महाकुंभ की कहानी : गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर 45 दिनों का अद्वितीय आयोजन, धार्मिकता और आधुनिकता का अनोखा मेल

महाकुंभ मेले की उत्पत्ति पौराणिक कथाओं से जुड़ी हुई है, जिसमें देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन की घटना का वर्णन मिलता है
Khabari Chiraiya Desk : गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती के संगम पर बसी प्रयागराज नगरी एक बार फिर से आध्यात्मिकता और आस्था के महापर्व की मेजबानी करने को तैयार है। यहां 13 जनवरी से शुरू हो रहे महाकुंभ में दुनिया भर से करोड़ों श्रद्धालु जुटेंगे। संगम पर 45 दिनों तक चलने वाला यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र होगा, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और प्रशासनिक कुशलता का भी परिचय देगा।
कुंभ का नया स्वरूप और ऐतिहासिक महत्व
हर 12 साल में होने वाला यह महापर्व अब “महाकुंभ” के नाम से जाना जाता है। यह नाम उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2018 में लागू किया गया। इस आयोजन का न केवल धार्मिक महत्व है, बल्कि यह देश की सांस्कृतिक विविधता का प्रतिबिंब भी है। प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद कहा जाता था, का नाम बदलकर इसके ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को दोबारा स्थापित किया गया।
भव्य तैयारी: 410 परियोजनाएं पूरी
महाकुंभ के लिए 4 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में एक अस्थायी जिला बसाया गया है। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार ने 12,670 करोड़ रुपये की लागत से 410 से अधिक परियोजनाओं को पूरा किया है। बिजली, पानी, कचरा प्रबंधन, सुरक्षा, यातायात और आपातकालीन सेवाओं के लिए अत्याधुनिक सुविधाएं तैयार की गई हैं। लगभग 40 करोड़ श्रद्धालुओं के आगमन की संभावना के साथ यह आयोजन प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है।
प्रयागराज बनेगा भव्य आध्यात्मिक नगरी
संगम किनारे बसाए गए अस्थायी टेंट शहर को आधुनिक सुविधाओं से लैस किया गया है। वाराणसी की तर्ज पर गंगा आरती का आयोजन और रिवर क्रूज सेवा इसे और आकर्षक बनाएगी। 13,000 से अधिक ट्रेनें और 250 अतिरिक्त उड़ानों के साथ देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां पहुंच सकेंगे। पांच लाख वाहनों के लिए 100 से अधिक पार्किंग स्थल और बहुभाषी गाइड भी उपलब्ध होंगे।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों से सजेगा महाकुंभ
महाकुंभ न केवल आध्यात्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का उत्सव भी है। प्रसिद्ध गायक और कलाकार जैसे शंकर महादेवन, कैलाश खेर, सोनू निगम और हेमा मालिनी अपनी प्रस्तुतियों से इसे और खास बनाएंगे। कवि सम्मेलन, नृत्य, शास्त्रीय संगीत और सांस्कृतिक सत्र भी श्रद्धालुओं के अनुभव को यादगार बनाएंगे।
आस्था और प्रशासन का मेल
महाकुंभ का आयोजन केवल एक धार्मिक समारोह नहीं, बल्कि यह प्रशासनिक कौशल और भारतीय धरोहर का प्रदर्शन है। आधुनिक तकनीक और योजनाबद्ध प्रयासों से यह आयोजन एक मिसाल बनेगा।
आगामी 45 दिनों का महापर्व
महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में उमड़ने वाली आस्था और विश्वास की लहर न केवल देश, बल्कि दुनिया भर के श्रद्धालुओं को आकर्षित करेगी। यह आयोजन भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को उजागर करते हुए श्रद्धालुओं के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव साबित होगा।
महाकुंभ मेले की पौराणिक कथा
महाकुंभ मेले की उत्पत्ति पौराणिक कथाओं से जुड़ी हुई है, जिसमें देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन की घटना का वर्णन मिलता है। इस कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र का मंथन किया। इस मंथन से 14 रत्न निकले, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण अमृत कलश था। अमृत को लेकर देवताओं और असुरों के बीच 12 दिवसीय भीषण युद्ध छिड़ गया।
कहते हैं कि इस घमासान युद्ध के दौरान, अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें धरती के चार स्थानों पर गिरीं। ये स्थान हैं: प्रयागराज (उत्तर प्रदेश), हरिद्वार (उत्तराखंड), उज्जैन (मध्य प्रदेश), और नासिक (महाराष्ट्र)। इन चारों स्थानों को अत्यंत पवित्र माना गया, और यही वजह है कि इन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
महाकुंभ के शाही स्नान की तिथियां इस प्रकार हैं : 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा, 14 जनवरी 2025 को मकर संक्रांति, 29 जनवरी 2025 को मौनी अमावस्या, 3 फरवरी 2025 को वसंत पंचमी, 4 फरवरी 2025 को अचला नवमी, 12 फरवरी 2025 को माघी पूर्णिमा और 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि।
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