गंगा में डुबकी से नहीं, श्रद्धा और पवित्रता से मिलता है पापों से मुक्ति

शत्रुघ्न प्रभु जी महाराज
डुबकी लगाने वाले कितने लोग असल में पापनाशिनी में स्नान करते हैं? शिव-पार्वती की कथा से जानें इसका रहस्य
वृंदावन से ✍अरुण शाही✍
हरिद्वार की गंगा किनारे ‘हर-हर गंगे’ का जयकारा लगाते हजारों भक्त, लेकिन क्या वे सच में अपने पापों का नाश कर पाते हैं? गंगा में डुबकी लगाना और पापनाशिनी गंगा में स्नान करना एक समान नहीं। वृंदावन के शत्रुघ्न प्रभु जी महाराज ने इस विषय पर एक दिलचस्प कथा सुनाई, जिसने गंगा स्नान के वास्तविक अर्थ को स्पष्ट किया।
उन्होंने कहा कि गंगा में हजारों लोग डुबकी लगाते हैं, लेकिन गंगा के पावन जल का फल उन्हीं को मिलता है, जो सच्चे मन और पवित्र भाव से स्नान करते हैं। शिव और पार्वती के हरिद्वार प्रवास से जुड़ी यह कथा हमारे विश्वास और भक्ति की गहराई को समझाती है।
एक बार हरिद्वार में घूमते हुए देवी पार्वती ने देखा कि सहस्रों लोग गंगा में स्नान कर रहे हैं, लेकिन उनके चेहरों पर दुःख और चिंता की छाया स्पष्ट थी। यह देखकर उन्होंने भगवान शिव से पूछा, “गंगा को पापनाशिनी कहा जाता है, फिर भी इन लोगों का पाप और दुख क्यों खत्म नहीं हो रहा?”
शिवजी ने उत्तर दिया, “प्रिये, गंगा की सामर्थ्य तो वैसी ही है, लेकिन इन लोगों ने असल में पापनाशिनी गंगा में स्नान नहीं किया है। मैं कल तुम्हें इसका रहस्य समझाऊंगा।”
अगले दिन शिवजी ने वृद्ध का रूप धारण किया और एक गहरे गड्ढे में गिरने का नाटक किया। उन्होंने पार्वती को निर्देश दिया कि वह आने-जाने वाले लोगों से मदद मांगे, लेकिन यह शर्त भी रखे कि जो भी निष्पाप होगा, वही उन्हें छू सकता है। अन्यथा वह भस्म हो जाएगा।
गंगा में स्नान कर लौटते सैकड़ों लोगों ने पार्वती की पुकार सुनी। कुछ दयालु थे, कुछ जिज्ञासु, लेकिन जब उन्होंने यह सुना कि केवल निष्पाप व्यक्ति ही शिवजी को छू सकता है तो हर कोई पीछे हट गया। भले ही वे गंगा में स्नान कर लौटे थे, लेकिन उनके भीतर अपने पापों का भय स्पष्ट था।
दिनभर लोग आते और चले जाते रहे, लेकिन किसी ने साहस नहीं किया। आखिरकार, एक युवक, जो गंगा स्नान कर लौटा था, पार्वती की मदद के लिए आगे बढ़ा। उसने निर्भीक होकर कहा, “माता, मैं अभी गंगा स्नान कर आया हूं। मेरे भीतर कोई पाप नहीं है। मैं आपके पति को बचाऊंगा।”
उस युवक ने शिवजी को गड्ढे से बाहर निकाला। तभी शिवजी और पार्वती ने अपना असली रूप दिखाकर उसे दर्शन दिए और कहा, “हजारों में से केवल तुमने ही गंगा में वास्तविक स्नान किया है।”
शत्रुघ्न प्रभु जी महाराज ने इस कथा के माध्यम से बताया कि गंगा स्नान केवल शरीर को जल में भिगोने की प्रक्रिया नहीं है। यह आत्मा की पवित्रता और श्रद्धा की परीक्षा है। गंगा का पावन जल तभी फलदायी होता है, जब हम अपने मन और हृदय को उसके प्रति समर्पित कर देते हैं।
शिव-पार्वती की यह कथा हमें सिखाती है कि गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि हमारी आस्था और विश्वास का प्रतीक है। गंगा में स्नान तभी सार्थक होता है, जब हम अपने भीतर के पापों को त्यागकर सच्चे मन से गंगा की शरण में जाएं।
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