पूर्वी चंपारण : 750 वर्ष पुराना ऐतिहासिक घोड़दौड़ पोखर पर अतिक्रमण का साया

पूर्वीचंपारण
पर्यटक स्थल के विकास में अतिक्रमण बना सबसे बड़ी बाधा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की घोषणा की है
पूर्वी चंपारण से नीरज कुमार की रिपोर्ट…
बिहार के पूर्वी चंपारण जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर पूर्व बागमती नदी के किनारे पताही प्रखंड मुख्यालय से लगभग नौ किलोमीटर उत्तर में स्थित 750 वर्ष पुराना पदुमकेर पंचायत का ऐतिहासिक घोड़दौड़ पोखर अपने गौरवशाली इतिहास के लिए प्रसिद्ध रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की घोषणा की है, लेकिन इस ऐतिहासिक स्थल पर फैला अतिक्रमण उसकी बदहाली का मुख्य कारण बन गया है।
अतिक्रमणकारियों ने पोखर की जमीन पर पक्के मकानों का निर्माण कर लिया है। यह तालाब लगभग 100 एकड़ में चार हिस्सों में बंटा हुआ है। ग्रामीण बताते हैं कि इस ऐतिहासिक पोखर को कृषि, सिंचाई और मत्स्य पालन के लिए पहले उपयोग में लाया गया था। लेकिन समय के साथ इसके तटबंध और व्यवस्थाएं ध्वस्त हो गईं।
गौरवशाली इतिहास और जनश्रुतियां
घोड़दौड़ पोखर की खुदाई 1413-1416 के बीच मिथिला के ओइनवार वंश के राजा शिव सिंह के शासनकाल में कराई गई थी। जनश्रुतियों के अनुसार, राजा शिव सिंह इस क्षेत्र में बीमार पड़ गए थे, और उनका इलाज यहां के जंगलों में किया गया था। स्वस्थ होने पर उन्होंने यहां एक विशाल यज्ञ कराया, जिसके हवन कुंड से निकलने वाली घी की सुगंध के कारण इस क्षेत्र की भूमि को विशिष्ट माना गया। इस भूमि पर उगाए जाने वाले “पदमुकेरिया चावल” को लेकर कहा जाता है कि इसमें घी की सुगंध और स्वाद होता था। यह चावल देश के विभिन्न हिस्सों में आज भी बेचा जाता है। हालांकि, 1993 की विनाशकारी बाढ़ ने इस क्षेत्र को काफी नुकसान पहुंचाया।
पुरातात्विक और सांस्कृतिक महत्व
तालाब के दक्षिणी तटबंध पर कई काले पत्थर की मूर्तियां आज भी विद्यमान हैं, जो पुरातात्विक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इन मूर्तियों की पहचान से इस क्षेत्र के इतिहास को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। यह इलाका संत महात्माओं की साधना स्थली के रूप में भी प्रसिद्ध है। संत हीरादास, ठरेसरी बाबा, और अन्य महात्माओं ने यहां दीर्घकालीन अनुष्ठान और यज्ञ संपन्न कराए थे।
ग्रामीणों की सक्रियता और मांगें
1974 में पंचायत मुखिया गिरीशनंदन पांडेय ने तालाब के तटबंधों की मरम्मत कराई और सिंचाई के लिए स्लूइस गेट और ह्यूम पाइप लगवाए। बाद में 1995 में प्रोफेसर राम निरंजन पांडेय और कैप्टन श्याम निरंजन पांडेय ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग की। वर्ष 2012 में मुख्यमंत्री से व्यक्तिगत मुलाकात के जरिए इस तालाब के विकास की बात उठाई गई। इसके बाद 2017 और 2019 में भी विभिन्न सरकारी विभागों से इसे विकसित करने के लिए अनुरोध किया गया।
अतिक्रमण और विकास की राह में बाधाएं
तालाब के किनारे सैकड़ों मकानों का निर्माण हो गया है, जो इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने में सबसे बड़ी बाधा हैं। ग्रामीणों का कहना है कि अतिक्रमणकारियों को पुनर्वासित कर तालाब को पर्यटन और कृषि के लिए उपयुक्त बनाना जरूरी है।
मुख्यमंत्री की घोषणा से उम्मीदें
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की घोषणा ने ग्रामीणों को नई उम्मीद दी है। उनका मानना है कि इस तालाब का विकास न केवल इतिहास की रक्षा करेगा बल्कि स्थानीय रोजगार और राजस्व बढ़ाने में भी सहायक होगा। ग्रामीणों ने कहा, “घोड़दौड़ पोखर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना क्षेत्र के आर्थिक और सांस्कृतिक उत्थान के लिए जरूरी है। यह हमारी धरोहर है, और इसका संरक्षण हमारी जिम्मेदारी है।”
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