सिकंदरपुर मुक्तिधाम में जलती चिताओं के बीच जल रहा ज्ञान का दीप

‘अप्पन पाठशाला’
‘अप्पन पाठशाला’ नाम की यह रोशनी उन बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल कर रही है
अरुण शाही, मुजफ्फरपुर
बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित सिकंदरपुर मुक्तिधाम में जहां दिन-रात चिताएं जलती हैं, वहां शाम ढलते ही कुछ और भी जलता है-ज्ञान की ज्योति। लोग इस जगह को श्मशान घाट कहते हैं, जहां जिंदगी की अंतिम विदाई होती है, लेकिन इसी विदाई स्थल पर एक नई जिंदगी की शुरुआत भी हो रही है। ‘अप्पन पाठशाला’ नाम की यह रोशनी उन बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल कर रही है, जिन्हें शिक्षा हासिल करने के अवसर मुश्किल से मिलते हैं। इस अनोखी पाठशाला के संस्थापक और संचालक सुमित कुमार हैं, जिन्होंने आठ साल पहले इस मुहिम की शुरुआत की थी।
श्मशान के बीच क्यों जलाई शिक्षा की लौ?
सुमित कुमार बताते हैं कि उन्होंने इस जगह को इसलिए चुना क्योंकि समाज के सबसे उपेक्षित और जरूरतमंद बच्चों को यहां इकट्ठा करना आसान था। मुक्तिधाम के आसपास कई गरीब परिवार रहते हैं, जिनके बच्चे अक्सर शिक्षा से दूर रह जाते हैं। स्कूलों में दाखिला लेने या ट्यूशन पढ़ने का खर्च उठाना उनके लिए संभव नहीं होता। ऐसे में ‘अप्पन पाठशाला’ ने इन बच्चों के लिए शिक्षा का द्वार खोल दिया।
शिक्षा का अनोखा मंदिर, जहां सीनियर बच्चे बनते हैं शिक्षक
इस पाठशाला में कक्षा एक से दस तक के करीब 230 से 235 बच्चे पढ़ाई करते हैं। दिलचस्प बात यह है कि यहां पढ़ाने के लिए सिर्फ एक ही नियमित शिक्षक हैं-सुमित कुमार। हालांकि, इस पाठशाला की खासियत यह है कि सीनियर छात्र खुद जूनियर बच्चों को पढ़ाते हैं। यह व्यवस्था न केवल छोटे बच्चों को मदद देती है बल्कि सीनियर छात्रों को भी सिखाने का अवसर देती है, जिससे उनकी अपनी समझ मजबूत होती है।
हर शाम खुलता है यह विशेष विद्यालय
‘अप्पन पाठशाला’ रोज़ शाम 4:00 बजे से 7:30 बजे तक चलता है। यहां पढ़ने वाले बच्चों को पूरी तरह निःशुल्क शिक्षा दी जाती है। जब कोई मददगार सहयोग करना चाहता है, तो उसे कापी, पेंसिल, किताबें, बैग जैसी जरूरत की चीजें देने की सलाह दी जाती है, ताकि बच्चों की पढ़ाई बिना किसी रुकावट के जारी रह सके।
सुमित कुमार का सपना: शिक्षा से मिटे ऊंच-नीच की खाई
सुमित कुमार का मानना है कि समाज में फैली ऊंच-नीच की खाई को सिर्फ शिक्षा से भरा जा सकता है। वे कहते हैं, “अगर हम समाज के सबसे अंतिम पायदान पर खड़े बच्चों को शिक्षित कर पाए, तो यही असली बदलाव होगा।” इसी सोच के साथ वे अपने स्तर पर बच्चों के लिए पढ़ाई की सामग्री जुटाते हैं और बिना किसी सरकारी मदद के इस पाठशाला को चला रहे हैं।
ज्ञान की यह मशाल कब तक जलती रहेगी?
यह पाठशाला सिर्फ एक शिक्षण केंद्र नहीं, बल्कि एक आंदोलन है-शिक्षा का आंदोलन, बदलाव का आंदोलन। यह प्रयास कब तक जारी रहेगा, इस पर सुमित कुमार सिर्फ इतना कहते हैं, “जब तक जरूरत है, तब तक अप्पन पाठशाला का दीप जलता रहेगा।” श्मशान घाट में जहां जिंदगी खत्म होती है, वहां से एक नई शुरुआत हो रही है। ‘अप्पन पाठशाला’ न केवल इन बच्चों को शिक्षा दे रही है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर और सशक्त बना रही है। यह सिर्फ एक पाठशाला नहीं, बल्कि उम्मीद की वह रोशनी है, जो अंधेरे में भी जल रही है।
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