सेवानिवृत्त सैनिक ने बदली खेती की परिभाषा

सेवानिवृत्त सैनिक राजेश यादव।
नवाचार, मेहनत और वर्मी कंपोस्ट ने बदली सूरजपुर पंचायत की तस्वीर, खेती अब बनी खुशहाली का रास्ता
पूर्वी चम्पारण (बिहार) से नीरज कुमार की रिपोर्ट✍…
सूरजपुर पंचायत का पड़ली गांव, जो पिपरा प्रखंड में स्थित है, आम गांवों जैसा ही दिखता है। उबड़-खाबड़ पगडंडियों के बीच बसे इस गांव की एक पहचान है-राजेश यादव। ये वही राजेश हैं, जिन्होंने 17 साल तक भारतीय सेना में सरहद पर देश की रक्षा की। जब राजेश सेना से सेवानिवृत्त होकर घर लौटे, तो उनका एक नया सपना था। अब वह देश के लिए नए तरीके से कुछ करना चाहते थे।
नई सुबह की शुरुआत
राजेश का घर लौटना सिर्फ एक सैनिक की वापसी नहीं थी, यह एक नई यात्रा का आरंभ था। उन्होंने खेती को अपनाने का फैसला किया, लेकिन परंपरागत तरीके से नहीं। उन्होंने सोचा, “क्यों न खेती में भी कुछ अलग किया जाए?” इसी सोच ने उन्हें पिपरा कोठी के कृषि विज्ञान केंद्र के संपर्क में पहुंचाया, जहां वैज्ञानिक डॉक्टर अरविंद कुमार ने उन्हें आधुनिक खेती के बारे में बताया।
खेतों में उम्मीद की फसल
राजेश ने अपनी सोच और वैज्ञानिक मार्गदर्शन को मिलाकर अपने खेतों में रेड लेडी 786 किस्म के पपीते लगाए। यह कोई साधारण पपीता नहीं था। यह छह महीने में फल देना शुरू कर देता है और तीन साल तक लगातार फल देता है। हर पौधे से 70 किलोग्राम तक फल मिलते हैं, और इनका बाजार मूल्य चार से पांच हजार रुपये प्रति क्विंटल तक होता है।
गांव के लोग उनकी मेहनत को देखते थे और सोचते थे, “क्या यह सच में मुनाफा दे सकता है?” लेकिन राजेश ने अपने खेतों से ऐसा कर दिखाया। उनके पपीते का स्वाद और गुणवत्ता इतनी अच्छी थी कि व्यापारी खुद उनके खेत पर आकर फल तोड़ ले जाते।
परंपरा से आगे की सोच
राजेश ने सिर्फ पपीते तक खुद को सीमित नहीं रखा। उन्होंने मिश्रित खेती को अपनाया, जिसमें दलहन, बाजरा, बीन्स, गेंदा फूल और ईख जैसी फसलें शामिल थीं। उनका हर कदम किसानों को परंपरागत खेती से बाहर निकलने और नई तकनीकों को अपनाने की प्रेरणा दे रहा था। वर्मी कंपोस्ट खाद का उपयोग उनकी खेती का सबसे खास हिस्सा था। “यह फसल को शुद्ध और गुणवत्तापूर्ण बनाता है,” राजेश कहते हैं। उन्होंने अपने घर के पास वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने का एक छोटा केंद्र भी स्थापित किया।
गांव में बदलाव की बयार
राजेश का यह प्रयास अकेले उनका सपना नहीं रहा। धीरे-धीरे सूरजपुर पंचायत के दर्जनों किसान उनकी राह पर चल पड़े। वे भी पारंपरिक धान और गेहूं की खेती छोड़कर नगदी फसलों की ओर रुख करने लगे। एक दिन, जब गांव के बुजुर्गों ने देखा कि पपीते के साथ-साथ राजेश ने पत्ता गोभी, फूल गोभी और धनिया भी लगाई है, तो उन्होंने कहा, “ये लड़का सच में गांव का नाम रोशन कर रहा है।
कहानी जो प्रेरणा बन गई
आज, राजेश का गांव कृषि विज्ञान केंद्र की “कृषि क्लस्टर योजना” में शामिल हो चुका है। इस योजना के तहत किसानों को एक एकड़ खेती पर एक लाख रुपये का अनुदान मिलता है।
राजेश के लिए यह सफर आसान नहीं था। लेकिन उनकी मेहनत, अनुशासन और वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने न सिर्फ उनकी जिंदगी बदली, बल्कि उनके गांव को भी खुशहाल बना दिया। उनका कहना है, “अगर किसान नई सोच और मेहनत से काम करें, तो खेती भी सोने की खान बन सकती है।”
सूरजपुर गांव के लोग अब राजेश को सिर्फ एक सैनिक नहीं, बल्कि एक ऐसे किसान के रूप में जानते हैं, जिसने अपने खेतों से सपनों की फसल उगाई।
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