बिहार बोर्ड परीक्षा में कड़े नियमों से अनुशासन या अनावश्यक सख्ती?

इंटरमीडिएट की परीक्षा 1 फरवरी से 15 फरवरी तक चलेगी, जबकि मैट्रिक परीक्षा 17 फरवरी से 25 फरवरी तक आयोजित होगी
Khabari Chiraiya Desk अरुण शाही, बिहार
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (BSEB) द्वारा इंटरमीडिएट और मैट्रिक परीक्षा के लिए कड़े दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। इंटरमीडिएट की परीक्षा 1 फरवरी से 15 फरवरी तक चलेगी, जबकि मैट्रिक परीक्षा 17 फरवरी से 25 फरवरी तक आयोजित होगी। परीक्षाओं की शुचिता बनाए रखने के लिए सख्ती जरूरी है, लेकिन क्या यह सख्ती छात्रों के लिए अनावश्यक कठिनाइयाँ खड़ी कर रही है? जूता-मोजा पहनकर परीक्षा देने पर रोक लगाने का तर्क चाहे जो भी हो, पर क्या यह वास्तव में नकल रोकने का कारगर उपाय साबित होगा?
बीएसईबी ने यह निर्देश जारी किया है कि परीक्षार्थी केवल चप्पल पहनकर ही परीक्षा केंद्र में प्रवेश कर सकते हैं। इस नियम का तर्क यह दिया जाता है कि जूते-मोजे में पर्चियां छुपाने की संभावना रहती है, लेकिन क्या सचमुच यह एक प्रभावी कदम है? कई राज्यों में परीक्षा प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए सीसीटीवी निगरानी, जैमर और अन्य तकनीकी उपाय अपनाए जा रहे हैं, जबकि बिहार में इस तरह के प्रतीकात्मक नियमों को ही ज्यादा महत्व दिया जाता है।
छात्रों को मानसिक रूप से परीक्षा के लिए तैयार रहने की जरूरत होती है, और ऐसे कठोर नियम कहीं न कहीं उनके आत्मविश्वास को प्रभावित कर सकते हैं। सर्दी के मौसम में जूता-मोजा पहनने पर रोक लगाने से छात्र असुविधा महसूस कर सकते हैं, जिससे उनका ध्यान परीक्षा पर केंद्रित होने के बजाय बाहरी परिस्थितियों में उलझ सकता है।
परीक्षा केंद्रों पर प्रबंधन और सुरक्षा के सवाल
इस साल इंटरमीडिएट परीक्षा में 12.90 लाख छात्र शामिल होंगे और परीक्षा के लिए 1500 से अधिक केंद्र बनाए गए हैं। परीक्षा से आधे घंटे पहले तक ही प्रवेश देने की गाइडलाइन भी जारी की गई है। यह सुनने में तर्कसंगत लगता है, लेकिन व्यावहारिक चुनौतियाँ भी हैं। बिहार के कई क्षेत्रों में परीक्षा केंद्रों तक पहुँचने के लिए छात्रों को लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। ट्रैफिक, परिवहन की कमी और अन्य कारणों से कई बार छात्र समय पर नहीं पहुँच पाते। अगर परीक्षार्थी एक-दो मिनट की देरी से आते हैं, तो क्या उन्हें परीक्षा से वंचित कर देना न्यायोचित होगा?
सख्ती से ज्यादा जरूरी तकनीकी उपाय
बिहार बोर्ड हर साल नकल रोकने के लिए नए-नए नियम बनाता है, लेकिन सवाल यह है कि यह नकल रोकने के स्थायी समाधान हैं या सिर्फ परीक्षा के दौरान दिखावटी सख्ती?
आज के डिजिटल युग में परीक्षा में नकल रोकने के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग किया जा सकता है। जैमर, बॉयोमेट्रिक उपस्थिति, सीसीटीवी निगरानी और डिजिटल प्रश्न पत्र जैसी व्यवस्थाएँ अपनाने से नकल रोकने में अधिक प्रभावी परिणाम मिल सकते हैं। सिर्फ कपड़ों और जूतों पर पाबंदी लगाना समस्या का समाधान नहीं है।
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