July 22, 2025

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बिहार : मोतिहारी की मिट्टी में गूंजा विकास का सपना, गांधी मैदान बना उम्मीदों का समंदर

गांधी मैदान बना उम्मीदों का समंदर

गांधी मैदान बना उम्मीदों का समंदर

प्रधानमंत्री मोदी ने दिखाया समृद्ध और स्मार्ट मोतिहारी का सपना, कहा-मिलेगा गुरुग्राम जैसा रोजगार और पुणे जैसा शैक्षणिक माहौल

नीरज कुमार, पूर्वी चंपारण (बिहार)

शुक्रवार को मोतिहारी के ऐतिहासिक गांधी मैदान में विकास, विश्वास और भविष्य की एक नई तस्वीर उकेरी गई। जनसैलाब से भरे मैदान में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंच संभाला, तो यह केवल एक भाषण नहीं था…यह एक ऐतिहासिक संवाद था, जिसमें एक शहर को पुणे, मुंबई और गुरुग्राम की पंक्तियों में खड़ा करने का सपना बुना गया। प्रधानमंत्री की बातें सिर्फ शब्द नहीं थीं, वे उन लाखों दिलों की आवाज़ थीं जो सालों से बदलाव का इंतजार कर रहे थे।

गांधी मैदान से उभरा ‘नए मोतिहारी’ का सपना

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि मोतिहारी को अब कोई नहीं रोक सकता। उन्होंने कहा कि आने वाले वर्षों में यह शहर शिक्षा, उद्योग और अवसरों का केंद्र बनेगा। उन्होंने गुरुग्राम जैसे रोजगार, पुणे जैसी शिक्षा और गया जैसे आध्यात्मिक समृद्धि की कल्पना की। यह सुनकर जनसमूह में एक विशेष ऊर्जा दौड़ गई। उन्होंने कहा, “मोतिहारी अब सपनों की भूमि बनेगी, और उसका हर युवा उन सपनों को हकीकत में बदलेगा।”

हर युवा के लिए उम्मीद, पहली प्राइवेट नौकरी पर ₹15,000 की सौगात

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण के दौरान युवाओं के लिए एक ऐसी घोषणा की, जिसने भीड़ में मौजूद युवाओं की आंखों में चमक भर दी। उन्होंने कहा कि यदि उनकी सरकार सत्ता में आती है, तो हर युवा को उसकी पहली प्राइवेट नौकरी पर ₹15,000 की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। यह सिर्फ आर्थिक सहायता नहीं, बल्कि आत्मबल और आत्मविश्वास की चिंगारी थी।

भीषण गर्मी में भी नहीं डगमगाए कदम, सुनने आए अपने सपनों की कहानी

दोपहर की तेज धूप, धूलभरी हवा और असुविधाएं भी लोगों के जोश को कम नहीं कर सकीं। गांधी मैदान में हर दिशा से लोग उमड़ पड़े थे…कोई सिर पर तौलिया रखे खड़ा था, कोई हाथ में पानी की बोतल लिए धूप से जूझ रहा था, लेकिन सबकी नजरें मंच पर टिकी थीं। क्योंकि मंच से सिर्फ भाषण नहीं, बल्कि हर चेहरे के भीतर पल रहे सपनों का समर्थन हो रहा था।

एक भावनात्मक जुड़ाव, एक शहर का पुनर्जागरण

मोदी का मोतिहारी दौरा केवल एक राजनीतिक कार्यक्रम नहीं था। यह एक नेता और जनता के बीच का वह अटूट रिश्ता था, जिसमें राजनीति से ऊपर प्रेम, जुड़ाव और भरोसे का भाव था। लोगों को महसूस हुआ कि प्रधानमंत्री सिर्फ एक भाषण देने नहीं, बल्कि उनके जीवन को बदलने के लिए आए हैं। जब उन्होंने ‘गया जैसी समृद्धि’ और ‘गुरुग्राम जैसे अवसर’ की बात की, तो यह सपनों का कोई क्षणिक दृश्य नहीं था…यह भावी मोतिहारी की ठोस नींव का नक्शा था।

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