जम्मू-कश्मीर: भक्ति की राह पर भूस्खलन का ज़ख्म

- अर्धकुंवारी के पास भूस्खलन ने वैष्णो देवी यात्रा को शोक में डुबो दिया, 34 प्राण गए और 28 श्रद्धालु घायल हुए। उपराज्यपाल ने मृतकों के परिजनों को नौ लाख रुपये मुआवज़े का ऐलान किया
Khabari Chiraiya Desk: आस्था की पराकाष्ठा वहीं सबसे अधिक असहाय हो जाती है जहां व्यवस्था की तैयारी कमज़ोर पड़ती है। त्रिकुटा की ढलानों पर अर्धकुंवारी के पास हुआ भूस्खलन सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा नहीं, यह हमारी तीर्थ-प्रबंधन सोच की सीमाएं भी उजागर करता है। मंत्रोच्चार और जयकारों के बीच अचानक खिसकी पहाड़ की परत ने पलों में 34 जिंदगियां छीन लीं, 28 लोगों को घायल कर दिया और कई को लापता कर दिया। बचाव दलों ने तेज़ी से काम किया, मार्ग और भवन खाली कराए गए, पर जो परिवार शोक में डूब गए हैं, उनके लिए यह रिक्तता वर्षों तक भरना आसान नहीं होगा।
इस त्रासदी की पृष्ठभूमि समझनी होगी। बारिश के दिनों में भूस्खलन का जोखिम बढ़ता है; भीड़, थकान और संकरे ट्रैक इसे और घातक बना देते हैं। सूचना है कि कटड़ा और जम्मू के होटलों-गेस्टहाउस में पहले से करीब बीस हज़ार यात्री ठहरे थे और भूस्खलन में ट्रैक का लगभग 200 फीट हिस्सा बुरी तरह टूट-फूट गया। पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन की संभावना हमेशा बनी रहती है, ऐसे में सरकार को लगातार बारिश को देखते हुए यात्रा समय रहते रोक देनी चाहिए थी। क्या प्रशासन हादसे का इंतज़ार कर रहा था? यही प्रश्न आज हर शोकाकुल परिवार के मन में गूंज रहा है।
यह भी पढ़ें… ‘वोटर अधिकार यात्रा’ को लेकर गरमाई बिहार की राजनीति, वोट चोरी के खिलाफ विपक्ष की हुंकार
मुआवज़े की घोषणा…मृतकों के परिजनों को नौ लाख रुपये संवेदना का प्रारंभ है, समाधान का अंत नहीं। पैसा शोक का प्रतिपूरक नहीं हो सकता; असली जवाबदेही तब दिखेगी जब जोखिम-नियंत्रण की ठोस प्रणाली लागू हो। हर बारिश-प्रधान मौसम से पहले भू-स्थिरता का स्वतंत्र ऑडिट, ढालों को एंकर करने और जालबंदी-शॉटक्रिट जैसे इंजीनियरिंग उपाय, पत्थर-गिराव रोक बैरियर, जलनिकासी की वैज्ञानिक डिज़ाइन…ये सब स्थायी सुधार हैं, संयोग नहीं। साथ ही, भूस्खलन-प्रवण मानचित्रण पर आधारित रियल-टाइम चेतावनी प्रणाली, मार्ग पर सेंसर और स्वचालित सायरन, भीड़-घनत्व सीमा और स्लॉट-बेस्ड प्रवेश जैसे उपाय अब विकल्प नहीं, अनिवार्यता हैं।
प्रशासन को पारदर्शिता के साथ घटना-क्रम, प्रतिक्रिया समय, संसाधनों की उपलब्धता और निर्णय-प्रक्रिया पर श्वेतपत्र जारी करना चाहिए। यह दोषारोपण का नहीं, सीख का समय है। तीर्थ-पर्यटन स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए जीवनरेखा है; उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करना धार्मिक भावना जितना ही राष्ट्रीय दायित्व है। आपदा-प्रबंधन दलों के लिए नियमित मॉक-ड्रिल, मार्ग के हर जोखिम बिंदु पर स्पष्ट निकासी योजना और चिकित्सा प्रतिक्रिया की अधिकतम तत्परता अनिवार्य रूप से लागू होनी चाहिए।
हमारे समाज में तीर्थ सिर्फ पूजा नहीं, सह-अस्तित्व का उत्सव हैं। पर उत्सव तभी सुरक्षित है, जब विज्ञान, इंजीनियरिंग और अनुशासन उसके प्रहरी बनें। वैष्णो देवी मार्ग की यह पीड़ा चेतावनी है…यदि हमने प्रणालीगत सुधारों को अब भी टाला तो अगली विपत्ति समय का नहीं, हमारी चूक का परिणाम होगी। शोक के बीच यही संकल्प हो: आस्था की राह पर हर कदम उतना ही सुरक्षित हो, जितना पवित्र।
यह भी पढ़ें… केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रमंडल खेल 2030 की बोली को मंजूरी दी
यह भी पढ़ें… आयुर्वेद दिवस बनेगा वैश्विक स्वास्थ्य आंदोलन का प्रतीक
यह भी पढ़ें… भारतीय वैज्ञानिकों ने मानव शरीर में खोजा एंटीबॉडीज़ का नया रहस्य
आगे की खबरों के लिए आप हमारी वेबसाइट पर बने रहें…