कानपुर ने खो दिया अपना सच्चा सरपरस्त
श्रीप्रकाश जायसवाल ने जीवन की अंतिम यात्रा पूरी की। एक ऐसा नेता जिसकी मुस्कुराहट में अपनापन था और जिसके फैसलों में शहर की धड़कनें बसती थीं
Khabari Chiraiya Desk: कानपुर की रात अचानक भारी हो गई, जब यह खबर फैली कि वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल अब इस दुनिया में नहीं रहे। उनका निधन शुक्रवार देर रात हुआ और कुछ ही देर में शहर के हर कोने में शोक की गहरी लहर फैल गई। जिस व्यक्ति ने तीन दशकों तक कानपुर की राजनीति को दिशा दी वह अचानक चुप होकर चला गया।
रात में तबीयत बिगड़ने के बाद परिवार उन्हें पोखरपुर स्थित आवास से तत्काल हृदय रोग संस्थान लेकर पहुंचा, लेकिन डॉक्टरों ने बताया कि अस्पताल पहुंचने से पहले ही जीवन की डोर टूट चुकी थी। परिवार के लोग टूट गए और शहर की हवा में एक दर्द भरा सन्नाटा फैल गया। परिवार ने बताया कि उनके बड़े बेटे सिद्धार्थ इस समय कनाडा में हैं, इसलिए अंतिम संस्कार रविवार को किया जाएगा।
श्रीप्रकाश जायसवाल की राजनीतिक यात्रा प्रेरणा से भरी रही। मेयर से लेकर संसद तक उनके सफर ने बहुतों के जीवन को छुआ और शहर की पहचान को नई दिशा दी। उनका नेतृत्व तब सामने आया जब 1989 में वे मेयर चुने गए। उस दौर में सभासद मेयर का चुनाव करते थे और वहीं से उनकी सार्वजनिक छवि मजबूत हुई।
1999 में उन्होंने कानपुर लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की और पहली बार संसद पहुंचे इसी के बाद उनके राजनीतिक कद में तेजी से बढ़ोतरी हुई। चार दिसंबर दो हजार में कांग्रेस ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जिसे उन्होंने दृढ़ता और सहजता के साथ निभाया। इसके बाद 2004 के चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद उन्हें केंद्रीय गृह राज्य मंत्री बनाया गया।
2009 में तीसरी बार सांसद बनने पर उन्हें कोयला मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली। इस दौरान उनका प्रभाव इतना बढ़ गया कि भाजपा ने उन्हें हराने के लिए 2014 में अपने सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक डॉ मुरली मनोहर जोशी को मैदान में उतारा। उस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा और 2019 में सत्यदेव पचौरी से भी वे चुनाव नहीं जीत सके। वे 2024 का चुनाव नहीं लड़े और उनकी जगह आलोक मिश्रा को टिकट दिया गया।
कानपुर के विकास में उनके योगदान को भूल पाना मुश्किल है। शहर के लोग आज भी बताते हैं कि श्रम शक्ति एक्सप्रेस की शुरुआत हो या उद्योग नगरी जैसी पहचानों को मजबूती देना या फिर सीओडी पुल जैसा महत्वपूर्ण ढांचा तैयार कराना, हर उपलब्धि के पीछे उनकी सोच और प्रयास थे। वे हमेशा मानते थे कि शहर की प्रगति की असली जिम्मेदारी जनप्रतिनिधि पर होती है और उन्होंने इस जिम्मेदारी को कभी हल्का नहीं होने दिया।
पिछले कुछ वर्षों से उनका स्वास्थ्य लगातार गिर रहा था। कोरोना काल के बाद उनकी स्थिति और कमजोर हो गई। धीरे-धीरे उनकी स्मरण शक्ति भी प्रभावित होने लगी और वे परिचित चेहरों को पहचानने में कठिनाई महसूस करने लगे। यह बदलाव उनके पुराने साथियों और समर्थकों के लिए बेहद कष्टकारी था।
उनके निधन की खबर लगते ही राजनीतिक जगत में गहरा शोक छा गया मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि यह उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिए बड़ी क्षति है। सुबह होते-होते उनके पोखरपुर स्थित आवास पर लोगों की भीड़ उमड़ने लगी हर कोई उन्हें अंतिम बार देखने पहुंचा। कई पुराने कार्यकर्ता आंखों में आंसू लिए खड़े दिखाई दिए, क्योंकि उनके लिए श्रीप्रकाश जायसवाल सिर्फ एक नेता नहीं थे बल्कि एक पिता जैसे सहारा थे
आज कानपुर की गलियों में एक ही बात बार-बार सुनाई दे रही है कि ऐसा नेता दोबारा मिलना मुश्किल है। शहर ने सिर्फ एक राजनेता नहीं खोया, शहर ने अपनी पहचान का एक मजबूत हिस्सा खो दिया है। उनकी मुस्कान उनकी सादगी और लोगों से उनका अपनापन हमेशा याद रहेगा।
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