नेपाल के बाद फ्रांस में प्रदर्शन की आग, मैक्रों सरकार घिरी संकट में

- हालात इतने विस्फोटक हो गए हैं कि राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को सेना बुलानी पड़ी है और हजारों लोगों को हिरासत में लिया गया है
Khabari Chiraiya Desk : फ्रांस एक बार फिर राजनीतिक उथल-पुथल और जनाक्रोश की गिरफ्त में है। राजधानी पेरिस समेत पूरे देश में लोग सरकार की नीतियों के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच लगातार झड़पें हो रही हैं, गाड़ियां जलाई जा रही हैं और सरकारी दफ्तरों पर हमला किया जा रहा है। मंगलवार को प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बायरू की सरकार गिरने के बाद जनता का गुस्सा और भड़क गया। पिछले 12 महीनों में यह चौथी बार है जब राष्ट्रपति मैक्रों को नया प्रधानमंत्री नियुक्त करना पड़ा।
राजधानी से उठी चिंगारी पूरे फ्रांस में फैली
हजारों प्रदर्शनकारी पेरिस की सड़कों पर उतर आए और उन्होंने फ्रांसीसी गृह मंत्री के कार्यालय पर हमला बोल दिया। पुलिस ने भीड़ को काबू करने के लिए आंसू गैस और लाठियों का इस्तेमाल किया। हालात बेकाबू होते देख प्रशासन ने 80 हजार सैनिकों की तैनाती कर दी। अब तक करीब 200 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं।
जनता के गुस्से की वजह
यह विरोध केवल सरकार के गिरने तक सीमित नहीं है। जनता को लगता है कि बार-बार की राजनीतिक अस्थिरता, कठोर आर्थिक नीतियों और बढ़ते कर्ज ने उनका भविष्य असुरक्षित बना दिया है। निवर्तमान प्रधानमंत्री बायरू ने सार्वजनिक कर्ज को देश के लिए बड़ा खतरा बताया था और सख्त नीतियों का संकेत दिया था। इससे असंतोष और बढ़ गया।
सोशल मीडिया पर #BloquonsTout की गूंज
टेलीग्राम, टिकटॉक और एक्स पर #BloquonsTout हैशटैग के साथ आंदोलन ने जोर पकड़ा। आंदोलनकारियों का मकसद 10 सितंबर को पूरे फ्रांस को ठप करना था। युवाओं और छात्रों के जुड़ने से यह आंदोलन तेज़ी से फैल गया और देखते ही देखते सड़कों पर हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए।
सरकार की नीतियों पर उठते सवाल
वामपंथी दलों और प्रो-सॉवरेन्टी समूहों ने इस विरोध को समर्थन दिया है। उनका कहना है कि रूस और यूक्रेन युद्ध के नाम पर फ्रांस का रक्षा बजट लगातार बढ़ाया जा रहा है, जबकि आम जनता बेरोजगारी और महंगाई से जूझ रही है। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि मैक्रों सरकार भ्रष्टाचार और जनता की अनदेखी कर रही है। वे चाहते हैं कि देश का धन युद्ध पर नहीं बल्कि जनता की भलाई में लगाया जाए।
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