राजद का युवाओं पर बड़ा दांव

- लेकिन जिन वरिष्ठ नेताओं के टिकट कटेंगे, उनका असंतोष गहरी चुनौती बन सकता है। निर्दलीय उम्मीदवार और वोट कटने की आशंका से जीत-हार का गणित उलझ सकता है
Khabari Chiraiya Desk : बिहार की राजनीति इस समय एक दिलचस्प मोड़ पर खड़ी है। जहां हर दल युवाओं के वोट बैंक को साधने में जुटा है, वहीं राजद ने इस बार सबसे बड़ा दांव खेलते हुए टिकट वितरण में युवा चेहरों को प्राथमिकता देने का फैसला किया है। यह कदम न केवल पीढ़ी परिवर्तन का संकेत है बल्कि आने वाले समय में पार्टी की कार्यशैली और सोच में बदलाव का प्रतीक भी माना जा रहा है। परंतु इस फैसले के साथ जोखिम भी कम नहीं है-उम्रदराज नेताओं का असंतोष और उनके बगावत का खतरा सीधे-सीधे जीत-हार के समीकरण पर असर डाल सकता है।
राजद का यह प्रयोग बिहार की सियासी ज़मीन पर नया संदेश भेजता है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में पार्टी अपने को नई पीढ़ी के अनुकूल दिखाने की कोशिश कर रही है। सोशल मीडिया पर सक्रिय युवा चेहरों और आक्रामक प्रवक्ताओं की ब्रिगेड ने पहले ही पार्टी को नया जोश दिया है। अब चुनाव मैदान में युवाओं को उतारकर पार्टी यह जताना चाहती है कि अगर वह सत्ता में आई तो नई सोच के साथ नई नीतियां लागू करेगी।
हालांकि हर बड़ा निर्णय अपने साथ कई तरह के जोखिम लेकर आता है। जिन वरिष्ठ नेताओं के टिकट कटेंगे, उनके भीतर असंतोष पनपना स्वाभाविक है। बिहार की राजनीति गवाह रही है कि नाराज नेताओं का निर्दलीय चुनाव लड़ना या विरोधी दलों में शामिल होना वोटों का बड़ा नुकसान कर सकता है। कई बार कुछ हजार वोट भी पूरे नतीजे को बदल देते हैं। ऐसे में यह रणनीति पार्टी के लिए जीत का मंत्र भी बन सकती है और हार की वजह भी।
जरूरी है कि राजद टिकट वितरण से पहले पारदर्शिता पर जोर दे। यह स्पष्ट करे कि किन मानदंडों पर युवा चेहरों का चयन हुआ है-सिर्फ उम्र नहीं, बल्कि स्थानीय पकड़, संगठनात्मक काम और जीतने की क्षमता भी इसमें शामिल होनी चाहिए। साथ ही वरिष्ठ नेताओं को पूरी इज्जत के साथ चुनावी अभियान और संगठनात्मक भूमिकाओं में शामिल किया जाए ताकि वे उपेक्षित महसूस न करें।
राजद का यह फैसला बिहार की राजनीति में बदलाव की नई हवा ला सकता है, बशर्ते पार्टी अंदरूनी असंतोष को समय रहते शांत कर दे। अगर यह संतुलन साध लिया गया तो युवाओं का जोश और वरिष्ठों का अनुभव मिलकर पार्टी को सत्ता तक पहुंचा सकते हैं। लेकिन अगर यह दांव उल्टा पड़ा, तो यही प्रयोग कई सीटों पर हार का कारण भी बन सकता है। राजनीति में केवल चेहरा बदलना काफी नहीं, संवाद और संतुलन बनाना भी उतना ही जरूरी है।
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