद इसे हर बार चर्चा का विषय बना देते हैं। आस्था और विरोध के इस संगम में क्या पशु बलि प्रथा पर कोई रोक लग पाएगी, यह देखने योग्य होगा।

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