गांधी की सादगी और सत्याग्रह की पहली गूंज

- साठी स्टेशन से पैदल कटहरी गांव पहुंचे थे महात्मा गांधी, किसानों को दी नील की खेती छोड़ने की प्रेरणा
अरुण शाही, बिहार
चंपारण की धरती पर सत्याग्रह की नींव पड़ चुकी थी। अंग्रेजों की हुकूमत हिल रही थी और किसान पहली बार अपनी पीड़ा खुलकर कहने लगे थे। ऐसे ही माहौल में 30 अप्रैल 1917 को महात्मा गांधी का साठी स्टेशन पर आगमन हुआ।
भीड़ और सादगी का पहला दर्शन
सुबह से ही हजारों लोग स्टेशन पर जमा थे। जयकारे गूंज रहे थे। अंग्रेज प्रबंधक मिस्टर सी. स्टील ने गांधी जी को रिझाने के लिए बग्घी और घुड़सवार तैयार कर रखे थे, लेकिन गांधी ने उसे ठुकरा दिया। वे किसानों के साथ तीन किलोमीटर पैदल चलते हुए कटहरी गांव कुबेर दुबे के घर पहुंचे। वहां स्नान और भोजन के बाद बिना विश्राम किए वे सीधे किसानों की समस्याओं पर बातचीत करने निकल पड़े।
अंग्रेज प्रबंधकों से सामना
कटहरी से वे साठी कोठी पहुंचे और अंग्रेज प्रबंधक सी. स्टील तथा परसा कोठी के केनिन से किसानों की परेशानियों पर चर्चा की। इसके बाद गांधी ने परोराहां, पकड़ीहार, समहौता और चांदबरवा जैसे इलाकों का पैदल भ्रमण किया। किसानों की दास्तानें सुनीं और जब अंग्रेजों ने समाधान से कन्नी काटी तो उन्होंने किसानों को नील की खेती का बहिष्कार करने की सलाह दी। यही चिंगारी आगे चलकर आंदोलन की लपटों में बदल गई।
पकड़ीहार की सभा और ऐतिहासिक कुआं
पकड़ीहार गांव में भिखम गिरी के दरवाजे पर गांधी जी ने किसान सभा की। वहीं पास के कुएं पर बैठकर किसानों की तकलीफों पर विमर्श किया। यह कुआं और समीप का मंदिर आज भी गांधी के आगमन की ऐतिहासिक गवाही देते हैं।
धरोहर की उपेक्षा
आज साठी कोठी पर दबंगों का कब्जा है। भवन का अस्तित्व मिट चुका है, केवल एक शिलापट शेष है जो गांधी की याद दिलाता है। कुआं और मंदिर को ग्रामीण गांधी स्मृति के रूप में सहेजकर रखे हुए हैं, पर इनके विकास की दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं हुआ।
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