देश की सुरक्षा और अपनी मजबूती के लिए वायुसेना ने मांगे और ताकतवर विमान

- नए राफेल के साथ पांचवीं पीढ़ी के फाइटर भी बेड़े में शामिल करने की योजना है, ताकि किसी भी खतरे का तुरंत जवाब दिया जा सके
Khabari Chiraiya Desk नई दिल्ली : भारतीय वायुसेना ने स्पष्ट कर दिया है कि मौजूदा समय में राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर कोई समझौता संभव नहीं है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, जब 7 से 10 मई तक सीमापार आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले हुए, राफेल विमानों ने अपनी अद्वितीय ताकत का प्रदर्शन किया। पाकिस्तान के चीनी विमानों के सामने भारतीय राफेल ने बढ़त बनाते हुए दुश्मन को रक्षात्मक मुद्रा में ला दिया। इस सफलता ने भले ही आत्मविश्वास बढ़ाया हो, लेकिन साथ ही यह भी सामने आया कि वायुसेना के पास लड़ाकू विमानों की संख्या जरूरत से कम है।
इसी को देखते हुए वायुसेना ने सरकार से मांग की है कि लंबे समय से लंबित 114 मल्टी रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (एमआरएफए) परियोजना को तुरंत मंजूरी दी जाए। वायुसेना चाहती है कि इस परियोजना के तहत नए राफेल विमान खरीदे या फ्रांस के सहयोग से भारत में ही बनाए जाएं। इस योजना का बड़ा हिस्सा ‘मेक इन इंडिया’ के तहत घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देगा, जिससे समय पर विमानों की आपूर्ति भी संभव होगी।
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इस परियोजना को आगे बढ़ाने का पहला चरण ‘ऐक्सेप्टेंस ऑफ नेसेसिटी’ यानी एओएन है, जिसे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाली डिफेंस एक्विजिशन काउंसिल आने वाले एक-दो महीनों में मंजूरी दे सकती है। वायुसेना का कहना है कि जितनी जल्दी नए विमान बेड़े में शामिल होंगे, उतना ही देश की सीमाएं सुरक्षित होंगी।
स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अगले महीने मिग-21 विमान सेवा से बाहर हो रहे हैं, जिससे लड़ाकू विमानों की संख्या और घट जाएगी। वायुसेना ने साथ ही पांचवीं पीढ़ी के फाइटर विमानों की भी मांग रखी है, जिनमें रूस का सुखोई-57 और अमेरिका का एफ-35 जैसे आधुनिक विमान शामिल हैं। हालांकि इस विषय पर औपचारिक बातचीत अभी शुरू नहीं हुई है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार-से-सरकार डील के जरिये राफेल की खरीद सबसे तेज और किफायती विकल्प है।
गौरतलब है कि साल 2016 में भारत ने लगभग 59 हजार करोड़ रुपये की लागत से 36 राफेल विमानों की खरीद की थी, जो अब वायुसेना की रीढ़ बन चुके हैं। इन विमानों ने न सिर्फ ऑपरेशन सिंदूर में जीत दिलाई, बल्कि यह भी साबित किया कि भारत के पास आधुनिक युद्ध में निर्णायक बढ़त बनाने की क्षमता है। मौजूदा भू-राजनीतिक हालात और चीन-पाकिस्तान की बढ़ती सैन्य साझेदारी को देखते हुए, वायुसेना का यह कदम देश की सुरक्षा को दीर्घकालिक मजबूती देने वाला साबित हो सकता है।
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