गोद लेने की प्रक्रिया में भावनात्मक सुरक्षा को मिलेगा नया संबल

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अधीन कार्यरत केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (सीएआरए) ने एक महत्वपूर्ण पहल
नई दिल्ली : खबर है कि अब भारत में बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया सिर्फ कानूनी औपचारिकता नहीं रह जाएगी, बल्कि यह एक भावनात्मक रूप से सुरक्षित और परामर्श-संवेदनशील प्रक्रिया बनेगी। खबर के मुताबिक बताया जा रहा है कि केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अधीन कार्यरत केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (सीएआरए) ने एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए देशभर की राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन एजेंसियों (एसएआरए) को निर्देश जारी किए हैं। इन निर्देशों का मकसद दत्तक ग्रहण प्रक्रिया के प्रत्येक स्तर पर मनोसामाजिक सहायता को मजबूत करना है, जिससे दत्तक बच्चों और परिजनों के बीच समन्वय और स्थायित्व सुनिश्चित हो सके।
सीएआरए द्वारा जारी इन निर्देशों के अनुसार, दत्तक ग्रहण से पहले, दौरान और बाद के प्रत्येक चरण में पेशेवर परामर्श सेवा अनिवार्य कर दी गई है। इन सेवाओं को संस्थागत रूप देने के लिए राज्यों से कहा गया है कि वे जिला और राज्य स्तर पर योग्य परामर्शदाताओं की नियुक्ति या सूचीबद्धता करें, जिनकी पृष्ठभूमि बाल मनोविज्ञान, मानसिक स्वास्थ्य या सामाजिक कार्य से जुड़ी हो।
हर हितधारक के लिए परामर्श की व्यवस्था
यह परामर्श सिर्फ भावी दत्तक माता-पिता तक सीमित नहीं है। जैविक माता-पिता, दत्तक बच्चे और संभावित दत्तक परिवार, सभी के लिए अनिवार्य परामर्श की व्यवस्था की गई है। विशेष रूप से उन स्थितियों में जब बच्चा अपने मूल का पता लगाना चाहता है, या जहां गोद लेने के बाद समायोजन में कठिनाई आ रही हो, वहां यह परामर्श एक भावनात्मक सहारा बनेगा।
नियमन के अनुरूप पारदर्शिता और रिकॉर्डिंग
दत्तक ग्रहण विनियम, 2022 के अनुच्छेद 7(11), 10(7), 14(4), 21(6), 30(2)(सी) और 30(4) जैसे नियमों के अंतर्गत सभी सत्रों की सुनियोजित रिकॉर्डिंग और प्रलेखन अनिवार्य किया गया है। यह प्रक्रिया दत्तक एजेंसियों और जिला बाल संरक्षण इकाइयों के माध्यम से सुनिश्चित की जाएगी, ताकि पारदर्शिता बनी रहे और कोई पक्ष उपेक्षित न रह जाए।
जैविक माता-पिता को 60 दिन में मिल सकेगा निर्णय का स्पष्टता
एक उल्लेखनीय बात यह है कि अपने बच्चों को गोद देने वाले जैविक माता-पिता को भी परामर्श सेवा अनिवार्य कर दी गई है। उन्हें स्पष्ट रूप से बताया जाएगा कि 60 दिनों के भीतर वे अपने निर्णय को अंतिम रूप देंगे, और भविष्य में बच्चा अपने मूल की खोज कर सकता है।
परामर्श कोई औपचारिकता नहीं, बल्कि गोद लेने की रीढ़ है
सीएआरए ने दो टूक कहा है कि परामर्श सेवा केवल एक औपचारिक प्रावधान नहीं है, बल्कि एक जीवंत, सहायक और बालहितैषी इकोसिस्टम का आवश्यक हिस्सा है। यही वह तत्व है जो दत्तक बच्चे को एक स्थायी, सुरक्षित और प्रेमपूर्ण पारिवारिक माहौल देने में मदद करता है।
परामर्श आधारित दत्तक ग्रहण व्यवस्था
इस पहल के साथ भारत अब एक ऐसे दत्तक ग्रहण ढांचे की ओर बढ़ रहा है जिसमें कानून, भावना और मनोवैज्ञानिक संतुलन का अनोखा संगम होगा। जहां दत्तक बच्चा सिर्फ एक परिवार नहीं पाएगा, बल्कि उसे मानसिक रूप से संबल, समझ और प्रेम भी मिलेगा।