पंच शिला पूजन से मिलता है संपूर्ण ब्रह्मांड का आशीर्वाद

वृंदावन की माता गीता देवी ने बताया इसका रहस्य, शालिग्राम और बांण लिंग का व्यापार क्यों है शास्त्र वर्जित
Khabari Chiraiya Desk वृंदावन : सनातन हिंदू धर्म में प्रकृति और ईश्वर का गहरा संबंध है। इस संबंध को परिभाषित करने वाली कई परंपराओं में ‘पंच शिला’ का विशेष स्थान है। वृंदावन धाम की सुप्रसिद्ध संत माता गीता देवी बताती हैं कि इन पांच शिलाओं का पूजन केवल एक धार्मिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड के देवताओं का पूजन करने के समान है। इन शिलाओं को ‘पंचायतन देवता’ कहा जाता है, जो भगवान के निर्गुण और निराकार स्वरूप का प्रतीक मानी जाती हैं।
माता गीता देवी कहती हैं कि इन शिलाओं में दिव्य ऊर्जा समाहित है। पूजन करते समय भक्तों को अपार शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव होता है। आइए, इन पंच शिलाओं के महत्व और पूजन विधि को विस्तार से समझते हैं।
पंच शिलाओं की उत्पत्ति और महत्व
सनातन धर्म में पंच शिलाओं का वर्णन शास्त्रों में गहन रूप से किया गया है। यह पांच शिलाएं ईश्वर के विभिन्न स्वरूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं और उनमें ब्रह्मांडीय ऊर्जा समाहित होती है।
माता गीता देवी के अनुसार, सोनभद्र नदी से प्राप्त रक्तवर्ण की सोनभद्राशिला में महागणपति का वास होता है। इस शिला का पूजन बुद्धि और समृद्धि प्रदान करता है। गोदावरी नदी से मिलने वाली स्वर्णमुखी शिला, मां भगवती का प्रतीक मानी जाती है। इसे पूजने से शक्ति और साहस का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
स्फटिक शिला, जो हिमालय में पाई जाती है, भगवान सूर्य नारायण का प्रतीक है। इसकी पारदर्शिता दिव्यता और आध्यात्मिक ऊर्जा को दर्शाती है। नर्मदा नदी से उत्पन्न बांण लिंग, भगवान शिव के साक्षात स्वरूप का प्रतीक है। इसे पूजने से शिव का आशीर्वाद मिलता है। कृष्ण गंडक नदी की शालिग्राम शिला भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप को दर्शाती है। इसमें चक्र की आकृति होती है, जो सृष्टि के पालनहार की शक्ति को प्रकट करती है।
पंचायतन पूजन की विधि और लाभ
पंच शिलाओं का पूजन विधि विशेष रूप से शास्त्रों में वर्णित है। पूजन करते समय अपने इष्ट देव को मध्य में स्थापित किया जाता है और शेष चार शिलाओं को चारों दिशाओं में रखा जाता है। माता गीता देवी बताती हैं कि इस विधि से संपूर्ण ब्रह्मांड के देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। यह पूजा न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है, बल्कि यह जीवन में संतुलन और सकारात्मकता भी लाती है।
माता के अनुसार, पंच शिलाओं का पूजन ब्रह्मांडीय शक्तियों का प्रतीक है। यह हमें यह समझने का अवसर देती है कि सभी शक्तियां एक ही ईश्वर के विभिन्न रूप हैं।
शालिग्राम और बांण लिंग का व्यापार: शास्त्रों की सख्त मनाही
माता गीता देवी ने शालिग्राम और बांण लिंग के व्यापार को लेकर शास्त्रों के निर्देशों का उल्लेख किया। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इन शिलाओं का व्यापार करना अपराध की श्रेणी में आता है। इसे ईश्वर की कृपा का व्यवसायिकरण माना गया है, जो शास्त्र सम्मत नहीं है। भक्तों को सलाह दी जाती है कि वे इन शिलाओं को उनके प्राकृतिक स्रोतों से ही प्राप्त करें और श्रद्धा से पूजन करें।
पंच शिला की पूजा: ब्रह्मांडीय ऊर्जा का अनुभव
पंच शिलाओं का पूजन केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि आत्मा और ब्रह्मांडीय ऊर्जा को जोड़ने का माध्यम है। वृंदावन धाम की माता गीता देवी के अनुसार, यह पूजा भक्तों को न केवल ईश्वर के निकट लाती है, बल्कि उनके जीवन को संतुलित और समृद्ध भी बनाती है।
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