बिहार की चुनावी जंग में बिगड़ती भाषा राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में गरिमा की सीमाएं लांघ रहीं हैं…
- मुजफ्फरपुर के सकरा में कांग्रेस नेता राहुल गांधी का यह बयान “चुनाव से पहले अगर मोदी से कहो तो वो वोट पाने के लिए नाचने लगेंगे”, भाजपा ने इसे गंभीरता से लेते हुए चुनाव आयोग से सख्त कार्रवाई की मांग की है
Khabari Chiraiya Bihar Desk: बिहार की चुनावी जंग में बिगड़ती भाषा एक बार फिर राजनीतिक बयानबाज़ी के शोर में डूब गई है। यहां अब भाषणों में विकास की जगह व्यंग्य और कटाक्ष की गूंज ज़्यादा सुनाई दे रही है। मुजफ्फरपुर के सकरा में कांग्रेस नेता राहुल गांधी का यह बयान-चुनाव से पहले “अगर मोदी से कहो तो वो वोट पाने के लिए नाचने लगेंगे”, इसी माहौल की पराकाष्ठा है। यह बयान न केवल प्रधानमंत्री जैसे संवैधानिक पद की गरिमा को चुनौती देता है, बल्कि चुनावी राजनीति को व्यक्तिगत आरोपों के दलदल में धकेल देता है।
भाजपा ने इस बयान को गंभीरता से लेते हुए चुनाव आयोग से राहुल गांधी पर सख्त कार्रवाई की मांग की है। पार्टी के निर्वाचन आयोग समन्वय विभाग के संयोजक बिंध्याचल राय ने अपने तीन पृष्ठों के पत्र में कहा कि राहुल का बयान आदर्श आचार संहिता का घोर उल्लंघन है और प्रधानमंत्री के पद की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला है। उन्होंने आयोग से मांग की है कि राहुल के बिहार प्रचार पर रोक लगाई जाए और बिना शर्त सार्वजनिक माफी मांगी जाए।
लेकिन असल सवाल इससे भी बड़ा है कि क्या बिहार की यह चुनावी जंग अब विचारों की नहीं, बल्कि कटाक्षों की लड़ाई बन चुकी है? हर दल अपने विरोधी पर तंज कसने में इतना व्यस्त है कि जनता के मुद्दे, महंगाई, बेरोजगारी और विकास जैसे विषय पीछे छूटते जा रहे हैं। भाषण अब सभ्यता के मंच से उतरकर व्यंग्य और अपमान की धरती पर पहुंच गए हैं।
आदर्श आचार संहिता साफ़ कहती है कि किसी राजनीतिक दल या प्रत्याशी को निजी आलोचना से बचना चाहिए। मगर आज के चुनावी मंचों पर शब्दों के तीर ऐसे छोड़े जा रहे हैं जैसे मर्यादा कोई मायने ही न रखती हो। राहुल गांधी का यह बयान उसी गिरते स्तर का संकेत है, जो बताता है कि राजनीतिक प्रतिस्पर्धा अब गरिमा की सीमाएं लांघ रहीं हैं।
बिहार के चुनावों में कटाक्षों का यह दौर नया नहीं है, पर इस बार यह पहले से कहीं ज़्यादा तेज़ और तीखा है। नेता जनता से संवाद कम और विरोधियों पर व्यंग्य ज़्यादा कर रहे हैं। चुनावी सभाओं का माहौल ऐसा हो गया है जैसे यह लोकतंत्र नहीं, बल्कि तंज़ और तमाशे की होड़ हो।
लोकतंत्र में असहमति की जगह हमेशा बनी रहनी चाहिए, पर यह असहमति जब व्यक्तिगत अपमान में बदल जाती है, तो राजनीति अपनी आत्मा खो देती है। प्रधानमंत्री पद किसी व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे देश की मर्यादा का प्रतीक होता है। उस पर इस तरह की टिप्पणी करना न केवल आचार संहिता का उल्लंघन है, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों का भी अपमान है।
बिहार की जनता इस बार नेताओं के शब्दों पर भी नजर रखेगी। क्योंकि विकास का असली रास्ता कटाक्ष से नहीं, नीति और नीयत से बनता है। जो नेता मर्यादा के साथ अपनी बात रखेगा, वही जनता के मन में जगह बनाएगा। बाकी सब सिर्फ भीड़ में शोर भर रह जाएंगे।
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