September 3, 2025

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पंजाब की बाढ़ @ खेत डूबे, जीवन डूबा और व्यवस्था पर उठे सवाल

पंजाब की बाढ़
  • बाढ़ सिर्फ़ घर और खेत नहीं बहाती, यह प्रशासन की तैयारियों और शासन की प्राथमिकताओं को भी उजागर कर देती है।

Khabari Chiraiya Desk: पंजाब इस समय ऐसी त्रासदी से जूझ रहा है जिसने पूरे राज्य को संकट में डाल दिया है। दशकों में पहली बार सभी 23 जिलों को बाढ़ प्रभावित घोषित करना पड़ा है। तीन लाख से अधिक लोग सीधे प्रभावित हुए हैं, हजारों गांव जलमग्न हो चुके हैं और धान की फसल का बड़ा हिस्सा बर्बाद हो गया है। गांवों में जहां कभी हरियाली थी, वहां अब केवल गंदला पानी फैला है। यह सिर्फ़ प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि इस बात का संकेत भी है कि हमारी तैयारी कितनी कमजोर रही।

राहत और बचाव अभियान तेज़ी से चल रहे हैं। एनडीआरएफ की 23 टीमें तैनात हैं, सेना, वायुसेना और नौसेना लगातार मोर्चा संभाले हुए हैं। हेलीकॉप्टर और नावों की मदद से अब तक हजारों लोगों को सुरक्षित निकाला गया है। राहत शिविरों में लोग शरण लिए हुए हैं और स्वास्थ्य विभाग की टीमें लगातार काम कर रही हैं ताकि कोई महामारी न फैले। फिर भी यह सच है कि प्रभावित लोगों की संख्या इतनी अधिक है कि संसाधन नाकाफी साबित हो रहे हैं।

बांधों की स्थिति ने हालात को और गंभीर कर दिया है। भाखड़ा, पोंग और रणजीत सागर जैसे बांध पूरी तरह भर चुके हैं। पोंग बांध का स्तर खतरे से ऊपर चला गया है और ब्यास में लाखों क्यूसेक पानी छोड़ा गया है। रवि नदी का प्रवाह 1988 की ऐतिहासिक बाढ़ से भी अधिक दर्ज हुआ है। यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जल प्रबंधन और चेतावनी प्रणाली क्यों पर्याप्त साबित नहीं हुई। अगर बांधों और नदियों का बेहतर समन्वय होता तो शायद नुकसान इतना व्यापक न होता।

इस आपदा के बीच राजनीति की आवाज भी तेज़ सुनाई दी। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने केंद्र से लंबित फंड जारी करने और राहत मानदंडों में संशोधन की मांग की। उन्होंने कहा कि पंजाब “भीख” नहीं, अपना “हक़” मांग रहा है। राज्यपाल ने भी प्रभावित इलाकों का दौरा किया, लेकिन आम जनता के लिए सबसे अहम सवाल यह है कि उनकी पीड़ा कब और कैसे कम होगी। यह स्पष्ट है कि केवल राजनीतिक बयानबाज़ी से न तो पानी रुकेगा, न किसानों के खेतों में हरियाली लौटेगी।

इस बाढ़ ने एक बार फिर याद दिलाया है कि पंजाब जैसे कृषि प्रधान राज्य को स्थायी समाधान की आवश्यकता है। फसल विविधीकरण की ओर गंभीर कदम, बांध प्रबंधन की वैज्ञानिक प्रणाली, तटबंधों की मजबूती और केंद्र व राज्य सरकार के बीच बेहतर तालमेल ही भविष्य में ऐसी त्रासदियों से बचा सकते हैं। राहत शिविर और हेलीकॉप्टर तात्कालिक ज़रूरतें पूरी कर सकते हैं, लेकिन दीर्घकालिक सोच ही असली जवाब है।

पंजाब के खेत और गांव अभी पानी में डूबे हुए हैं। यह दृश्य हमें चेतावनी देता है कि यदि जल प्रबंधन को राजनीति से ऊपर रखकर प्राथमिकता नहीं दी गई, तो आने वाले सालों में यही कहानी बार-बार दोहराई जाएगी।

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