विश्व हाथी दिवस : संरक्षण की लड़ाई केवल सरकार की नहीं, बल्कि हम सभी की साझा जिम्मेदारी है

“हाथी न केवल जैव विविधता का प्रतीक हैं, बल्कि पारिस्थितिकी के संतुलन के लिए भी अनिवार्य हैं”
Khabari Chiraiya Desk: आज विश्व हाथी दिवस मनाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य दुनिया के सबसे बड़े स्थलीय जीव के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना है। इस वर्ष की थीम है-प्रागैतिहासिक सौंदर्य, धार्मिक प्रासंगिकता और पर्यावरणीय महत्व को व्यक्त करना, जो हाथियों के बहुआयामी महत्व को रेखांकित करती है। यह दिन केवल जागरूकता का अवसर नहीं, बल्कि इस चेतावनी का भी संकेत है कि अगर अब ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाली पीढ़ियां इन अद्भुत प्राणियों को केवल तस्वीरों और कहानियों में देख पाएंगी।
हाथी न केवल जैव विविधता का प्रतीक हैं, बल्कि पारिस्थितिकी के संतुलन के लिए भी अनिवार्य हैं। जंगलों में ये जल स्रोत बनाते हैं, बीज फैलाते हैं और नई वनस्पतियों के विकास में योगदान देते हैं। भारतीय संस्कृति और आस्था में इनका विशेष स्थान है। हिंदू धर्म में इन्हें भगवान गणेश का स्वरूप माना जाता है और देश के कई हिस्सों में इनकी पूजा होती है। यह धार्मिक मान्यता संरक्षण के प्रयासों को नैतिक और सांस्कृतिक आधार प्रदान करती है।
भारत एशियाई हाथियों की वैश्विक आबादी के 60 प्रतिशत से अधिक का घर है। वर्तमान में 14 राज्यों में लगभग 65 हजार वर्ग किलोमीटर में हाथियों के लिए 30 सुरक्षित वन क्षेत्र हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में मानव-हाथी संघर्ष की घटनाओं में तेजी से वृद्धि चिंता का कारण बनी है। जंगलों का सिमटना, रास्तों का निर्माण और अवैध खनन ने इनके प्राकृतिक मार्गों को बाधित कर दिया है, जिससे ये छोटे और अलग-थलग इलाकों में सिमटने को मजबूर हैं।
हाथी परियोजना के तहत प्रत्येक पांच वर्षों में इनकी जनगणना की जाती है। 2017 में भारत में एशियाई हाथियों की कुल संख्या 27,312 दर्ज की गई थी। 2023 की अंतरिम रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक में हाथियों की संख्या 346 बढ़कर 6,395 हो गई है, जिससे यह देश में शीर्ष स्थान पर है। बांदीपुर टाइगर रिजर्व में सर्वाधिक 1,116 हाथी हैं, जबकि नागरहोल टाइगर रिजर्व में 831 और बीआरटी टाइगर रिजर्व में 619 हाथी पाए गए हैं। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि कुछ क्षेत्रों में संरक्षण सफल हो रहा है, लेकिन समग्र स्तर पर चुनौतियां बनी हुई हैं।
इनके अस्तित्व के सामने तीन प्रमुख खतरे खड़े हैं। पहला, जंगलों का लगातार खत्म होना, जिससे इनके प्राकृतिक आवास बिखर रहे हैं। दूसरा, हाथीदांत के लिए अवैध शिकार, जिसने इनकी संख्या पर गहरा असर डाला है। तीसरा, जलवायु परिवर्तन, जिसने पानी और भोजन की उपलब्धता को प्रभावित किया है, जिससे इनका जीवन कठिन हो गया है।
विश्व हाथी दिवस यह याद दिलाता है कि संरक्षण केवल सरकारी योजनाओं तक सीमित नहीं रहना चाहिए। इसमें स्थानीय समुदायों की भागीदारी, कानून का सख्त पालन और पर्यावरणीय संतुलन के लिए दीर्घकालिक रणनीतियां शामिल होनी चाहिए। हाथी केवल एक प्राणी नहीं, बल्कि जंगलों के प्रहरी और पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र के अभिन्न अंग हैं। इनका संरक्षण हमारे पर्यावरण, संस्कृति और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक साझा जिम्मेदारी है।
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