चीन की परेड में छिपी शक्ति और रणनीति

- हाइपरसोनिक मिसाइलों से लेकर ड्रोन तक, बीजिंग की परेड में सबकुछ था, पर असली ताक़त उन राजनीतिक संदेशों में थी जो मंच से दिए गए। पुतिन और किम की मौजूदगी और पश्चिमी देशों की अनुपस्थिति ने दुनिया को ध्रुवीकृत खेमों में बांटने का संकेत दिया
Khabari Chiraiya Desk: तियानमेन स्क्वायर पर चीन की भव्य सैन्य परेड ने न केवल इतिहास की स्मृति को ताज़ा किया, बल्कि आने वाले कल की कूटनीतिक दिशा का संकेत भी दिया। इस आयोजन ने दुनिया को साफ संदेश दिया कि एशिया की धुरी नए आत्मविश्वास के साथ उभर रही है, जबकि पश्चिमी देश उससे दूरी बनाकर किसी और ही राह पर बढ़ रहे हैं। यह दृश्य बताता है कि आने वाले वर्षों में दुनिया शांति और सहयोग की ओर बढ़ेगी या टकराव और विभाजन की ओर—यह प्रश्न अब और भी गंभीर हो गया है।
चीन ने जापान पर विजय की 80वीं वर्षगांठ को जिस अंदाज़ में मनाया, उसमें बीते दौर की याद के साथ भविष्य की आकांक्षा भी छिपी थी। राष्ट्रपति शी चिनफिंग माओ काल की झलक लिए जब मंच पर आए, तो उन्होंने अतीत के संघर्षों को सम्मान देने के साथ-साथ यह भी जताया कि चीन आज किसी दबाव या धौंस के आगे झुकने वाला नहीं है। उनकी यह चेतावनी कि मानवता को अमन और जंग, संवाद और टकराव के बीच चुनाव करना होगा, केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं थी, बल्कि एक नई विश्व दृष्टि की घोषणा थी।
परेड में प्रदर्शित हाइपरसोनिक मिसाइलें, आधुनिक ड्रोन और टैंक केवल तकनीकी क्षमता का प्रदर्शन नहीं थे। वे इस बात का संकेत भी थे कि चीन अब अपनी शक्ति को खुले तौर पर दुनिया के सामने रखकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर नेतृत्वकारी भूमिका चाहता है। यह परेड शक्ति और संदेश, दोनों का संगम बन गई।
सबसे बड़ी राजनीतिक तस्वीर इस आयोजन में शामिल अतिथियों और अनुपस्थित नेताओं ने पेश की। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन की उपस्थिति ने यह साफ कर दिया कि चीन उन देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है जिन्हें पश्चिम अलग-थलग करना चाहता है। पुतिन ने ऊर्जा सहयोग को और गहराई देने की बात की, जबकि किम को उम्मीद थी कि चीन का समर्थन उनके विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम को अप्रत्यक्ष सुरक्षा देगा। इसके उलट, अमेरिका और यूरोप ने दूरी बनाए रखी। यह अनुपस्थिति चीन के बढ़ते प्रभाव से उनकी असहजता का प्रतीक थी।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की प्रतिक्रिया भी इसी द्वंद्व को उजागर करती है। उन्होंने परेड को अमेरिका विरोधी साजिश करार दिया, लेकिन उसी सांस में शी चिनफिंग से अपने अच्छे रिश्तों का उल्लेख भी किया। यह विरोधाभास बताता है कि वैश्विक राजनीति अब केवल मित्र और शत्रु के स्पष्ट खांचों में नहीं बंटी है, बल्कि प्रतिस्पर्धा और सहयोग एक साथ चलते हैं।
शी चिनफिंग का “नए विश्व क्रम” का विचार बहुध्रुवीयता और साझा लाभ की बात करता है। लेकिन इसके पीछे एक कठोर सच्चाई भी है—शक्ति संतुलन बदलने की प्रक्रिया अक्सर सहयोग से अधिक संघर्ष को जन्म देती है। इतिहास बताता है कि जब कोई राष्ट्र अपनी सैन्य और आर्थिक ताक़त के बल पर वैश्विक व्यवस्था बदलने की कोशिश करता है, तब दुनिया अक्सर अस्थिरता के दौर से गुजरती है।
बीजिंग का यह प्रदर्शन केवल स्मृति का आयोजन नहीं था। यह भविष्य का इशारा था—एक ऐसा भविष्य जिसमें चीन खुद को विश्व राजनीति के केंद्र में देखना चाहता है। अब सवाल यह है कि बाकी दुनिया इस चुनौती को सहयोग से स्वीकार करेगी या टकराव से। यही चुनाव तय करेगा कि यह शक्ति प्रदर्शन स्थायी शांति का सेतु बनेगा या संघर्ष की नई खाई खोद देगा।
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