क्या मौजूदा हालात में पीएम मोदी को अमेरिका जाना चाहिए…

- अमेरिकी राष्ट्रपति लगातार टैरिफ का दबाव बना रहे हैं, ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाषण देना कूटनीतिक संदेश के लिहाज से उलटा असर डाल सकता है
Khabari Chiraiya Desk: अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हर यात्रा, हर मंच और हर बयान का एक संकेत होता है। सितंबर में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) का 80वां सत्र शुरू होने जा रहा है, जहां दुनिया के बड़े नेता अपने-अपने दृष्टिकोण रखेंगे। सूची में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम भी शामिल है, जो 26 सितंबर को सभा को संबोधित करने वाले हैं। लेकिन सवाल यह है कि मौजूदा हालात में क्या यह यात्रा भारत के लिए सही संदेश देगी?
पिछले कुछ महीनों में अमेरिका-भारत संबंधों में तनाव की परतें साफ दिखाई दे रही हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरी बार पद संभालने के बाद भारत पर कई उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाया है। ट्रंप न केवल आर्थिक मोर्चे पर आक्रामक हैं, बल्कि क्षेत्रीय राजनीति में भी भारत के प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को कूटनीतिक सहारा दे रहे हैं। हाल ही में पाकिस्तान के सेना प्रमुख (फील्ड मार्शल) जनरल सैयद आसिम मुनीर अमेरिका में ट्रंप के करीबी सर्कल में नजर आए और भारत के खिलाफ खुलेआम धमकी भरे बयान दिए। यह कोई संयोग नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है, जिससे दक्षिण एशिया में दबाव की राजनीति चलाई जा रही है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसे समय में अमेरिका की यात्रा करना और वह भी ऐसे मंच पर जहां ट्रंप का पहला संबोधन भी होगा, भारत की कूटनीतिक स्थिति को कमजोर कर सकता है। अगर पीएम मोदी उसी मंच पर ट्रंप के कुछ ही दिनों बाद बोलते हैं तो यह संदेश जा सकता है कि भारत दबाव में आकर भी जुड़ने के लिए तैयार है। कूटनीति में यह ‘विन-विन’ स्थिति अमेरिका के लिए होगी, पर भारत के लिए नहीं।
इसके अलावा, अमेरिका में इस समय चुनावी राजनीति और वैश्विक संकटों का माहौल है। इजरायल-हमास युद्ध और यूक्रेन संकट जैसे मुद्दों पर ट्रंप का झुकाव और बयानबाजी पहले से स्पष्ट है। भारत की ओर से इन मसलों पर किसी भी तटस्थ या स्वतंत्र रुख को अमेरिका ‘असहयोग’ मान सकता है। ऐसे में इस यात्रा से मिलने वाला लाभ सीमित और जोखिम अधिक होगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार भारत को वर्चुअल संबोधन या विदेश मंत्री के माध्यम से प्रतिनिधित्व का विकल्प चुनना चाहिए। यह न केवल स्वाभिमान का संदेश देगा, बल्कि यह भी बताएगा कि भारत दबाव की राजनीति में झुकने वाला देश नहीं है।
संक्षेप में, कूटनीति केवल उपस्थिति दर्ज कराने का नाम नहीं है, बल्कि सही समय और सही मंच पर सही संदेश देने की कला है। मौजूदा परिस्थितियों में अमेरिका जाकर भाषण देना शायद उस संदेश के विपरीत होगा, जो भारत को दुनिया को देना चाहिए। यह समय है दृढ़ता दिखाने का, न कि दबाव के बीच उपस्थिति निभाने का।
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