April 19, 2025

खबरी चिरईया

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सच्ची भक्ति की मिसाल है शबरी की कथा

आचार्य पंडित शत्रुघ्न प्रभु जी महाराज

आचार्य पंडित शत्रुघ्न प्रभु जी महाराज

भगवान राम ने अपने हाथों से शबरी को मोक्ष प्रदान किया, शबरी ने उनके सामने ही अपना शरीर त्याग दिया

अरुण शाही, बिहार

वृंदावन धाम के आचार्य पंडित शत्रुघ्न प्रभु जी महाराज माता शबरी की कथा को विस्तार से कहते हैं। उन्होंने बताया कि यह कथा भगवान राम के जन्म से पहले की है, जब भील आदिवासी कबीले के मुखिया अज के घर बेटी पैदा हुई थी। उसका एक नाम श्रमणा और दूसरा नाम शबरी रखा गया। शबरी की मां इन्दुमति उसे खूब प्यार करती थीं।

बचपन से ही शबरी पशु-पक्षियों की भाषा समझकर उनसे बातें करती थीं, और जब शबरी की मां उसे देखतीं, तो वह कुछ समझ नहीं पाती थीं। कुछ समय बाद एक पंडित ने शबरी के परिवार को बताया कि वह आगे चलकर संन्यासी बन सकती है। इस बात का पता चलते ही शबरी के पिता ने उसका रिश्ता तय कर दिया। जैसे ही शादी का दिन नजदीक आया, शबरी के घर वालों ने खूब सारी बकरियां और अन्य जानवर घर के पास लाकर बांध दिए। एक दिन, जब शबरी की मां उसके बाल बना रही थीं, तो उसने मां से पूछा, “इतने सारे जानवर हमारे घर क्यों लाए गए हैं?”…।

मां ने जवाब दिया, “बेटी, तुम्हारा विवाह होने वाला है, इसलिए हम लोगों ने इनका इंतजाम बलि के लिए किया है। तुम्हारी शादी के दिन ही बलि प्रथा होगी और फिर इनसे स्वादिष्ट भोजन बनेगा।” यह सब सुनकर शबरी दुखी हो गई। उसने काफी देर तक सोचा कि इन जानवरों को कैसे बचाया जाए। सोचते-सोचते शबरी के मन में यह विचार आया कि अगर ये जानवर यहां नहीं होंगे, तो बलि रुक सकती है।

घर का त्याग

जब यह संभव नहीं हुआ, तो शबरी ने सोचा कि मेरे घर से कहीं चले जाने पर ही यह बलि रुकेगी। उसने निश्चय किया कि वह अपने घर से दूर चली जाएगी। जब मैं ही नहीं रहूंगी, तब न विवाह होगा और न ही बलि प्रथा। इससे मासूम जानवर बच जाएंगे। इसी सोच के साथ, वह जानवरों को रखी गई जगह पर पहुंची। उसने सोचा कि उन्हें खोल देती हूं, लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाई। इसके बाद शबरी जंगल की तरफ भागने लगी। भागते-भागते वह ऋषिमुख पर्वत पहुंच गई।

वहां करीब दस हजार ऋषि रहा करते थे। शबरी ने सोचा कि वह भी इसी जंगल में किसी तरह ऋषि-मुनियों की सेवा करके अपना जीवन जी लेगी। वह चुपचाप उसी जंगल के एक हिस्से में किसी तरह से रहने लगी। शबरी रोजाना ऋषि-मुनियों की झोपड़ी के आगे झाड़ू लगाती और हवन के लिए लकड़ियां भी लाकर रख देती।

जातिगत भेदभाव और अपमान

ऋषि-मुनियों को समझ नहीं आ रहा था कि जंगल में उनके काम अपने आप कैसे हो रहे हैं। एक दिन, एक ऋषि ने शबरी को देख लिया। उसे देखते ही उसका परिचय पूछा। जैसे ही शबरी ने बताया कि वह भील आदिवासी परिवार से संबंध रखती है, तो उसे ऋषियों ने खूब डांट लगाई। शबरी को इस बात का बिल्कुल भी पता नहीं था कि उसकी जाति छोटी मानी जाती है और उसे ऋषियों द्वारा जातिगत भेदभाव और अपमान सहन करना पड़ेगा। इतना सब होने के बाद भी शबरी हर ऋषि-मुनि के दरवाजे पहुंचती और उनके आंगन में झाड़ू लगाकर उनसे गुरु दीक्षा देने के लिए कहती। हर कोई शबरी को उसकी जाति की वजह से अपने आश्रम से भगा देता था।

मतंग ऋषि का सानिध्य

ऐसा होते-होते काफी समय बीत गया। इसके बाद शबरी मतंग ऋषि की कुटिया में पहुंची। वहां पहुंचकर शबरी ने मतंग ऋषि से प्रार्थना की कि वह उनसे गुरु दीक्षा लेना चाहती हैं। उन्होंने खुशी-खुशी उसे अपने गुरुकुल में रहने दिया और भगवान से जुड़ा ज्ञान दिया। शबरी ने भी अपने गुरु मतंग ऋषि की सेवा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वह गुरुकुल के भी सारे काम करती थीं। शबरी से खुश होकर मतंग ऋषि ने उसे अपनी बेटी मान लिया था।

भगवान राम के आगमन की भविष्यवाणी

समय के साथ, मतंग ऋषि का शरीर बूढ़ा हो गया। उन्होंने एक दिन शबरी को अपने पास बुलाया और कहा, “बेटी, मैं अपना देह त्यागना चाह रहा हूं। बहुत साल हो गए इस शरीर में रहते-रहते।” शबरी ने दुखी मन से कहा, “आपके ही सहारे मैं इस जंगल में रह पाई हूं। आप ही चले जाएंगे, तो मैं जीकर क्या करूंगी। आप अपने संग मुझे भी ले जाइए। मैं भी देह त्याग दूंगी।”

मतंग ऋषि ने जवाब दिया, “बेटी, तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है। राम तुम्हारी चिंता करेंगे और ध्यान भी रखेंगे।” शबरी ने ‘राम’ का नाम सुनकर पूछा, “वह कौन हैं और उन्हें मैं किस तरह से ढूंढूंगी?”…मंतग ऋषि ने बताया, “राम कोई और नहीं भगवान हैं। वह तुम्हें सारे अच्छे कर्मों का फल देंगे। तुम्हें उन्हें ढूंढने की कोई जरूरत नहीं है। वह एक दिन खुद तुम्हें खोजते हुए इस कुटिया में आएंगे और तुम्हें उनके हाथों ही मोक्ष मिलेगा। तब तक तुम इसी आश्रम में रहो।” इतना कहते ही मंतग ऋषि ने अपना शरीर त्याग दिया।

राम का इंतजार और उनकी भेंट

शबरी के मन में मंतग ऋषि के जाने के बाद से एक ही बात थी कि भगवान राम स्वयं उनसे मिलने आएंगे। वह रोज भगवान राम से मिलने के लिए बाग से अच्छे-अच्छे फूल लाकर पूरा आश्रम सजातीं और भगवान के लिए बेर तोड़कर लातीं। बेर चुनते हुए वह उन्हें चख लेती थीं ताकि भगवान को सिर्फ मीठे बेर ही मिलें।

इसी तरह इंतजार में कई साल बीत गए। शबरी का शरीर एकदम वृद्ध हो गया। एक दिन, भगवान राम और लक्ष्मण सीता की खोज में उस आश्रम पहुंचे। शबरी ने बड़े प्रेम से उनका स्वागत किया। उन्होंने भगवान को अपने प्रेम और समर्पण से तैयार किए गए झूठे बेर खिलाए। भगवान राम ने अपने हाथों से शबरी को मोक्ष प्रदान किया। शबरी ने उनके सामने ही अपना शरीर त्याग दिया। भगवान राम ने स्वयं उनका अंतिम संस्कार किया।

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