October 14, 2025

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बिहार चुनाव 2025: चुनावी अखाड़े में फिर भारी पड़ेगा रुपयों का दांव

बिहार चुनाव 2025
  • निर्वाचन आयोग के नियम और सीमा महज दिखावे बनकर रह जाएंगे। 40 लाख की तय सीमा को लांघते हुए प्रत्याशी करोड़ों खर्च करेंगे

Khabari Chiraiya Desk : बिहार अब पूरी तरह चुनावी मोड में है। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल ने राजनीतिक दलों के साथ बैठक कर उन्हें चुनाव आचार संहिता के हर पहलू से अवगत कराया। आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशियों की जानकारी जनता से छिपाई नहीं जा सकेगी। प्रत्येक उम्मीदवार को अपने ऊपर दर्ज प्राथमिकी, दंड या सजा से संबंधित विवरण न केवल आयोग को देना होगा बल्कि इसे संचार माध्यमों के जरिए आम जनता को भी बताना अनिवार्य होगा।

निर्वाचन अधिसूचना जारी होने के सात दिनों के भीतर सभी राजनीतिक दलों को अपने स्टार प्रचारकों की सूची चुनाव आयोग को सौंपनी होगी-मान्यता प्राप्त दलों को 40 और अन्य दलों को 20 प्रचारकों की अनुमति दी जाएगी। इन प्रचारकों के लिए आवश्यक परमिट मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के कार्यालय से निर्गत होंगे। साथ ही, अभ्यर्थियों और राजनीतिक दलों के सभा-जुलूस, प्रचार व्यवहार, मतदान बूथ पर प्रवेश तथा प्रेक्षक और प्रेसीडिंग अधिकारी की नियुक्ति तक के नियम स्पष्ट रूप से तय किए गए हैं।

लेकिन हर चुनाव की तरह इस बार भी यह तय सीमा और निर्देश केवल कागज़ पर सिमटने वाले हैं। 40 लाख रुपये की खर्च सीमा शायद किसी छोटे प्रचार कार्यक्रम के लिए पर्याप्त हो, लेकिन बिहार जैसे विशाल राज्य में यह राशि हंसी का पात्र बन जाती है। रैलियों में उमड़ती भीड़, शहरों में टंगे बैनर-पोस्टर, वाहनों का काफिला और विज्ञापन-सब कुछ बताता है कि असली खर्च करोड़ों में है। चुनाव मैदान में ‘खर्च सीमा’ की घोषणा होती है, पर खर्च का हिसाब कभी सामने नहीं आता।

यह प्रवृत्ति लोकतंत्र की आत्मा को कमजोर करती है। जब कोई उम्मीदवार करोड़ों लगाकर टिकट खरीदता और प्रचार चलाता है तो जनता का प्रतिनिधि नहीं बल्कि निवेशक बन जाता है। फिर राजनीति सेवा नहीं, ‘निवेश की वसूली’ का माध्यम बन जाती है। ऐसे में मतदाता की आवाज़ दब जाती है और लोकतंत्र सिर्फ दिखावे में रह जाता है।

चुनाव आयोग की पारदर्शिता की कोशिशें सराहनीय हैं, लेकिन जब तक राजनीतिक दल खुद ईमानदारी से इन सीमाओं का पालन नहीं करेंगे, तब तक ‘40 लाख की सीमा’ हर बार एक औपचारिक मज़ाक बनकर रह जाएगी। बिहार का यह चुनाव फिर साबित करेगा कि लोकतंत्र की सबसे बड़ी चुनौती आज भी ‘काला धन’ ही है, जो हर रैली की चमक के पीछे छिपा रहता है।

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