बंगाल की गरिमा बनाम संघीय हस्तक्षेप

- पश्चिम बंगाल : केंद्र-राज्य संबंधों पर उठते सवाल और ममता की चुनौतीपूर्ण आवाज़, जलपाईगुड़ी से साफ संदेश दिया कि बंगाल अपनी राह खुद तय करेगा,
Khabari Chiraiya Desk : भारतीय राजनीति में इन दिनों संघीय ढांचे को लेकर बहस फिर से तेज हो गई है। राज्यों और केंद्र के बीच संबंधों पर सवाल उठ रहे हैं। ऐसे समय में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का जलपाईगुड़ी से दिया गया भाषण केवल एक राजनीतिक बयान नहीं बल्कि एक चेतावनी है। उन्होंने साफ कहा कि दिल्ली नहीं, बंगाल ही बंगाल को चलाएगा। यह वक्तव्य सीधे-सीधे केंद्र की नीतियों और हस्तक्षेप पर सवाल खड़ा करता है। उन्होंने अन्य राज्यों में प्रवासी बंगालियों के उत्पीड़न पर अपनी चिंता व्यक्त की और स्पष्ट कर दिया कि बंगाल इसे चुपचाप सहन नहीं करेगा।
प्रवासी मजदूरों के खिलाफ अत्याचार का मुद्दा लंबे समय से चर्चा में है। उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों में बंगाली मजदूरों के साथ भेदभाव की खबरें आती रही हैं। ममता का यह कहना कि “हम बंगाल में किसी बाहरी के साथ अत्याचार नहीं करते, बल्कि प्यार देते हैं” राजनीतिक रूप से एक सॉफ्ट पावर मैसेज है। यह कथन बंगाल की छवि को सहिष्णु और स्वागतशील राज्य के रूप में पेश करता है।
ममता ने असम में एनआरसी नोटिस का भी जिक्र किया। यह मुद्दा पहले से ही संवेदनशील रहा है, क्योंकि बड़ी संख्या में बंगाली भाषी लोगों को नागरिकता साबित करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। इस संदर्भ में ममता का रुख केंद्र सरकार के कदमों पर सवाल खड़ा करता है कि क्या यह प्रक्रिया वास्तव में पारदर्शी और न्यायपूर्ण है।
उन्होंने एक और महत्वपूर्ण बात कही-सघन मतदाता पुनरीक्षण कार्य को दो से तीन महीने में पूरा करने की केंद्र की योजना को अव्यावहारिक बताया। उनका तर्क है कि पिछली बार इसमें दो साल लगे थे। यह सवाल लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता से जुड़ा है। अगर यह कार्य जल्दबाज़ी में होगा तो मतदाता सूची में त्रुटियां बढ़ सकती हैं और बड़ी संख्या में लोगों का नाम गलत तरीके से हटाया या जोड़ा जा सकता है।
राजनीतिक रूप से देखें तो ममता का यह भाषण बंगाल के भीतर अपनी स्थिति मजबूत करने का प्रयास भी है। केंद्र के खिलाफ मुखर होना उनके वोट बैंक को यह संदेश देता है कि वे बंगाल की स्वायत्तता की रक्षा के लिए संघर्षरत हैं। वहीं यह बयानबाज़ी उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में भी अलग पहचान देती है-विशेषकर उन विपक्षी नेताओं के बीच जो संघीय ढांचे में केंद्र के बढ़ते दखल पर सवाल उठा रहे हैं।
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