पश्चिम बंगाल में महिला बीएलओ की मौत
- परिवार ने कहा कि काम का भार लगातार बढ़ता गया और वह मानसिक तनाव सहन नहीं कर पाईं
Khabari Chiraiya Desk: पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के दौरान एक महिला बूथ लेवल ऑफिसर की मौत ने बहस छेड़ दी है कि क्या चुनावी तैयारी के दौरान फील्ड कर्मचारियों पर दबाव असहनीय स्तर पर पहुंच चुका है। माल बाजार क्षेत्र में रंगामाटी पंचायत की रहने वाली शांतिकुमारी एक्का अपने घर के आंगन में मृत पाई गईं। परिवार के लोगों ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से वह लगातार तनाव में थीं और बार-बार काम का ज़िक्र करती थीं।
शांतिकुमारी को हाल ही में एसआईआर का काम सौंपा गया था। बतौर बीएलओ उन्हें घर-घर जाकर फॉर्म बांटने, लोगों की जानकारी दर्ज करने और भरे हुए फॉर्म वापस लाने की जिम्मेदारी मिली थी। यह कार्य उनके लिए बेहद चुनौतीपूर्ण साबित हुआ क्योंकि पंचायत के कई इलाकों में लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी। परिवार ने बताया कि वह देर रात तक थकी हुई घर लौटती थीं और अगले दिन सुबह फिर काम पर निकल जाती थीं।
सुबह जब परिजन घर के आंगन में पहुंचे तो उनका शव ऊपर बंधे एक फंदे से लटकता मिला। परिवार ने तुरंत पड़ोसियों को बुलाया और इसकी सूचना पुलिस को दी। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर शव को कब्जे में लिया और पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया। प्राथमिक जांच के बाद पुलिस ने इसे आत्महत्या का मामला बताया है।
घटना की जानकारी फैलते ही पूरे इलाके में शोक का माहौल बन गया। इसी बीच अनुसूचित जाति, जनजाति कल्याण विभाग के राज्य मंत्री बुलु चिक बाराइक मृतका के घर पहुंचे और परिवार से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाएं बेहद पीड़ादायक हैं और यह साफ संकेत देती हैं कि फील्ड कर्मचारियों पर काम का दबाव कम करने के उपाय जरूरी हैं। उन्होंने परिवार को हर संभव मदद का भरोसा दिया।
यह मामला इसलिए भी संवेदनशील है क्योंकि इसी महीने पूर्व बर्दवान जिले में मेमारी की एक अन्य महिला बीएलओ, नमिता हांसदा की भी मौत हो गई थी। वह एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता थीं और मेमारी के चौक बलरामपुर इलाके के बूथ संख्या 278 पर बीएलओ की जिम्मेदारी संभाल रही थीं। परिवार ने आरोप लगाया था कि लगातार अत्यधिक काम और फॉर्म वितरण के दबाव ने उन्हें मानसिक रूप से तोड़ दिया था। बाद में उन्हें ब्रेन स्ट्रोक आया और उनकी मौत हो गई।
इन दोनों घटनाओं ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि चुनावी कार्यों के दौरान बीएलओ जैसे ग्राउंड कर्मचारियों को मिलने वाले संसाधन और राहत उपाय कितने पर्याप्त हैं। अक्सर उन्हें विभागीय कार्यों के साथ-साथ अतिरिक्त चुनावी कार्य भी संभालने पड़ते हैं, जिससे तनाव और थकान कई गुना बढ़ जाती है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि चुनावी प्रक्रिया में बीएलओ की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है, लेकिन उन पर काम का बोझ बढ़ता जा रहा है। कई क्षेत्रों में एक ही व्यक्ति को लंबा इलाका कवर करना पड़ता है और हर घर की जानकारी जुटाना एक कठिन प्रक्रिया होती है। समय सीमा तय होने के कारण दबाव और बढ़ जाता है।
शांतिकुमारी एक्का और नमिता हांसदा की मौत ने प्रशासन को इस ओर ध्यान दिलाया है कि चुनावी तैयारी के दौरान फील्ड कर्मचारियों के लिए सुरक्षित और संतुलित कार्य वातावरण सुनिश्चित करना जरूरी है। इन घटनाओं ने यह भी साफ कर दिया है कि जिम्मेदारियों का भार बढ़ाने से पहले सिस्टम को यह सोचना होगा कि क्या कर्मचारी उसकी क्षमता रखते हैं या नहीं।
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