चकबंदी में तकनीक का हस्तक्षेप और किसानों की उम्मीदें
- उत्तर प्रदेश में वर्षों से चली आ रही चकबंदी की दुश्वारियां अब एक निर्णायक मोड़ पर पहुंचती दिख रही हैं
✍️अजय रत्न✍️
उत्तर प्रदेश में चकबंदी का नाम लेते ही आम किसान के मन में वर्षों की जटिल प्रक्रियाओं, बेमेल नक्शों और अनगिनत विवादों की तस्वीर उभरती है। ग्रामीण भूमि व्यवस्था का यह अध्याय इतना पेचीदा रहा है कि जमीन का असली मालिक ही अक्सर भ्रमित रहता है कि उसकी जमीन आखिर है कहां और कितनी। ऐसे में तकनीक आधारित ई-नक्शे की नई पहल सिर्फ सरकारी सुधार का हिस्सा नहीं, बल्कि भरोसे को बहाल करने की प्रक्रिया है।
वर्तमान समय में जमीन की पैमाइश पुराने कागजों, ग्रामीण लेखपालों की निजी समझ और दशकों पहले बने नक्शों के आधार पर हो रही है। समय बीतने के साथ खेतों की सीमाएं बदल गईं, रास्ते खिसक गए, नहरें कट गईं और आबादी बढ़ने के कारण नए निर्माण भी हुए। लेकिन कागजी नक्शे आज भी अपनी पुरानी लकीर पर अटके हैं। परिणामस्वरूप, जब पैमाइश की बात आती है तो विवादों के बादल छा जाते हैं। कई बार प्रभावशाली वर्ग अपनी पकड़ के कारण जमीन का आकार अपने पक्ष में मोड़ लेते हैं, जबकि कमजोर किसान अपने हिस्से को लेकर शिकायत दर्ज कराते-कराते थक जाते हैं।
ऐसे माहौल में रोवर मशीन से ई-नक्शा तैयार करने का फैसला एक बड़े बदलाव की दस्तक देता है। रोवर मशीन जमीन के चारों कोनों को डिजिटल रूप में चिन्हित कर एक ऐसा नक्शा तैयार करती है जिसे छेड़छाड़ करना लगभग असंभव है। इस नक्शे को पुराने रिकॉर्ड से मिलाकर जमीन की वास्तविक तस्वीर सामने आएगी। यह तकनीक न केवल चकबंदी के विवादों को कम करेगी, बल्कि सरकारी भूमि से अवैध कब्जे हटाने में भी मददगार साबित हो सकती है।
इस प्रणाली का सबसे बड़ा लाभ पारदर्शिता है। एक बार नक्शा डिजिटल रूप से तैयार हो गया तो हर किसान अपने खेत की वास्तविक स्थिति को दस्तावेजों में उसी रूप में देख सकेगा, जैसा वह जमीन पर मौजूद है। इससे ग्रामीण समाज में वर्षों से चल रही “हमारा हिस्सा कम कर दिया गया” जैसी शिकायतों को थामने में सहायता मिलेगी।
सरकार की यह पहल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा। पहले चुनिंदा गांवों में मॉडल के रूप में ई-नक्शा तैयार होगा, फिर उसकी सफलता के आधार पर पूरे प्रदेश में इसे लागू किया जाएगा। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सभी नए नक्शों को डिजिटाइज कर ऑनलाइन संरक्षित करने की योजना भूमि प्रबंधन के भविष्य को बदल सकती है।
हालांकि, इस सुधार के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तकनीकी समझ की कमी, स्थानीय स्तर पर मौजूद शक्तिशाली हित समूह और पुराने दस्तावेज़ों का अभाव कई स्थानों पर बाधा बन सकते हैं। लेकिन यदि सरकार अपने प्रशिक्षण, जागरूकता और निगरानी तंत्र को मजबूत रखती है, तो यह पहल चकबंदी व्यवस्था को नए सिरे से परिभाषित कर सकती है।
कृषि आधारित समाज में भूमि सिर्फ संपत्ति नहीं, जीवनरेखा है। इसलिए इसकी माप, सीमा और स्वामित्व की पारदर्शिता अत्यंत आवश्यक है। ई-नक्शा इसी पारदर्शिता का आधुनिक माध्यम है। उत्तर प्रदेश का यह कदम आने वाले वर्षों में ग्रामीण प्रशासन में दूरगामी बदलाव का आधार बन सकता है।
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