December 21, 2025

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पिछड़ों ने भुला दिया विश्वनाथ प्रताप सिंह को

“राजा साहब के नाम से पहचाने जाने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह ने प्रधानमंत्री पद की प्रतिष्ठा छोड़कर एक फकीर की तरह जीवन जिया, इतिहास उन्हें एक महत्त्वपूर्ण अध्याय के रूप में हमेशा याद रखेगा”

✍️प्रभात कुमार✍️

विश्वनाथ प्रताप सिंह केवल देश के सातवें प्रधानमंत्री ही नहीं थे, बल्कि एक बड़े सुधारक और समतामूलक दृष्टिकोण वाले राजनेता थे। उनका लक्ष्य समाज के अंतिम व्यक्ति तक उसके अधिकारों को पहुंचाना था, ताकि शिक्षा से लेकर रोजगार तक समान अवसर मिल सकें। इसी सोच के तहत उन्होंने पिछड़े समाज के आरक्षण को लागू किया, जो उन्हें समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने की दिशा में एक निर्णायक कदम था। यह उस समय दक्षिणपंथी ताकतों के बढ़ते प्रभाव के बीच देश में एक समाजवादी सरकार की मजबूत कोशिश भी थी।

हालांकि आरक्षण का लाभ पिछड़ी जातियों के आम लोगों की तुलना में अधिकतर उनकी ही जाति के प्रभावशाली नेताओं को मिला। बिहार में आज मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उसी दौर और उसी राजनीतिक स्कूल से निकले नेता हैं, जो बीते दो दशकों से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं। यह अलग बात है कि उनकी राजनीति आज भी उन्हीं लोगों के सहारे टिकी हुई है, जिन्होंने कभी विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार को गिराया था।

देश की राजनीति में भी कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार के पतन के बाद दो वर्षों के भीतर ही मंडल से निकले नेता आपसी संघर्ष में उलझकर अपनी संभावनाएं खो बैठे। लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव अपने-अपने राज्यों में सीमित हो गए। वहीं जॉर्ज फर्नांडिस और रामविलास पासवान जैसे नेता एनडीए सरकार का हिस्सा बन गए। इसके साथ ही अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में वह सरकार बनी, जो मूल रूप से अगड़ी जातियों, दक्षिणपंथी ताकतों और न्यूनतम साझा कार्यक्रम के साथ पिछड़ों के समर्थन पर टिके गठबंधन की राजनीति का परिणाम थी। यह राजनीति और यह सरकार मूल रूप से विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार की आत्मा के बिल्कुल विपरीत थी।

“सच्चाई यही है कि मंडल राजनीति के प्रतिनिधि रहे नेताओं ने सत्ता की मलाई के लिए मंडल को कमंडल में विलय कर दिया। इसके परिणामस्वरूप पुरानी सामंती ताकतों की वापसी होने लगी। फिर यूपीए का दौर शुरू हुआ। कांग्रेस सत्ता में लौटी पर मंडल राजनीति से दूर ही रही। दस वर्षों की सत्ता के बावजूद कांग्रेस आरएसएस और भाजपा की लगातार बढ़ती रणनीतियों को समझ नहीं सकी। इसी कारण 2014 में दक्षिणपंथ की जोरदार वापसी हुई और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने। देशभर में मोदी लाओ की ऐसी लहर चली कि नीतीश कुमार जैसे नेता भी अपनी ही सरकार में उपेक्षित होने लगे।”

नरेंद्र मोदी का उदय और विश्वनाथ प्रताप सिंह की मंडल राजनीति का सूर्यास्त लगभग एक साथ हुआ। इसके बाद आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों के लिए आरक्षण लागू हुआ, जो एक तरह से विश्वनाथ प्रताप सिंह के पिछड़ा आरक्षण के मूल उद्देश्य को हाशिये पर ले गया। आज मंडल और आरक्षण की जो स्थिति है, उसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार मंडलवादी नेता ही हैं। बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की सिफारिशों के आधार पर जिस आरक्षण को लागू किया गया, उसके जनक स्वयं 1982 में ही गुजर गए। वे इस ऐतिहासिक फैसले के सुख और दुख—दोनों ही देखने से वंचित रह गए।

विश्वनाथ प्रताप सिंह एक दूरदर्शी और दृढ़ व्यक्तित्व वाले राजनेता के रूप में याद किए जाएंगे। उन्होंने भारतीय राजनीति में पिछड़े वर्गों और उनकी जातीय आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व किया। फिर भी, उसी राजनीति के सहारे सत्ता के शिखर पर पहुंचे नेताओं ने समय से पहले ही उन्हें भुला दिया—यह अवसरवादी राजनीति का चरम है।

मंडल आंदोलन और आरक्षण के कारण देश में नई सामाजिक चेतना का उदय हुआ। राजा साहब के नाम से पहचाने जाने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह ने प्रधानमंत्री पद की प्रतिष्ठा छोड़कर एक फकीर की तरह जीवन जिया। उन्होंने मंडल आयोग की सिफारिश लागू कर रातों-रात पिछड़ों के सबसे बड़े नायक का स्थान पाया, लेकिन कमंडल की ताकतों से टकराव के बाद वे राजनीतिक रूप से हाशिये पर पहुंच गए। उनकी यह कुर्बानी भारतीय राजनीति में पिछड़ों के लिए डॉ भीमराव अंबेडकर के बाद सबसे बड़ी घटना मानी जाएगी।

मंडल आंदोलन के बाद कांग्रेस की राजनीतिक शक्ति कमजोर हुई और देश की राजनीति एक नए मोड़ पर पहुंची। उनकी सरकार के पतन के बाद चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने और बाद में कांग्रेस फिर सत्ता में लौटी, लेकिन उसकी ताकत आधी रह गई। इसी बीच देश में एक तरफ मंडल रथ और दूसरी तरफ राम जन्मभूमि आंदोलन का रथ एक साथ चल पड़ा। लालकृष्ण आडवाणी के रथयात्रा ने उच्च जातियों और दक्षिणपंथी ताकतों को संगठित किया, जबकि पिछड़ा और दलित समाज मंडल की राजनीति में सक्रिय हुआ। पूरा देश सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष की स्थिति में घिर गया, जिसे इतिहास ने मंडल बनाम कमंडल की राजनीति का नाम दिया।

“मंडल की सिफारिशें लागू कर विश्वनाथ प्रताप सिंह सत्ता से दूर हो गए, लेकिन सच यही है कि भारतीय राजनीति में पिछड़े और दलित समाज के लिए डॉ. भीमराव अंबेडकर के बाद वे सबसे बड़े नेता थे। इतिहास उन्हें एक महत्त्वपूर्ण अध्याय के रूप में हमेशा याद रखेगा।”

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