लोकतंत्र की नींव का पर्व संविधान दिवस
- 26 नवंबर भारतीय लोकतंत्र की उस ऐतिहासिक घड़ी की याद दिलाता है जब देश ने अपने भविष्य की दिशा तय की थी
Khabari Chiraiya Desk: भारत में 26 नवंबर को सिर्फ एक कैलेंडर तिथि के रूप में नहीं देखा जाता, बल्कि इसे उस दिन की स्मृति के रूप में मनाया जाता है जब देश ने अपने भविष्य की दिशा तय की थी। 1947 में आजादी मिलने के बाद देश को एक ऐसे दस्तावेज की आवश्यकता थी जो नागरिकों के अधिकारों, सरकार की संरचना और लोकतांत्रिक मूल्यों की व्यवस्था तय करे। इसी प्रक्रिया का परिणाम हमारे संविधान के रूप में सामने आया, जिसे 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया। इस ऐतिहासिक स्वीकारोक्ति को आज पूरे देश में संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
यह दिवस नागरिकों में संवैधानिक मूल्यों के प्रति सम्मान और जागरूकता बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। यह समझने का अवसर भी है कि संविधान सिर्फ एक पुस्तक नहीं, बल्कि वह जीवनदर्शन है जिसने भारत को आधुनिक लोकतंत्र बनने का मार्ग दिखाया। आज भारत में हर नागरिक को जो अधिकार प्राप्त हैं-चाहे वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो, समानता का अधिकार हो या विधि की समान सुरक्षा-इन सभी का आधार यही संविधान है। यही दस्तावेज नागरिकों के कर्तव्यों को भी निर्धारित करता है, जो राष्ट्र निर्माण में समान रूप से महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
संविधान दिवस मनाने की परंपरा वर्ष 2015 में शुरू हुई, जब भारत सरकार ने डॉ. भीमराव आंबेडकर की 125वीं जयंती के अवसर पर निर्णय लिया कि 26 नवंबर को देशभर में संविधान दिवस के रूप में मनाया जाएगा। डॉ. आंबेडकर को संविधान निर्माण में उनके अद्वितीय योगदान के कारण भारत का संविधान निर्माता कहा जाता है। यह निर्णय संविधान की समग्र भावना और डॉ. आंबेडकर के विचारों का सम्मान था।
अक्सर एक सवाल उठता है कि जब संविधान 26 नवंबर 1949 को स्वीकार कर लिया गया था तो उसे लागू 26 जनवरी 1950 को क्यों किया गया। इसका उत्तर भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के एक महत्वपूर्ण क्षण में छिपा है। 26 जनवरी 1930 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज का संकल्प लिया था। इसी ऐतिहासिक तिथि के सम्मान में संविधान को लागू करने के लिए 26 जनवरी की प्रतीक्षा की गई और यही तिथि बाद में गणतंत्र दिवस के रूप में स्थापित हुई।
संविधान को तैयार करने में कुल 2 वर्ष, 11 माह और 18 दिन लगे। यह विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है, जिसमें दुनिया के कई देशों की संविधान प्रणालियों के श्रेष्ठ विचारों को समाहित किया गया। संसद, कार्यपालिका, न्यायपालिका, केंद्र और राज्य सरकारों की शक्तियों का संतुलन, नागरिक अधिकारों की रक्षा, चुनाव प्रणाली और प्रशासनिक संरचना-इन सबका विस्तृत विवरण संविधान में दर्ज है।
संविधान की असली हस्तलिखित प्रति प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने उत्कृष्ट कैलीग्राफी शैली में अंग्रेजी भाषा में लिखी थी। यह प्रति आज भी भारत की सांस्कृतिक विरासत का दुर्लभ और गौरवशाली हिस्सा मानी जाती है।
संविधान दिवस का संदेश साफ है-अधिकारों के साथ कर्तव्य भी निभाने होंगे। यह दिवस नागरिकों को याद दिलाता है कि लोकतंत्र तभी मजबूत बनता है, जब लोग अपने अधिकारों के लिए सजग हों और अपने कर्तव्यों को निष्ठा से पूरा करें। यह त्योहार नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय संकल्प है, जो हर पीढ़ी को स्वतंत्रता, समानता और न्याय की भावना से जोड़ता है।
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