December 21, 2025

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मुरादाबाद : एक छात्रा की खामोश जंग और समाज की नाकामी

  • मुरादाबाद की छात्रा की आत्महत्या कोई सामान्य घटना नहीं, तीन साल तक वह अकेले डर, दबाव और धमकी का बोझ उठाती रही

Khabari Chiraiya Desk: यूपी के मुरादाबाद के ठाकुरद्वारा क्षेत्र में बीए तृतीय वर्ष की छात्रा द्वारा फंदे पर झूलकर जान देने की घटना सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि समाज की उस कठोर सच्चाई को उजागर करती है जिसमें लड़कियां कई बार अकेले संघर्ष करती हैं और आवाज उठाने से घबराती हैं। यह लड़की पढ़ाई में आगे बढ़ना चाहती थी, सरकारी नौकरी पाने का सपना देखती थी और अपने पिता से किए वादे को पूरा करना चाहती थी। लेकिन उसकी जिंदगी में तीन साल पहले एक ऐसी दरार पड़ी जिसने धीरे-धीरे उसे तोड़ दिया।

स्कूल से लौटते वक्त उसे पहली बार आरोपी फैसल मिला। लड़की ने संवाद से साफ इनकार किया, मगर फैसल ने किसी तरीके से उसका मोबाइल नंबर हासिल कर लिया। इसके बाद फोन करना, परेशान करना और लगातार पीछा करना उसकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गया। फैसल अकेला नहीं था, उसके साथ शान नाम का युवक भी था जो मिस्सरवाला थाना कुंडा उत्तराखंड का रहने वाला है। दोनों मिलकर कॉलेज आने-जाने के दौरान उसका पीछा करते रहे।

यह बात सबसे ज्यादा तकलीफ देती है कि छात्रा ने अपनी परेशानी परिवार को नहीं बताई। कई बार घरवालों ने उसके बदले व्यवहार पर सवाल उठाए, लेकिन वह चुप रही। उसके मन में यह डर गहरा हो चुका था कि आरोपितों के पास कोई ऐसा वीडियो या सामग्री है जिसके दम पर वे उसे ब्लैकमेल कर रहे थे। यही वजह रही कि वह हर रोज भीतर ही भीतर टूटती रही। वह अपनी सुरक्षा के लिए, अपनी पढ़ाई के लिए और अपनी इज्जत के लिए अकेले लड़ रही थी, लेकिन मानसिक दबाव इतना बढ़ गया कि आखिरकार उसने खुद को कमरे में बंद किया और फांसी लगा ली।

कमरे से मिले सुसाइड नोट की दो पंक्तियां उसके दर्द की पूरी गहराई दिखा देती हैं। उसने लिखा कि वह अपने पिता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी और वह ब्लैकमेलिंग का शिकार थी। यह केवल पंक्तियां नहीं, उसके टूटे हुए आत्मविश्वास का आखिरी दर्ज किया गया सबूत हैं।

पुलिस ने फैसल और शान के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने की धाराओं में प्राथमिकी दर्ज की है। एसपी देहात कुंवर आकाश सिंह ने कहा है कि दोनों की तलाश जारी है और जल्द गिरफ्तारी होगी। लेकिन यह सवाल यहीं नहीं रुकता। क्या केवल एफआईआर और गिरफ्तारी से ऐसे मामलों को रोका जा सकता है? क्या यह समाज की जिम्मेदारी नहीं कि लड़कियां बिना डर के अपने दिल की बात कह सकें? क्या परिवारों को अपने बच्चों को इतना खुलापन नहीं देना चाहिए कि वे किसी भी खतरे की जानकारी तुरंत साझा कर सकें?

छात्रा की मौत हमें बता रही है कि मानसिक उत्पीड़न भी उतना ही घातक है जितना कोई शारीरिक हमला। यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि लड़कियों की खामोशी को हम कब गंभीरता से लेंगे। मुरादाबाद की यह घटना किसी एक परिवार का दर्द नहीं, बल्कि पूरे समाज की चेतावनी है कि अगर हमने अब भी नहीं बदला तो ऐसी खामोश मौतें यूं ही होती रहेंगी।

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