हर जन्म पर दो मौतें, जापान में जनसंख्या संकट गहराया

- बीते वर्ष देश में 6.86 लाख बच्चों का जन्म हुआ, जबकि 16 लाख से ज्यादा लोग दुनिया छोड़ गए
Khabari Chiraiya Desk: कभी दीर्घायु, स्वस्थ जीवनशैली और उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाओं के लिए प्रसिद्ध जापान अब एक खामोश लेकिन भयावह जनसंख्या संकट की चपेट में है। 2024 ने देश के लिए ऐसा ऐतिहासिक मोड़ ला दिया, जिसने आने वाले दशकों के भविष्य पर गहरी चिंता खड़ी कर दी है। लगातार 16वें साल जनसंख्या में गिरावट दर्ज हुई और यह वह साल रहा जब 125 साल में सबसे कम बच्चे पैदा हुए। सरकार के पास पहले से कई पारिवारिक प्रोत्साहन योजनाएं मौजूद हैं, लेकिन सामाजिक मानसिकता, आर्थिक दबाव और बदलते जीवन मूल्यों ने इन प्रयासों को अप्रभावी बना दिया है।
बीते वर्ष देश में केवल 6,86,061 बच्चों का जन्म हुआ, जबकि 16,00,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई। यानी हर एक जन्म के बदले दो लोगों की मृत्यु हुई और कुल आबादी में 9,08,000 से अधिक की कमी आई। मौजूदा आबादी लगभग 12 करोड़ है, लेकिन गिरावट की यह रफ्तार बनी रही तो जापान न केवल श्रमबल के संकट में घिर जाएगा, बल्कि उसकी अर्थव्यवस्था और सामाजिक संतुलन पर भी गहरा असर पड़ेगा। प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा ने इस स्थिति को ‘साइलेंट इमरजेंसी’ करार देते हुए चेतावनी दी कि यह सिर्फ जनसांख्यिकीय मुद्दा नहीं बल्कि राष्ट्रीय अस्तित्व का सवाल है।
हालांकि जापान में फ्री चाइल्डकेयर, लचीले वर्किंग आवर्स और फैमिली-फ्रेंडली नीतियां पहले से लागू हैं, पर सच्चाई यह है कि बड़ी संख्या में महिलाएं एक भी बच्चा पैदा करने को तैयार नहीं हैं। देश में ऐसे लाखों परिवार हैं, जिन्होंने संतानोत्पत्ति को अपने जीवन से बाहर कर दिया है। इसका सीधा असर जन्मदर पर पड़ा है, जो अब 1.2 तक सिमट गई है…स्थिर आबादी बनाए रखने के लिए आवश्यक 2.1 से बहुत नीचे।
इस गिरावट के बीच बुजुर्ग आबादी का अनुपात और भयावह तस्वीर पेश करता है। 65 वर्ष से अधिक आयु के लोग अब कुल आबादी का 30% हैं, जो मोनाको के बाद दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है। वर्किंग एज (15-64 वर्ष) की आबादी घटकर 60% रह गई है और विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले वर्षों में बुजुर्गों की संख्या युवाओं से भी अधिक हो सकती है। यह स्थिति पेंशन सिस्टम, स्वास्थ्य सेवाओं और आर्थिक उत्पादकता पर भारी बोझ डालेगी।
सरकार ने विदेशी नागरिकों को बसाने की कोशिश भी की है, जिससे कुल जनसंख्या में उनकी हिस्सेदारी अब 3% हो गई है। बावजूद इसके, गिरावट थम नहीं रही। 1 जनवरी 2025 के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले एक साल में कुल आबादी में 0.44% की और कमी आई है।
अगर मौजूदा रुझान नहीं बदले, तो आने वाले दशक में जापान को श्रमबल की कमी, आर्थिक सुस्ती और सामाजिक ढांचे के टूटने जैसी गंभीर चुनौतियों से जूझना पड़ सकता है। प्रधानमंत्री इशिबा ने संकेत दिया है कि आने वाले समय में न केवल नीतियों को और आकर्षक बनाया जाएगा, बल्कि सामाजिक मानसिकता में बदलाव लाने के लिए भी बड़े अभियान चलाए जाएंगे क्योंकि यह संकट अब सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि राष्ट्र के भविष्य का प्रश्न बन चुका है।
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