September 3, 2025

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जीएसटी परिषद के फैसले से कपड़े और जूते होंगे सस्ते

जीएसटी
  • कर संरचना में बड़े बदलाव से उपभोक्ताओं को सीधी राहत मिलेगी। अब 2,500 रुपये तक के परिधान और फुटवियर पर सिर्फ 5 प्रतिशत जीएसटी लगेगा

Khabari Chiraiya Desk: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में हुई जीएसटी परिषद की 56वीं बैठक में उपभोक्ताओं की जेब पर सीधा असर डालने वाले अहम निर्णय लिए गए। परिषद ने दो-स्तरीय कर व्यवस्था लागू करने की मंजूरी दी, जिसके तहत अब केवल 5 प्रतिशत और 18 प्रतिशत के स्लैब रहेंगे। 12 और 28 प्रतिशत वाले स्लैब को समाप्त कर दिया गया है। इस कदम से परिधान और फुटवियर समेत कई उत्पाद सस्ते हो जाएंगे, वहीं उद्योगों को भी नई ऊर्जा मिलने की उम्मीद है।

जूते और कपड़ों पर मिलेगी राहत

बैठक में यह तय किया गया कि 2,500 रुपये तक की कीमत वाले जूते-चप्पल और परिधान अब केवल 5 प्रतिशत जीएसटी स्लैब में आएंगे। पहले यह छूट सिर्फ 1,000 रुपये तक के सामान पर मिलती थी, जबकि उससे महंगे उत्पादों पर 12 प्रतिशत टैक्स देना पड़ता था। अब नई दर लागू होने के बाद इस श्रेणी के सामान और किफायती होंगे।

छोटे व्यवसायों के लिए सरल नियम

काउंसिल ने छोटे और मध्यम व्यापारियों को राहत देने के लिए कई सुधारों पर मुहर लगाई है। गैर-जोखिम वाले कारोबारों के लिए जीएसटी रजिस्ट्रेशन की समयसीमा घटाकर तीन दिन कर दी गई है। साथ ही रिटर्न को आसान बनाने के लिए पूर्व-भरे फॉर्म की योजना पर काम शुरू किया जाएगा। इसके अलावा कपड़ा, फार्मा, उर्वरक और रसायन उद्योगों के लिए सात दिन के भीतर रिफंड जारी करने का निर्णय लिया गया है।

राज्यों की चिंता और विवाद

हालांकि इन सुधारों को लेकर कई राज्यों ने राजस्व नुकसान की आशंका जताई है। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि इससे प्रदेश की आमदनी में 10-12 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। झारखंड के वित्त मंत्री राधा कृष्ण किशोर ने भी चेतावनी दी कि उनके राज्य को लगभग 2,000 करोड़ रुपये का घाटा होगा। विपक्ष शासित राज्यों ने मांग की है कि नुकसान की भरपाई केंद्र सरकार करे, तभी वे इस प्रस्ताव का समर्थन करेंगे।

व्यापक असर की उम्मीद

जीएसटी परिषद के इस निर्णय से उपभोक्ताओं को राहत और उद्योगों को मजबूती मिलने की संभावना है। कर ढांचे के सरलीकरण से न केवल व्यापार को आसानी होगी बल्कि बाजार में प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी। वहीं राज्यों और केंद्र के बीच राजस्व के बंटवारे पर सहमति बनने की चुनौती अभी बाकी है।

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