दुनिया के 70 और भारत के 30 नववर्ष : विविधता और परंपराओं का जश्न

नववर्ष 2025
हर दिन, हर कोने में नया साल; परंपराओं का अद्भुत संगम।
एनके मिश्रा, नई दिल्ली
दुनिया भर में हर साल करीब 70 नववर्ष अलग-अलग तारीखों पर मनाए जाते हैं। इनमें सबसे अधिक प्रचलित ग्रेगेरियन कैलेंडर है, जिसे 24 फरवरी 1582 को पोप ग्रेगरी-13 ने लागू किया था। इस कैलेंडर के अनुसार, 01 जनवरी को अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और यूनाइटेड किंगडम सहित कई देशों में नया साल मनाया जाता है।
हालांकि, अन्य परंपराओं और संस्कृतियों में भी नववर्ष का विशेष स्थान है। मिस्र में 07 जनवरी, प्राचीन स्कॉटिश परंपरा में 11 जनवरी, इबान वैली में 12 जनवरी, और सोवियत रूस व रोम में 14 जनवरी को नया साल मनाने की परंपरा है। वहीं, चीन, कोरिया और वियतनाम जैसे देश 21 जनवरी को अपना नववर्ष मनाते हैं।
भारत: परंपराओं से सजी नववर्ष की अनोखी यात्रा
भारत में नववर्ष का मतलब केवल एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि 30 से अधिक अलग-अलग परंपराओं और तिथियों का सम्मान है। यहां नानकशाही कैलेंडर 14 मार्च से शुरू होता है। ज्योतिषीय वर्ष 21 मार्च और शक संवत 22 मार्च से आरंभ होता है। 04 अप्रैल को विक्रम संवत और गुड़ी पड़वा जैसे मराठी नववर्ष का जश्न शुरू होता है।
सिखों की वैशाखी, कश्मीरी नववर्ष और बंगाल के वैशाख का नववर्ष 10 से 14 अप्रैल के बीच मनाया जाता है। असम में यह 15 अप्रैल, बुद्ध नववर्ष 17 अप्रैल, और पारसी नववर्ष 22 अप्रैल से आरंभ होता है। मलयालम वर्ष का आरंभ 01 अगस्त से होता है। वहीं, मारवाड़ी और गुजराती नववर्ष क्रमश: 26 और 27 अक्टूबर को मनाए जाते हैं। इस्लामिक हिजरी वर्ष 27 नवंबर और सिक्किम व किसान नववर्ष दिसंबर में मनाए जाते हैं।
संस्कृतियों की धरोहर
ये विविधताएं केवल तिथियों का बदलाव नहीं हैं, बल्कि यह दर्शाती हैं कि हर संस्कृति का अपना ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। दुनियाभर के कैलेंडर इस बात का प्रतीक हैं कि समय को मापने का तरीका भले अलग हो, लेकिन जश्न और एकजुटता का उद्देश्य समान है।
नववर्ष का संदेश:
इन तमाम नववर्षों की एक बात समान है—नए अवसरों का स्वागत और पिछली गलतियों से सीख लेकर आगे बढ़ने का संकल्प। चाहे वह ग्रेगेरियन हो, शक संवत हो, या हिजरी—हर नववर्ष हमें जीवन को नए दृष्टिकोण से देखने का अवसर देता है।
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