July 24, 2025

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तेजस्वी यादव के संकेत से बिहार की सियासत में हलचल

राजद नेता तेजस्वी यादव

राजद नेता तेजस्वी यादव

राजनीति : तेजस्वी ने कहा-भाजपा अब नीतीश को नहीं देख रही विकल्प, शाह का बयान बना चर्चा का केंद्र, क्या नीतीश के भविष्य पर मंडरा रहे हैं खतरे के बादल?

Khabari Chiraiya Bihar Desk : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक दिए गए इस्तीफे ने दिल्ली की राजनीति ने जितनी चर्चा बटोरी, उससे कहीं अधिक इसकी गूंज बिहार की सत्ता की गलियों में सुनाई दी। राजनीति में अक्सर सीधे सवाल कम पूछे जाते हैं, लेकिन घटनाओं की भाषा बहुत कुछ कह जाती है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने इसी भाषा को पढ़ने की कोशिश करते हुए एक बड़ा दावा किया…धनखड़ का त्यागपत्र भाजपा को मजबूर कर सकता है कि वह नीतीश कुमार को एनडीए का नेता बनाए रखने के फैसले पर पुनर्विचार करे।

तेजस्वी का यह बयान कोई सामान्य बयानबाजी नहीं, बल्कि एक गहरी राजनीतिक आशंका की ओर संकेत है। उनका तर्क है कि भाजपा अब नीतीश को बोझ की तरह देख रही है और किसी भी समय उन्हें हटाने का मन बना सकती है। उन्होंने महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसा एकनाथ शिंदे के साथ हुआ, वैसा ही हश्र नीतीश कुमार का हो सकता है। शिंदे मुख्यमंत्री तो बने, लेकिन सत्ता की असल चाबी भाजपा के पास ही रही। बिहार में भी यही खेल दोहराया जा सकता है।

तेजस्वी के बयान को अमित शाह के हालिया वक्तव्य के साथ पढ़ना और भी रोचक बनाता है। शाह ने कहा कि विधानसभा चुनाव नीतीश के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, लेकिन मुख्यमंत्री कौन होगा, यह समय बताएगा। यह कथन जितना सामान्य दिखता है, उतना ही गहरा भी है। यह संकेत देता है कि चुनाव पूर्व गठबंधन का नेतृत्व और चुनाव के बाद का मुख्यमंत्री, दो अलग-अलग समीकरण हो सकते हैं। यहीं से वह संदेह जन्म लेता है, जिसे तेजस्वी ने हवा दी है।

राजद के मुख्य सचेतक अख्तरुल इस्लाम शाहीन ने भी इस लाइन को आगे बढ़ाते हुए इसे भाजपा की सुनियोजित साजिश बताया है। उन्होंने सुशील मोदी के एक पुराने बयान को उद्धृत करते हुए कहा कि भाजपा पहले ही नीतीश के विकल्प पर विचार कर रही है। उपराष्ट्रपति का इस्तीफा, उनके मुताबिक, उसी रणनीति का हिस्सा है। अब यह महज संयोग नहीं रह जाता कि इन सारी कड़ियों को जोड़ते हुए नीतीश की कुर्सी पर प्रश्नचिह्न उभरने लगे हैं।

नीतीश कुमार की राजनीति लचीली जरूर रही है, लेकिन आज वह ऐसे मोड़ पर हैं, जहां उनकी उपयोगिता पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं। भाजपा को बिहार में स्थिरता चाहिए, लेकिन अपनी शर्तों पर। ऐसे में नीतीश का संतुलनकारी चेहरा भाजपा की नई रणनीति में शायद फिट नहीं बैठता।

यह घटनाक्रम बिहार की राजनीति के उस संभावित पुनर्गठन की तरफ इशारा करता है, जो अभी सतह पर नहीं दिखता, लेकिन भीतर ही भीतर आकार ले रहा है। उपराष्ट्रपति का त्यागपत्र इस रणनीति का सिर्फ एक मोहरा है या किसी और बड़े बदलाव की प्रस्तावना…यह सवाल आने वाले हफ्तों में और स्पष्ट होगा। लेकिन फिलहाल इतना तय है कि बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट लेने को तैयार है।

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