दिल्ली में अरविंद केजरीवाल चुनाव हारे
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अरविंद केजरीवाल
भ्रष्टाचार के आरोपों और रणनीतिक गलतियों से टूटा जनता का भरोसा, विपक्षी दलों के I.N.D.I.A गठबंधन की कमजोरी और समन्वय की कमी भी AAP के लिए नुकसानदेह साबित हुई
Khabari Chiraiya Desk : दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (AAP) के संयोजक अरविंद केजरीवाल आज चुनाव हार गए। यह सिर्फ एक सीट गंवाने का मामला नहीं, बल्कि उनकी राजनीति, कार्यशैली और जनता के विश्वास में आई गिरावट का संकेत है। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से राजनीति में कदम रखने वाले केजरीवाल के लिए यह हार एक गंभीर झटका है, जिसने उनकी पार्टी की साख और भविष्य पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। दिल्ली की जनता ने 2013, 2015 और 2020 में उन पर भरोसा जताया था, लेकिन 2025 के चुनाव में उनकी स्वीकार्यता घट गई। उनकी इस चुनाव में हार से यह भी साफ होता है कि सिर्फ लोकलुभावन योजनाओं के सहारे लंबे समय तक सत्ता में बने रहना मुश्किल है।
इस चुनाव में अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। सबसे बड़ा झटका उन्हें शराब नीति घोटाले के आरोपों से लगा, जिसने उनकी छवि को गहरा नुकसान पहुंचाया। आम आदमी पार्टी की राजनीति की बुनियाद ही भ्रष्टाचार विरोध पर टिकी थी, लेकिन जब उनकी ही सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, तो जनता का भरोसा डगमगा गया। इस घोटाले में पार्टी के कई बड़े नेता जांच के घेरे में आए, और खुद केजरीवाल भी गिरफ्तारी से नहीं बच सके। इसने जनता के बीच यह संदेश दिया कि जो नेता खुद को ईमानदार कहकर सत्ता में आए थे, वे भी सत्ता में रहते हुए अनियमितताओं में फंस गए।
इसके अलावा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता ने भी आम आदमी पार्टी की उम्मीदों को झटका दिया। दिल्ली में भाजपा का संगठन लगातार मजबूत हो रहा था, और केजरीवाल सरकार पर सवाल उठाने का कोई भी मौका नहीं गंवाया गया। दिल्ली की राजनीति में अब तक भाजपा को कमजोर माना जाता था, लेकिन इस चुनाव में मोदी लहर ने AAP को पूरी तरह बैकफुट पर धकेल दिया। इसके साथ ही, विपक्षी दलों के I.N.D.I.A गठबंधन की कमजोरी और समन्वय की कमी भी AAP के लिए नुकसानदेह साबित हुई। चुनावी रणनीति में गलतियों और गठबंधन में तालमेल की कमी के कारण पार्टी जनता से जुड़ने में नाकाम रही।
केजरीवाल की राजनीति की सबसे बड़ी ताकत उनकी मुफ्त योजनाएं रही हैं, लेकिन इस बार ये भी उन्हें जीत नहीं दिला पाईं। दिल्ली में मुफ्त बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को जनता ने लंबे समय तक सराहा, लेकिन इस बार के चुनाव में यह मुद्दे प्रभावी नहीं रहे। जनता अब सिर्फ मुफ्त योजनाओं के आधार पर वोट देने के लिए तैयार नहीं दिखी, बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दे भी महत्वपूर्ण हो गए। इसके अलावा, दिल्ली में प्रदूषण, ट्रैफिक, कानून-व्यवस्था और एमसीडी में सरकार की निष्क्रियता जैसे मसलों ने AAP सरकार की छवि को और कमजोर किया।
अरविंद केजरीवाल ने अपनी राजनीतिक यात्रा एक ईमानदार और जनता के हितों के लिए लड़ने वाले नेता के रूप में शुरू की थी। वे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का प्रमुख चेहरा बने और 2012 में आम आदमी पार्टी की स्थापना की। 2013 में पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने, हालांकि उनकी सरकार सिर्फ 49 दिनों तक ही चली। लेकिन 2015 में उन्होंने जबरदस्त वापसी करते हुए 70 में से 67 सीटें जीतकर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। इसके बाद 2020 में भी उनकी सरकार ने 62 सीटें जीतीं, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि जनता ने उन पर भरोसा बनाए रखा था।
हालांकि, समय के साथ उनकी सरकार विवादों में घिरती गई। उपराज्यपाल से टकराव, अधिकारियों के साथ मतभेद, और पार्टी के अंदर उठ रहे सवालों ने AAP को कमजोर कर दिया। पंजाब में जीत हासिल करने के बाद पार्टी राष्ट्रीय विस्तार के सपने देखने लगी, लेकिन दिल्ली में ही उनकी पकड़ ढीली पड़ने लगी। शराब नीति घोटाले के आरोपों ने उनकी छवि को और नुकसान पहुंचाया, जिससे जनता के बीच यह धारणा बनी कि उनकी पार्टी भी पारदर्शिता के मामले में अन्य दलों से अलग नहीं है।
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या केजरीवाल इस हार के बाद वापसी कर पाएंगे? चुनावी राजनीति में हार और जीत सामान्य होती है, लेकिन यह हार सिर्फ एक सीट गंवाने की नहीं, बल्कि एक विचारधारा के कमजोर पड़ने की भी कहानी है। अगर आम आदमी पार्टी अपनी रणनीति और छवि सुधारने में असफल रही, तो यह पार्टी धीरे-धीरे दिल्ली तक सीमित रह सकती है। केजरीवाल के लिए यह चुनावी पराजय एक निर्णायक मोड़ है। क्या वे इस हार से सबक लेकर अपनी राजनीति को नए सिरे से गढ़ पाएंगे, या भारतीय राजनीति में उनका प्रभाव धीरे-धीरे खत्म होता जाएगा? इसका जवाब आने वाला समय ही देगा।
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