December 21, 2025

खबरी चिरईया

नजर हर खबर पर

संघ प्रमुख मोहन भागवत की नजर में भारत की सभ्यता

  • मोहन भागवत ने ग्रीस, रोम और मिस्र जैसी शक्तियों के पतन का उल्लेख करते हुए भारत की स्थिरता पर जोर दिया

एनके मिश्रा, मणिपुर की संवेदनशील पृष्ठभूमि में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत का यह कहना कि भारतीय समाज एक अमर सभ्यता का प्रतीक है, केवल एक सामान्य वक्तव्य नहीं बल्कि भारतीय पहचान की जड़ों पर गहरे चिंतन का संकेत है। वे मानते हैं कि दुनिया की कई प्राचीन सभ्यताएं अपने पतन की ओर बढ़ गईं, लेकिन भारत का सामाजिक ढांचा आज भी जीवित है और आगे भी कायम रहेगा। यह विचार तब और महत्वपूर्ण हो जाता है जब इसे उस भूमि से व्यक्त किया जाता है जहां आपसी तनाव और सामाजिक असहमति लंबे समय से चुनौती बने हुए हैं।

भागवत ने अपने संबोधन में यह स्पष्ट किया कि समाज की शक्ति उसके अंदर मौजूद बुनियादी नेटवर्क में छिपी होती है। यह नेटवर्क केवल किसी एक समुदाय या विचारधारा की देन नहीं होता। इसे समय के साथ समाज स्वयं निर्मित करता है और अपनी पीढ़ियों तक पहुंचाता है। इसी कारण भारतीय समाज हर संकट के बाद फिर खड़ा हो जाता है। यह स्थिरता किसी एक कारण का परिणाम नहीं बल्कि सहिष्णुता, आध्यात्मिकता और विविधता को समेटने वाली जीवन शैली का प्रभाव है।

उन्होंने अपने वक्तव्य में प्राचीन सभ्यताओं का जिक्र करते हुए कहा कि यूनान, मिस्र और रोम जैसे देशों का उत्थान और पतन दुनिया ने देखा। आज ये सभ्यताएं इतिहास का हिस्सा हैं। दूसरी ओर भारत ने अपनी सांस्कृतिक पहचान को निरंतर जीवित रखा है। इस कथन को इतिहास के अनेक उदाहरणों से जोड़ा जा सकता है। बाहरी आक्रमण, राजनीतिक उतार चढ़ाव, सत्ता परिवर्तन और सामाजिक चुनौतियां कभी भारत की आत्मा को समाप्त नहीं कर पाईं।

भागवत ने स्वतंत्रता संग्राम का उल्लेख करते हुए यह बात कही कि ब्रिटिश साम्राज्य को दुनिया का सबसे शक्तिशाली शासन माना जाता था। लेकिन भारत में उनके प्रभुत्व का अंत हमारे सामूहिक प्रयासों से ही हुआ। यह उदाहरण उन्होंने इस उद्देश्य से दिया कि जब समाज यह तय कर लेता है कि अब किसी अन्याय या समस्या को स्वीकार नहीं करना है, तब उसका समाधान निश्चित होता है। यह बात उन्होंने नक्सलवाद जैसे मुद्दों से जोड़कर कही कि जब समाज ने इसे अस्वीकार किया तो इस समस्या का प्रभाव कम होने लगा।

मणिपुर में भागवत की बैठक का एक और महत्वपूर्ण पहलू सामाजिक एकता की अपील था। उन्होंने कहा कि संघ किसी के विरोध के लिए नहीं बल्कि समाज को मजबूत बनाने के लिए कार्य करता है। यह विचार विशेष रूप से उस क्षेत्र में महत्वपूर्ण हो जाता है जहां लंबे समय से सामाजिक विभाजन और अविश्वास की स्थिति बनी हुई है।

इन सभी संदर्भों के बीच एक प्रमुख सवाल यह भी उभरता है कि क्या किसी समाज की स्थिरता केवल सांस्कृतिक पहचान से सुरक्षित रह सकती है या उसे समय की मांग के अनुसार बदलने की क्षमता भी जरूरी होती है। भारत की वास्तविक शक्ति उसकी विविधता और संवाद की परंपरा में है। इस परंपरा ने ही उसे बार बार संकटों से बाहर निकाला है।

भागवत के विचारों को व्यापक संदर्भ में देखें तो वे केवल धार्मिक आग्रह नहीं बल्कि समाज के आत्मबल पर विश्वास का संदेश हैं। भारत की सभ्यता तभी सुरक्षित रह सकती है जब उसका समाज परस्पर सम्मान, समन्वय और न्याय की भावना को जीवित रखे।

यह भी पढ़ें… बिहार : श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज में रैगिंग का पर्दाफाश

यह भी पढ़ें… बिहार : नई सरकार ने किया मंत्रियों के बीच विभागों का बंटवारा

यह भी पढ़ें… आठवें वेतन आयोग से केंद्रीय कर्मचारियों की आमदनी में बड़ा उछाल संभव

यह भी पढ़ें… कर्नाटक में नेतृत्व पर बढ़ती खींचतान ने कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ाईं

आगे की खबरों के लिए आप हमारी वेबसाइट पर बने रहें…

error: Content is protected !!