ट्रंप के पांच शब्दों से टूटा सोने का जादू

- भारत में दो दिन में 24 कैरेट सोना करीब 2000 रुपये सस्ता हो गया और चांदी में भी 3000 रुपये से अधिक की गिरावट आई
Khabari Chiraiya Desk: घोषणा छोटी थी, असर विशाल। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने स्विस गोल्ड पर टैरिफ नहीं लगाने की बात कही और इसी एक संकेत ने सोने की वैश्विक धारणा पलट दी। निवेशकों की सेफ-हेवन भूख अचानक कमज़ोर पड़ी, ट्रेडर्स ने मुनाफ़ा समेटा और भारतीय बाज़ार में कीमतें फिसलती चली गईं। दिल्ली के सर्राफा बाज़ार में 24 कैरेट सोना मात्र दो कारोबारी सत्रों में तकरीबन 2000 रुपये प्रति 10 ग्राम गिर गया, जबकि चांदी की चमक भी फीकी पड़कर 3000 रुपये से अधिक प्रति किलो कम हो गई। एक ओर ‘नो टैरिफ’ का आश्वासन सप्लाई सेंटिमेंट को सहारा दे रहा है, दूसरी ओर जियोपॉलिटिकल तनाव में आई नरमी और फेडरल रिज़र्व की संभावित दर कटौती की अटकलें जोखिम वाली परिसंपत्तियों को तवज्जो दिला रही हैं। नतीजा, सोना फिलहाल बैकफुट पर है।
कीमतों का ग्राफ भी यही कहानी कहता है। 24 कैरेट सोना 8 अगस्त को 1,01,406 रुपये प्रति 10 ग्राम पर था। 11 अगस्त आते-आते यह 1,00,201 रुपये पर फिसल गया और 12 अगस्त को गिरावट गहरी होकर 99,549 रुपये रह गई। चांदी ने 23 जुलाई के अपने ऑल-टाइम हाई 1,15,850 रुपये प्रति किलो को छूने के बाद तेज़ी खो दी और 12 अगस्त तक 1,13,313 रुपये प्रति किलो पर आ गई। इस तेज़ पलट का संकेत साफ है कि घोषणाओं और सेंटिमेंट के मेल से मूल्य-निर्धारण तेज़ी से रीसेट हो रहा है।
यह गिरावट केवल एक बयान का शॉर्ट-टर्म असर नहीं, कई परतें साथ काम कर रही हैं। स्विस गोल्ड पर टैरिफ का भय हटते ही इम्पोर्ट-लिंक्ड सप्लाई की आशंका कम हुई, जिससे स्थानीय प्रीमियम नरम पड़े। जियोपॉलिटिकल फ्रंट पर तनाव घटने के संकेतों ने सेफ-हेवन मांग को राहत दी। इसी बीच फेड से ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद ने डॉलर और बॉन्ड-यील्ड कथा को नया मोड़ दिया और जब यील्ड्स नरम होने की अटकलें बनती हैं पर इक्विटी रिस्क-एपेटाइट भी सुधरता दिखता है, तो गोल्ड में तात्कालिक पकड़ ढीली पड़ जाती है। इन कारकों का जोड़ सोने के लिए निकट अवधि में दबाव का कारण बना।
ग्रेड-वार कीमतों में भी ठंडी हवा साफ महसूस हुई। 12 अगस्त को इंडिकेटिव ट्रेडिंग में 22 कैरेट सोना 91,187 रुपये प्रति 10 ग्राम के दायरे में रहा, 18 कैरेट 74,662 रुपये पर और 14 कैरेट 58,236 रुपये के आसपास कारोबार करता दिखा। प्योरिटी बदलते ही ज्वेलरी-उपभोक्ता के लिए वहनीयता का गणित तुरंत बदलता है, इसलिए रिटेल डिमांड का पिवट भी इसी स्पेक्ट्रम पर तेज़ी से शिफ्ट होता दिखाई दिया।
आगे क्या…यही वह सवाल है जो खरीदार और निवेशक दोनों पूछ रहे हैं। अल्पावधि में, ‘नो टैरिफ ऑन स्विस गोल्ड’ की गूंज सप्लाई-सेंटिमेंट को सपोर्ट देती रहेगी, इसलिए भारी उछाल की जमीन तुरंत नहीं दिखती। लेकिन मैक्रो तस्वीर स्थिर नहीं है। अगर टैरिफ वार्ता किसी मोड़ पर अटकती है, ट्रेड वॉर की बयानबाज़ी तीखी होती है या जियोपॉलिटिकल जोखिम फिर बढ़ते हैं तो सेफ-हेवन डिमांड वापसी कर सकती है और तब उछाल भी उतना ही तेज़ हो सकता है जितनी तेज़ यह गिरावट रही।
खरीदारों के लिए इस समय खिड़की दिलचस्प है। जिन लोगों ने शॉर्ट टर्म में खरीद टाल रखी थी, उनके लिए गिरती कीमतें बजट-संवेदनशील बिंदु के करीब ला रही हैं, खासकर शादी-ब्याह जैसे उद्देश्य के लिए। वहीं, निवेशक वर्ग के लिए रणनीति साफ है…घोषणाओं पर नहीं, डेटा पर नज़र। डॉलर इंडेक्स, बॉन्ड यील्ड्स, फेड गाइडेंस और जियोपॉलिटिकल हेडलाइंस का संयोजन ही तय करेगा कि सोना यहां से टिकेगा और फिसलेगा या पलटकर चमकेगा।
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