May 31, 2025

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बाबा साहब को दबाने वाली कांग्रेस अब उनके नाम से कर रही राजनीति

डॉ. भीमराव आंबेडकर

डॉ. भीमराव आंबेडकर

  • आंबेडकर को हराने वाले अब बना रहे हैं ‘बाबा साहब’ का ब्रांड। राजनीतिक हाशिये पर धकेलने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

राष्ट्रीय : भारतीय राजनीति में डॉ. भीमराव आंबेडकर का नाम सामाजिक न्याय, अधिकारों और समानता का प्रतीक है। लेकिन कांग्रेस ने हमेशा आंबेडकर के साथ अपने स्वार्थ और सत्ता की राजनीति का खेल खेला। यह वही कांग्रेस है, जिसने आंबेडकर को राजनीतिक हाशिये पर धकेलने में कोई कसर नहीं छोड़ी और उनके खिलाफ हर मौके पर मोर्चा खोला। और आज, वही कांग्रेस आंबेडकर के नाम को भुनाकर अपना वोट बैंक मजबूत करने में जुटी है। यह सवाल उठता है कि क्या यह बाबा साहब के आदर्शों का सम्मान है या फिर महज कुर्सी की राजनीति का एक और हथकंडा?

1952 के चुनाव मे आंबेडकर के खिलाफ कांग्रेस का षड्यंत्र

1952 का उत्तर मुंबई लोकसभा चुनाव कांग्रेस और डॉ. आंबेडकर के बीच के राजनीतिक द्वंद्व की शुरुआत का प्रतीक है। इस चुनाव में कांग्रेस ने डॉ. आंबेडकर के खिलाफ उनके ही पूर्व सहयोगी एनएस काजोलकर को खड़ा किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्वयं इस चुनावी मैदान में हस्तक्षेप किया, यह सुनिश्चित करने के लिए कि आंबेडकर को हर हाल में हराया जाए। नेहरू ने उत्तर मुंबई क्षेत्र का दो बार दौरा किया और कांग्रेस ने आंबेडकर की समाज सुधारक छवि को कमजोर करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी।

चुनाव परिणाम आंबेडकर के लिए निराशाजनक थे। वह 15,000 वोटों से हार गए। कांग्रेस ने इस हार को उनके समाजवादी पार्टी से जुड़ाव के कारण बताने की कोशिश की, लेकिन सच्चाई यह थी कि कांग्रेस उनके सुधारवादी विचारों और मजबूत व्यक्तित्व से घबराई हुई थी।

संविधान सभा से बाहर रखने की गहरी साजिश

डॉ. आंबेडकर को संविधान सभा में प्रवेश से रोकने के लिए कांग्रेस ने योजनाबद्ध तरीके से षड्यंत्र रचा। 1946 में संविधान सभा के लिए चुने गए प्रारंभिक 296 सदस्यों में आंबेडकर का नाम नहीं था। बॉम्बे के मुख्यमंत्री बीजी खेर ने सरदार वल्लभभाई पटेल के कहने पर यह सुनिश्चित किया कि आंबेडकर संविधान सभा के सदस्य न बन पाएं।

यह कदम इस बात का प्रमाण था कि कांग्रेस डॉ. आंबेडकर की समाज सुधारक छवि और उनके विचारों को अपने राजनीतिक वर्चस्व के लिए खतरा मानती थी। लेकिन अंततः बंगाल के दलित वर्ग के सदस्यों ने आंबेडकर को संविधान सभा में चुना, और वह भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार बने।

1954 का उपचुनाव : कांग्रेस का एक और प्रयास

बंडारा लोकसभा उपचुनाव, 1954 में कांग्रेस ने एक बार फिर डॉ. आंबेडकर को हराने की पूरी कोशिश की। यह चुनाव भी कांग्रेस की उसी मानसिकता का हिस्सा था, जिसमें आंबेडकर को हराने और उनकी विचारधारा को दबाने का हरसंभव प्रयास किया गया।

आज के दौर में कांग्रेस का दोहरा मापदंड

वर्तमान समय में वही कांग्रेस, जिसने कभी आंबेडकर को हाशिये पर रखा था, आज उनके नाम को अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रही है। बाबा साहब को महिमामंडित करना और उनके नाम पर वोट मांगना कांग्रेस की राजनीति का नया चेहरा है। आंबेडकर के आदर्शों और उनके संघर्ष को सही मायनों में आत्मसात करने के बजाय, उनका नाम केवल एक चुनावी ब्रांड बनकर रह गया है। यह वही कांग्रेस है, जिसने कभी उनकी नीतियों और विचारों को खतरा मानते हुए हर कदम पर उन्हें रोका।

कांग्रेस की स्वार्थपूर्ण राजनीति का खुलासा

डॉ. आंबेडकर और कांग्रेस के संबंध भारतीय राजनीति में स्वार्थ और अवसरवाद का प्रतीक हैं। आंबेडकर का जीवन हमें सिखाता है कि सच्चे नेता अपने विचारों और समाज के प्रति प्रतिबद्धता से परिभाषित होते हैं। लेकिन कांग्रेस का रवैया यह दर्शाता है कि सत्ता के लिए विचारधारा और नैतिकता को कुर्बान करना राजनीति का आम चलन बन गया है।

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